बरेली का पहला आलीशान होटल जिसने बदल डाला शहर का लाइफ स्टाइल: स्वर्ण टावर्स

hotel swarn tower

जिसने दिया पहला रेन डान्स, सैलेड बार, स्टैग बार, मिर्ची पब, लेट नाइट लाइफ


बरेली का पहला सबसे शानदार स्टोर क्वालिटी सेंटर जहाँ बरेली के लोगों को मिली सबसे पहले अपनी पसंद की उच्चस्तरीय चीज़े।

पहली बार जगह मिली विशाल मेगा मार्ट जैसे बड़े ब्रांड को। क्वालिटी सेंटर और क्वालिटी ऑउटफिट जैसे शानदार प्रतिष्ठानों ने पहली बार मचायी परिधानों की दुनिया में अपनी धूम।

DR. RAJESH SHARMA: एक ट्रेन लाहौर के स्टेशन पर रूकती है। हैरत की बात यह कि ट्रेन के रुकने के बाद कोई भी सवारी उस ट्रेन से नीचे नहीं उतरती। जब काफी देर हो जाती है तो लाहौर स्टेशन के दो वेंडर उस ट्रेन में चढ़ते हैं। अंदर का दृश्य देखकर उनकी रूह कांप उठती है। हर सीट पर कटे हुए इंसान पड़े हैं। उन दोनों के पैर इंसानी खून से सन जाते हैं। वह वेंडर चीखते हुए ट्रेन से उतरकर स्टेशन की तरफ भागते हैं। कटी हुई लाशों में पीली पगड़ी वाला एक शख्स भी अपनी सीट के बाईँ ओर गिरा होता है। ये मोंजा राम हैं जिनका बन्नुवाल में कपड़े का बहुत बड़ा कारोबार है। ये विभाजन के बाद बनने वाले हिंदुस्तान में कोई जगह खरीदने आए थे. जहां अपने परिवार को बसा सकें। अब परिवार को बसाना क्या ये स्वयं ही अपने परिवार के पास नहीं पहुंच सकते।

रेफ्युजी कैंप से शुरू होता है सफर

मोंजा राम के दो छोटे छोटे बेटे रामस्वरूप जुनेजा और राधेश्याम जुनेजा अपनी मां और दादी के साथ पाकिस्तान बनने के बाद देहरादून के रिफ्यूजी कैंप प्रेम नगर में पहुंचते हैं। इनके मामा भी इनके साथ हैं। मामा जगन्नाथ जवान हैं। देहरादून में काम धाम की बात नहीं जमती तो बरेली आकर जगन्नाथ ठाकुर दास एंड संस के यहां नौकरी कर लेते हैं। गली नवाबान में इनके रहने का ठिकाना हो जाता है।

दादी के ज़ेवर बेचने से शुरू होता है कारोबार

ठाकुरदास के यहां जगन्नाथ काम सीख ही रहे थे कि रामस्वरूप की दादी ने जगन्नाथ से कहा कि मेरा यह सारा जेवर बेच दो और अपना काम खोल लो और रामस्वरूप को भी अपने साथ लगा लो। दादी को रामस्वरूप के भविष्य की चिंता थी। इसलिए ही उन्होंने जगन्नाथ को ये प्रस्ताव दिया। रामस्वरूप उस समय 12 साल के थे और राधेश्याम जुनेजा 5 साल के।

कुतुब खाने पर एक दुकान लेकर जनरल मर्चेंट की दुकान खोली

कुतुब खाने पर लगभग सारी दुकानें रामपुर नवाब के दरबार में एक खादिमा होती थीं उनके नाम थीं। उसके पति ही उन दुकानों का सारा कामकाज देखते थे। उनसे एक दुकान लेकर जनरल मर्चेंट की दुकान खोल ली गई। मामा के साथ रामस्वरूप भी दुकान पर आ गए। दुकान चलने भी लगी। लेकिन मामा जगन्नाथ की के काम करने का तरीका ठाकर दास के यहां से सीखा हुआ था। उन्होंने एक दिन रामस्वरूप को दुकान पर समझाया कि दुकानदारी बहुत मुश्किल चीज़ है. इसमें खुद भी कोशिश करनी चाहिए।

बरेली के सबसे शानदार स्टोर क्वालिटी सेंटर की हुई शुरुआत

मामा ने पूरी मदद का भी वायदा किया। अब रामस्वरूप ने भी अपने मामा की बात समझी। उन्हें पूरा परिवार भी चलाना था।जगन्नाथ बाबू की इस बात को उन खादिमा के पति ने भी समझा। उन्होंने रामस्वरूप का हाथ पकड़ा और गली आर्य समाज की तरफ मुड़ते ही किनारे पर एक दुकान के आगे 4×4 की जगह उन्होंने रामस्वरूप को बैठने के लिए दे दी। अब रामस्वरूप रात को भी अपने घर नहीं जाते थे कि रात को 2:00 बजे कोई ट्रेन बरेली आएगी उसमें से कोई ग्राहक शायद उनकी दुकान पर कुछ सामान लेने आ जाए। इस तरह बरेली के सबसे शानदार स्टोर क्वालिटी सेंटर की शुरुआत हुई।

1954 से शुरू हुए इस काम के अब साल दर साल निकलने लगे। रामस्वरूप भी बड़े हुए और राधेश्याम का लालन-पालन भी होता रहा। अब दोनों बच्चे बड़े हो जाते हैं। क्वालिटी सेंटर के ऊपर गारमेंट पैलेस खोला जाता है। उसमें राधेश्याम जुनेजा बैठने लगते हैं।ये बात 1971 की है।

इस बीच रामस्वरूप जुनेजा परिवार को पालने के साथ ही शहर में दो तीन जगह प्रॉपर्टी भी खरीदते हैं। डॉक्टर स्ट्रीट अपनी कोठी बेच रहे थे। यह वह जगह है जहां आज विशाल मेगा मार्ट है। ढाई हजार गज की इस कोठी को खरीद लिया जाता है। एक प्लाट 1964 में जंक्शन के पास 6000 गज का खरीदा गया। एक दुकान प्रसाद सिनेमा के सामने खरीद कर किराए पर चढ़ा दी। उसमें ड्राईको ड्राई क्लीनर किराए आ जाते हैं। समय बीतता गया। रामस्वरूप और राधेश्याम जुनेजा का विवाह भी हो गया। बच्चे भी हो गए। बच्चे बड़े भी हो गए। रामस्वरूप जुनेजा के घर एक बेटा राजशेखर और तीन पुत्रियां हुई। रामस्वरूप स्वयं भी पढ़े लिखे इंसान थे और पढ़ाई को बहुत महत्व देते थे। उन्होंने राजशेखर को नैनीताल शेरवुड पढ़ने भेजा। बेटी को भी लखनऊ आईटी कॉलेज में भेजा। राधेश्याम जुनेजा का बेटा जयंत हुआ। कई बहने थीं। अब दोनों परिवार अपने अपने हिसाब से चलने लगे। बाद में दोनों भाइयों में बटवारा भी हुआ। प्रोपर्टी के भी हिस्से हुए।

शेरवुड से पढ़ाई के बाद पिता के साथ शुरू की नई पारी

शेरवुड से बढ़िया पढ़ाई करके राजशेखर बरेली आते हैं। सेंट स्टीफन और श्री राम कॉलेज में उनका दाखिला पक्का हो चुका होता है। तभी घर में घटना होती है पता चलता है कि राजशेखर की माँ स्वर्ण को कैंसर है। कैंसर उस समय बहुत बड़ी बीमारी होती थी।राजशेखर बरेली से बाहर ना जाने का फैसला कर लेते हैं। बरेली में ही बरेली कॉलेज से बीकॉम में दाखिला ले लेते हैं। इसी के साथ वह अपने पिता के साथ क्वालिटी में बैठना शुरू कर देते हैं। दुकान पर बैठना क्या होता है, दुकान में चार चांद लग जाते हैं।

कारोबार अपनी तेज गति पकड़ लेता है। राजशेखर ट्रेन में जगह न मिलने पर भी जमीन पर लेटकर दिल्ली पहुंचते हैं और चांदनी चौक के पान दरीबा के किसी छोटे से होटल के छोटे से कमरे में रुककर दिल्ली को छानते हैं। सदर बाजार से एक से एक नफीस सामान पसंद कर बरेली अपनी दुकान पर सजाते हैं। क्वालिटी सेंटर के लोग मुरीद हो जाते हैं। अब राजशेखर कुछ लड़के रख लेते हैं और अब ग्राहक की मांगी हुई चीज 24 घंटे में दिल्ली से आकर ग्राहक को सौंप दी जाती है। क्वालिटी सेंटर का नाम बरेली से बाहर भी मशहूर होने लगता है।

राजशेखर को दुकान चलाते हुए और ग्राहकों को संतुष्टि देते हुए यह महसूस होता है कि उनके अंदर ग्राहकों को संतुष्ट करने की एक अलग कला है। वह इस कला को पहचान लेते हैं। राजशेखर में शुरू से ही एक क्लास को मेंटेन करने की कला थी। 40 साल क्वालिटी सेंटर इस बात से मशहूर रहा कि वहां हर तरह की सबसे बढ़िया चीज मिलती है। उस जमाने में राजशेखर ने अपनी दुकान पर 1000 रुपये तक के लेडीस सैंडल और पर्स तक बेचे हैं, जबकि आम लोगों की पूरे महीने भर की तनख्वाह 600-700 रुपये होती थी।

राजशेखर ने होटल इंडस्ट्री में जाने का विचार किया

राजशेखर कुछ अलग करना चाहते थे. उनको अपनी हॉस्पिटैलिटी वाली अदा का पता था। उन्होंने होटल इंडस्ट्री में जाने का विचार किया। मगर पिता ने एकदम से ना कर दी। राजशेखर के दिमाग में यह चढ़ गया था कि वह बरेली को एक शानदार होटल देंगे। उन्होंने जिद की तो पिता ने 6000 गज का स्टेशन वाला प्लॉट उन्हें दे दिया।

1991 में होटल का काम राजशेखर ने शुरू करवाया। एक दिन बृहस्पतिवार को क्वालिटी सेंटर बंद था। रामस्वरूप जुनेजा अपने उस प्लाट पर पहुंच गए जो राजशेखर को दिया था जहाँ होटल बन रहा था। राज से उन्होंने पूछा कि होटल का नाम क्या है। राज ने कहा स्वर्ण टॉवर। रामस्वरूप ने कहा कि तेरी मां का नाम स्वर्ण है, यह तो ठीक है लेकिन टॉवर क्या है। राज ने कहा कि यह होटल कई मंजिला होगा। तो पिता ने पूछा कितना। राज ने कहा टॉवर है इसलिए 10 मंजिला।

ऐसे हुई होटल स्वर्ण टाॅवर की शुरूआत

अब पिता ने कहा कि तुम्हें यह पता है कि 10 मंजिला इमारत बनाने के लिए उसकी नींव भी बहुत गहरी रखी जाती है। तब राजशेखर ने पिता से कहा मैंने जो लोन लिया है उसका 70 से 80 प्रतिशत तक पैसा मैंने केवल और केवल नींव में ही लगा दिया है।अब पिता ने गौर से अपने बेटे राजशेखर को देखा उन्हें यकीन हो गया कि बेटा अब बड़ा हो गया है और जिम्मेदार हो गया है। अब वह निश्चिंत हो गए।

राजशेखर ने खुद खड़े होकर होटल का निर्माण करवाया था। एक दिन इत्तिफ़ाक़ से राजशेखर विमको में एक पार्टी में गए। वहां कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के कमरे की सजावट की बहुत तारीफ कर रहा था। तब उस व्यक्ति ने कहा कि मैंने तो दिल्ली के हयात होटल का एक कमरा खरीद लिया है। ये सुन कर राजशेखर के कान खड़े हो गए। उन्हें पहली बार पता चला कि फाइव स्टार होटल भी अपने कमरे बेचते हैं।

अगले ही दिन राजशेखर ट्रेन पकड़कर दिल्ली चले गए और दिल्ली के इस फाइव स्टार होटल के पचास कमरे उन्होंने खरीद लिए। कमरे यानी कमरे में उपयुक्त होने वाला हर सामान पर्दे, कुशन, चादरें, टीवी सब कुछ। इस तरह से स्वर्ण टावर अब सज भी गया। स्वर्ण टावर बरेली का पहला सबसे शानदार और लग्जरी होटल 1993 में बनकर तैयार हो गया।

1993 में बरेली के जिलाधिकारी दीपक सिंघल ने इसका उद्घाटन किया। यह पहला होटल था, जिसकी पाॅवर बैकअप 24 घंटे की थी। एक बहुत बड़ा जनरेटर उस जमाने में राजशेखर ने होटल में लगवाया। कॉमर्स के बाद अंग्रेजी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएशन किए राजशेखर को साहित्य ने नए मुकाम दिए। साहित्य के साथ जुड़ कर वह अपने को ज्यादा सभ्य महसूस करने लगे। यही उनके व्यवहार में भी आया और यही सब उन्होंने अपने ग्राहकों को देना शुरू किया।

स्वर्ण टाॅवर ने बरेली शहर का बदल दिया मिज़ाज

1987 में उनका विवाह उर्वशी से हुआ। उर्वशी ने भी उनका साथ देना शुरू किया। अब राजशेखर और उर्वशी ने मिलकर स्वर्ण टावर को नए रंग देना शुरू किए। बरेली का पहला सैलेड बार दिया 1993 में पोटे पूरी के नाम से। पहला पब पबमिर्ची के नाम से दिया। 1995 में पहला रेन डांस दिया। 30 साल पहले आर्टिफिशियल शोवर्स लगाकर लोगों को संगीत की धुनों के साथ खूब नचाया।

स्वर्ण टॉवर की पहली गेस्ट मशहूर गायिका अलीशा चनाय थीं। इसके बाद तो जया बच्चन, दलेर मेहंदी, गुलाम अली, मिक्का, कल्याणजी-आनंदजी, सुनिधि चौहान के साथ साथ न जाने कितने नामचीन लोग स्वर्ण टावर के मेहमान बने। राजशेखर ने इन्हें बरेली में ही रेड कार्पेट दिया। राजशेखर यही नहीं रुकते और स्वर्ण टॉवर के माध्यम से उन्होंने बरेली को पहला स्टैग बार दिया. पहली बार लेट नाइट लाइफ स्वर्ण लॉन्ज के नाम से दी।

राजशेखर ने अपनी क्वालिटी दुकान उसी ग़ुरबत में दिन गुज़ार रही खादिमा के पति को वापस कर दी, ताकि वह उसका इस्तेमाल कर सकें। उन्होंने अपने पिता की उनके द्वारा की गई मदद का कर्ज चुकाया

राधेश्याम जुनेजा क्वालिटी के नाम से डॉ स्ट्रीट वाली प्रॉपर्टी पर आ गए। विशाल मेगा मार्ट को उन्होंने किराए पर जगह दे दी।

लोगों के रहन-सहन और पब्लिक लाइफ में एक बड़ा बदलाव इस होटल के माध्यम आया। होटल की शुरूआत से ही उन्होंने बरेली में शादियों के लिए पैकेज देना शुरू किया। यह भी बरेली में पहली बार था। अब मामूली परिवारों के लोग भी अपनी शादियाँ इस लग्जरी होटल में करने लगे। स्वर्ण टावर की सबसे पहली लग्जरी शादी बदायूँ के सेठ और नामी ज्वेलर्स सेठ हरसहाय मल के बेटे मोहित की हुई। स्वर्ण टॉवर ऑर्गेनाइजेड हॉस्पिटैलिटी का बड़ा नाम बन गया। टॉवर का ओरम फाइन रेस्टोरेंट शाम को शहर के गणमान्य व्यक्तियों से भरा रहता था। इन सब के बाद ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने के लिए 2007 में राजशेखर ने स्वर्ण लॉन बनवाया।

राजशेखर के दो बेटे राज श्रेष्ठ और राज स्नेहल हैं। राज श्रेष्ठ ने स्विट्जरलैंड से होटल मैनेजमेंट किया और लंदन के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित होटल जुमैरा में कई साल काम करके इस क्षेत्र की नई ग्लोबल चीजों को सीखा और अब वह स्वर्ण टावर को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उनकी पत्नी नेहा भी उनके साथ हैं। दूसरा बेटा राज स्नेहल इकोनॉमिस्ट है। वह भारत का यंगेस्ट फंड मैनेजर है। उसने मैकेंज़ी के साथ साथ वर्ल्ड ट्रेड में भी काम किया है। उसकी पत्नी विशाखा भी उसके कामों में उसके साथ हैं।

राधेश्याम जुनेजा और रामस्वरूप जुनेजा ने अपनी कुतुबखाने वाली दुकानें बेंच दीं। बल्कि राजशेखर ने अपनी क्वालिटी उसी खादिमा के पति को उनकी मुफलिसी के दौर के चलते दुकान उनको वापस कर दी, ताकि वह उसका इस्तेमाल कर सकें।उन्होंने अपने पिता की उनके द्वारा की गई मदद का कर्ज चुकाया।

राधेश्याम जुनेजा क्वालिटी के नाम से डॉ स्ट्रीट वाली प्रॉपर्टी पर आ गए। विशाल मेगा मार्ट को उन्होंने किराए पर जगह दे दी। राधेश्याम का बेटा जयंत ड्राईको ड्राई क्लीनर वाली दुकान पर क्वालिटी ऑउटफिट के नाम से ब्रांडेड कपड़ों की दुकान लेकर आए।ये दोनों स्टोर आज भी शहर के बेहतरीन स्टोर हैं।

बरसों बरस बरेली शहर को अच्छा सामान परोसने वाला परिवार आज भी बरेली को उच्च स्तरीय सेवाएं दे रहा है। पिता मोंजा राम से बचपन में ही बिछड़े इन दो बच्चों ने इस शहर को बहुत कुछ दिया। इन लोगों की पसंद और नफासत का जो सिलसिला है वह आज तक नहीं थमा है। वरना बरेली में तो उस जमाने में एक अच्छा नेलकटर भी नहीं मिलता था। उसे भी तलाशना पड़ता था।

  • गुज़िश्ता बरेली
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