पूरे भारत में मशहूर है ‘KIPPS’ बरेली की रसभरी और काजू दालमोठ

चंद्रसेन, श्यामलाल विशम्भर नाथ के वंशजों ने दिया बरेली को पहला आधुनिक और शानदार आउटलेट किप्स ब्रांड के नाम से।
किप्स की रसभरी और काजू की दालमोठ पूरे भारत में प्रसिद्ध है। इनकी मिठाइयों को मिला उत्तर प्रदेश का पहला आईएसओ प्रमाणपत्र जो मिठाई के क्षेत्र में भी पहला था।

किप्स सुपर मार्केट के नाम से खोला उत्तर प्रदेश का पहला सुपर मार्केट। बरेली वालों के लिए था अनूठा अनुभव।

मिष्ठान, कंफेक्शनरी, सुपर मार्केट, एजेंसियों के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में बनायी अपनी अलग पहचान। बरेली के विकास और आधुनिकता की ओर के कदम में दी अपनी मजबूत दस्तक।


BAREILLY NEWS: भारतीय संस्कृति में त्यौहारों और पर्वों का विशेष महत्व है। हर त्यौहार जीवन में उमंग मस्ती तथा पारस्परिक सौहार्द लेकर आता है। भारत उत्सवों का देश है। हर उत्सव आनंद और प्रमोद के लिए होता है। इन उत्सवों में खानपान का भी महत्व रहता है। मिष्ठान इसका अभिन्न अंग है। बरेली में भी मिष्ठान प्राचीन काल से बनते आए हैं। लेकिन 60-70 वर्ष पहले तक आज की भांति मिष्ठानों की अनगिनत सूची नहीं थी। मिठाई की दुकानों पर मिठाई के नाम पर बालूशाही, कलाकंद, नुक्ती के लड्डू और नमकीन के नाम पर नमक-पारे और सेयो ही मिला करते थे। जो पत्ते के दोनों में बिकते थे। मिठाई वाले दूध भी कढ़ाई में अपने पास रखते थे। वह भी बिकता था।

भारत के अन्य प्रदेशों में भी मिठाई वहां की परंपरागत रिवाजों से बिकती थी। जैसे बंगाल में रसगुल्ले पत्ते के दोनों में, राजस्थान में घेवर, गुजरात में मोहनथाल वगैरह। पंजाब में मिठाई का रिवाज बहुत कम था। पूरा उत्तर प्रदेश मिठाइयों का शौकीन रहा है। बरेली में भी मिठाई की दुकानें कुछ थीं। मँगामल हलवाई की मिठाई और पन्ना की कचौड़ी बहुत मशहूर थी। दोनों ही दुकानें बड़ा बाजार में थीं। लेकिन बड़े बाजार में चंद्रसेन ने 140 वर्ष पहले मिठाई की एक दुकान खोली।

दुकान पर परंपरागत रूप से पत्ते के दोनों में मिठाई बिकती थी। इनकी दुकान के सामने से कोई भी परिचित निकलता या दुकान में कोई भी आता तो उसका मुंह मीठा कराये बगैर उसे जाने नहीं दिया जाता। यह परंपरा आज भी निभ रही है। देवेन्द्र खंडेलवाल आज भी किप्स पर आने वालों का स्वागत मिठाई खिला कर ही करते हैं।

1896 में चंद्रसेन के घर श्यामलाल का जन्म होता है और श्याम लाल के घर 1927 में विशम्भर नाथ का जन्म होता है। ये दोनों पीढ़ियाँ भी मिठाई के काम में अपनी उम्रें लगा देती हैं। अब बड़े बाजार की दुकान का नाम श्याम लाल विशम्भर नाथ हो जाता है।विशम्भर नाथ के ज़माने में मिठाइयों की वैरायटी बढ़ना शुरू हो जाती है। अब तकरीबन 20-35 किस्म की मिठाई दुकान पर सजी हुई मिलती है। पहले जहां मिठाई की दुकान में पीतल के बड़े-बड़े थालों में मिठाई रखी होती थी, तो विशम्भर नाथ ने यह किया कि बड़े-बड़े काउंटर दुकान में रखवाये गए और मिठाई उनके भीतर सुरक्षित सफाई से रखी गई। विशम्भर नाथ के जमाने में उनके पड़ोस में मँगामल हलवाई की दुकान सबसे ज्यादा चलती थी। लेकिन श्यामलाल ने या विशम्भर नाथ ने कभी भी अपने परिवार के साथ कभी हलवाई शब्द नहीं लगाया। वह हमेशा मिठाई वाले ही कहलवाते थे। इस क्लास का फर्क उन्होंने उस समय भी समझा था और इसका अनुसरण भी किया था।

विशंभर नाथ के एक भाई राजेंद्र कुमार भी इस व्यवसाय में उनका हाथ बाँटते थे। यह बहुत मेहनती और लगन से काम करने वाले व्यक्ति थे। विशंभर नाथ के घर देवेंद्र खंडेलवाल का जन्म 1947 में हुआ। देवेंद्र के बाद विशंभर नाथ जी के घर में अशोक खंडेलवाल, योगेंद्र खंडेलवाल,राजीव खंडेलवाल और शैलेंद्र खंडेलवाल ने भी जन्म लिया। देवेंद्र सबसे बड़े थे तो वो अपनी पढ़ाई समाप्त कर अपने पिता के साथ ही 1968 में श्यामलाल विशम्भर नाथ वाली दुकान में बैठने लगे।

PIC: DEVENDRA KHANDELWAL

देवेंद्र के छोटे भाई अशोक खंडेलवाल बहुत दूर दृष्टि वाले व्यक्ति थे। देवेंद्र और अशोक ने मिलकर योजना बनाई थी इस व्यवसाय को और विस्तार देना चाहिए। इन दोनों ने मिलकर बरेली को एक ऐसा प्रतिष्ठान देना चाहा जो यूनिक हो और जिससे विशेष पहचान बन सके। तो 1972 में सिविल लाइन वाली दुकान को बहुत ही आधुनिक व शानदार तरीके से खोला गया और दुकान का नाम रखा गया किप्स स्वीट्स एंड कन्फेक्शनरी। किप्स शब्द फ्रेंच भाषा से लिया गया था, जो आधुनिक और आकर्षक था। इस तरह की दुकान बरेली क्या आसपास के इलाके में भी कोई नहीं थी। शायद उत्तर प्रदेश में भी इस तरह की कोई मिठाई की दुकान नहीं थी।

दुकान में कॉउंटर्स में मिठाई, शेल्फ़स में ड्रायफ्रूट, विभिन्न जूस और कोल्ड ड्रिंक की भरमार और साथ ही कन्फेक्शनरी से जुड़े सभी आइटम एक साथ अच्छी क्वालिटी के यहां मिल जाते थे। अब किप्स की ख्याति बढ़ने लगी। मूंग की दाल की रसभरी और काजू वाली दालमोठ पूरे भारत में लोकप्रिय होने लगी। बरेली से जो भी व्यक्ति अपने किसी रिश्तेदार के यहां भारत भर में जाता। वह किप्स की दालमोठ और मिठाई लेकर जाता। जिसकी भरपूर तारीफ को वह अपने रिश्तेदार से बटोरता था और अगली बार फिर लाऊंगा यह वायदा करके वहां से आता।

ASHOK Khandelwal
PIC: ASHOK KHANDELWAL

जब किप्स एक ब्रांड बन गया, तब बरेली के किसी भी घर में किप्स की मिठाई का डिब्बा रखा होना उसकी हैसियत को बताता था। आप किसी को तोहफे में किप्स की मिठाई देते हैं, तो यह एक बड़ी बात हुआ करती थी। क्योंकि किप्स की मिठाई आम जनता की पहुंच से थोड़ा ऊपर थी। सभी लोग किप्स की मिठाई खाना चाहते थे। ये एक गर्व और स्वाद की बात होती थी।

अशोक खंडेलवाल एक जुनूनी और नये नए आइडिया को खोजने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने अब सिविल लाइंस में ही 1985 में किप्स सेल्स के नाम से हीरो होंडा मोटरसाइकिल की एजेंसी बरेली में खोली। ये भी बरेली की शुरुआती एजेंसियों में से है। इसके बाद उत्तर प्रदेश का पहला सुपर मार्केट 1994 में राजेंद्र नगर में किप्स सुपर मार्केट के नाम से खोला गया। बरेली के लोगों ने पहली बार अपनी पसंद के प्रोडक्ट्स की खरीदारी शेल्फ़स में से खुद उठाकर की। यह एक नया अनुभव था। वरना तो दुकानदार से सामान मांगने पर वह अपनी दुकान से उठाकर ग्राहक के हाथों में या काउंटर पर रखता था।अब आप स्वतंत्रत थे कि एक प्रोडक्ट की दस वेरायटी में से अपनी पसंद का सामान चुन सकें। इस सुपर मार्केट को उत्तर प्रदेश का पहला सुपर मार्केट होने का श्रेय है।

किप्स सुपर मार्केट को उत्तर प्रदेश का पहला सुपर मार्केट होने का श्रेय है।

अब परिवार में कई भाई थे। देवेंद्र सिविल लाइन वाले किप्स पर, अशोक हीरो होंडा किप्स सेल्स पर, शैलेन्द्र किप्स सुपर मार्केट पर।अब योगेंद्र खंडेलवाल ने 1969 में खंडेलवाल सेल्स कॉरपोरेशन के नाम से हार्डवेयर और पेंट्स की दुकान खोली। राजीव खंडेलवाल ने परसाखेड़ा इंडस्ट्रियल एरिया में मॉर्डन पैकर्स के नाम से एक फैक्टरी गत्ते की पैकिंग की खोली। देवेंद्र के चाचा राजेन्द्र कुमार के छोटे पुत्र संजय बड़े बाज़ार वाली दुकान श्यामलाल विशम्भर नाथ पर बैठने लगे।

PIC: KIPPS SWEETS, CIVIL LINES, BAREILLY
PIC: KIPPS SWEETS, CIVIL LINES, BAREILLY

उनके बड़े भाई गोविंद ने किप्स कन्फेक्शनरी प्राइवेट लिमिटेड नाम से रामपुर रोड पर एक मिठाई की फैक्ट्री डाली। यह भी बरेली के लिए पहला अनुभव था। ये अनोखे किस्म की मिठाई की पूरी फैक्टरी थी। किप्स के विभिन्न प्रतिष्ठानों पर बिकने वाली मिठाई अब एक फैक्ट्री में बड़े पैमाने पर बनती थी। हाथ की मिठाई बनाते समय सफाई और गुणवत्ता के लिए किप्स को आईएसओ 9002 का प्रमाण पत्र मिला जो मिठाई के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश का पहला प्रमाण पत्र था।

अब किप्स स्वीट्स के बराबर में ओशन्स रेस्टोरेंट भी किप्स सुपरमार्केट के ऊपर खोला गया। शिक्षा के क्षेत्र में इस परिवार ने दखल देते हुए खंडेलवाल कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी नाम से रिठौरा के पास शरुआत की, जिसका उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने किया। इसके बाद खंडेलवाल कॉलेज ऑफ आर्किटेक्ट की नींव डाली गयी। अशोक खंडेलवाल ने बाद में शास्त्री नगर में किप्स एनक्लेव नाम की एक कॉलोनी भी बनायी। ये दुःखद है कि अशोक खंडेलवाल जैसे कुशाग्र बुद्धि वाले और नयी व्यवसायिक संरचना को जन्म देने वाले का निधन बहुत जल्दी 2007 में ही हो गया।

PIC: RAHUL KHANDELWAL

देवेन्द्र खंडेलवाल के पुत्र हर्ष खंडेलवाल भी अपने परिवार के व्यवसाय में बहुत ही लगन से जुड़े रहे। जब पहला किप्स सुपरमार्केट बना तब हर्ष ही उसको देखते थे। उसको व्यवस्थित और आधुनिक बनाने में हर्ष खंडेलवाल की ही लगन है। आज भी हर्ष अपने चाचा की फैक्ट्री मॉडर्न पैकर्स भी देखते हैं और अपने पिता देवेंद्र खंडेलवाल का हाथ भी किप्स स्वीट्स पर बटाते हैं। देवेंद्र खंडेलवाल के दूसरे पुत्र राहुल खंडेलवाल किप्स स्वीट, ओशन्स और किप्स सुपरमार्केट सिविल लाइंस तीनों देखते हैं। ये स्पोर्ट्स के भी शौकीन हैं। पूरे परिवार का अनवरत श्रम ही इस ब्रांड को इतना ऊपर ले गया।

पहले खंडेलवाल परिवार बड़े बाजार के दर्जी चौक में रहता था। तब भी सभी संयुक्त तरीके से रहते थे। माता शकुंतला देवी के साथ पचास से अधिक परिवार के सदस्य एक साथ उस घर में रहते थे। आज से लगभग 34 साल पहले बरेली कॉलेज के पास इन्होंने अपना नया आधुनिक घर बनवाया। जिसको बनवाने में देवेंद्र और अशोक खंडेलवाल की सूझबूझ और दूरदृष्टि ने काम किया। बेहद आकर्षक यह घर सात यूनिटों में बंटा होने के बावजूद भी एक है।

घर के अंदर सब लोग एक साथ मिल सकते हैं। घरों के बीच में राधा कृष्ण का एक मंदिर है। वहां भगवान की प्राण प्रतिष्ठा भी हुई है। जहां परिवार के सारे धार्मिक, मांगलिक व पारिवारिक अनुष्ठान संपन्न होते हैं। पूरा परिवार राधा कृष्ण का भक्त है। बगैर मंदिर जाए, अर्चना किए कोई भी व्यक्ति घर से बाहर नहीं निकलता। इस परिवार की अब तक सात पीढ़ियां हो चुकी है और नई पीढ़ी भी आधुनिकता अब ग्लोबल दुनिया में अपने कदम बढ़ा रही है।

देवेंद्र खंडेलवाल एक भक्तिभाव के व्यक्ति हैं। लेकिन उनका एक रूप लेखक का भी है। उनकी पांच किताबें प्रकाशित हैं। कई किताबें प्रकाशाधीन हैं। उन्होंने एक पुस्तक “गीता” पर, एक “मन वीणा के सुर” जिसमें उनके गीत और शायरी हैं. एक पुस्तक “चले आनंद की ओर” जिसमें जीवन जीने की कला के बारे में और एक पुस्तक “जीवन में बसंत” यह मानवीय मूल्यों और श्रेष्ठ जीवन का रास्ता दिखलाती चलती है। खंडेलवाल परिवार ने सफलता के सोपान रचे हैं।

बरेली में नए और आधुनिक प्रतिष्ठानों की नींव रखी है। शिक्षा के क्षेत्र में कदम बढ़ाए हैं। अपनी धार्मिक और ईश्वरीय वृत्तियों को भी बनाए रखा है। पारिवारिक एकजुटता और हाथ में हाथ लेकर चलने की कला को संजोया है। अपनी रचनात्मक वृत्तियों को भी पोषण दिया है। समाज के ऐसे परिवार ही अपनी व्याख्या खुद करते हैं।

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