साड़ी संसार से रंगमाया तक का सफ़र 100 रुपये की नौकरी से खड़ा किया व्यवसायी राजेश गुप्ता ने करोड़ों का बिजनेस

1958 में बरेली में रामचरन लाल के पुत्र राजेश गुप्ता ने सौ रूपये की नोकरी से शुरुआत कर शनील के शॉल,ब्लॉउज़ और साड़ियों के काम को कई राज्यों तक फैला दिया।इन शॉलों,साड़ियों पर हुई बरेली की ज़रदोज़ी दूर दूर तक पहुँची।साड़ी संसार के शोरूम से बरेली को एक पहचान दी।

गुज़िश्ता बरेली की इस कड़ी में बता रहे हैं डॉ राजेश शर्मा बिज़नेसमेन राजेश गुप्ता की कहानी अपनी ज़ुबानी

सौ साल से भी पहले से चंदौसी में भगवान दास रेडीमेड जैसा यूनिक काम कर रहे थे।उनके पुत्रों में से रामचरन लाल बरेली आते हैं और जीने की जिजीविषा में कई काम करते हैं, जिनमें कुछ मामूली भी होते हैं।
1958 में बरेली में रामचरन लाल के पुत्र राजेश गुप्ता ने सौ रूपये की नोकरी से शुरुआत कर शनील के शॉल,ब्लॉउज़ और साड़ियों के काम को कई राज्यों तक फैला दिया।इन शॉलों,साड़ियों पर हुई बरेली की ज़रदोज़ी दूर दूर तक पहुँची।साड़ी संसार के शोरूम से बरेली को एक पहचान दी।
राजेश गुप्ता से बीस वर्ष छोटे उनके पुत्रवत जैसे भाई संजय गुप्ता ने साड़ी संसार मॉर्डन से 1990 में “लॉ जरदोज़िया” नामक एक ब्राण्ड शुरू किया जो रूहेलखंड में महिलाओं के कपड़ों के लिए पहला ब्राण्ड बना।लॉ जरदोज़िया ने धूम मचा दी थी।
2011 में चौकी चौराहे पर साड़ी संसार का बड़ा शोरूम खोला और अमाया होटल की नींव रखी।जितेश गुप्ता और संयम गुप्ता ने फैशन मर्चेन्टाइज़ के द्वारा इस काम को नया रूप दिया तो सिद्धान्त गुप्ता ने होटल मैनेजमेंट कर एक शानदार होटल के लिए रास्ता खोला।
गुज़िश्ता बरेली: संजय गुप्ता ने रंगमाया के ब्राण्ड नाम से बरेली को महिलाओं को एक स्तरीय सौगात दी।पिछले 65 वर्षों से ये परिवार साड़ी संसार के नाम से तो बरेली और कई राज्यो में जाना ही जा रहा था. अब रंगमाया के नाम से नया ब्राण्ड ले कर आया है। चंदौसी के गोपाल दास के पुत्र भगवान दास करीब सौ साल पहले चंदौसी में रेडीमेड कपड़े की दुकान चलाते थे। वह जमाना जबकि रेडीमेड का नहीं था और तैयार कपड़े कहीं नहीं मिलते थे लेकिन भगवान दास खुद कपड़े को इंसान की बनावट के हिसाब से काटते थे और आसपास के टेलर या महिलाओं से उन कपड़ों को सिलवाते थे। एक स्टैंडर्ड साइज उन्होंने अलग-अलग जिस्मों के हिसाब से बना रखा था जिस पर वह सिले हुए कपड़े लगभग फिट आ जाते थे। वैसे तो किसी को भी कपड़ा खरीदने में और सिलवाने में वक्त लगता था लेकिन अचानक से दुकान पर जाकर आपको अपने लिए सिला सिलाया कपड़ा मिल जाए वो भी आपकी पसंद का यह बात सौ वर्ष पहले चंदौसी जैसे छोटे शहर क्या बड़े शहरों में भी बहुत मुश्किल थी। लेकिन भगवान दास इसको कर रहे थे।
IMAGE: RANGMAYA SAREE SANSAR
भगवान दास के दो पुत्र श्यामसुंदर और रामचरन हुए। इन दोनों ने भी पिता का साथ दिया और अपनी दुकान के काम को आगे बढ़ाया। श्याम सुंदर लाल के विवाह के बाद उनके दो पुत्र रामेश्वर दयाल और सियाराम होते हैं और एक पुत्री रामा होती हैं।रामचरन लाल का विवाह बर्फों देवी से होता है। रामचरन लाल के दो पुत्र राजेश गुप्ता व संजय गुप्ता होते हैं वएक पुत्री सरोज होती है।
1956 से कुछ पहले रामचरन लाल बरेली आ जाते हैं और खांडसारी के काम में नौकरी करने लगते हैं। वह अपना परिवार सीता कूंचा राम के एक किराए का मकान लेकर उसमें रखते हैं। उस समय बरेली में खाण्डसारी का काम बहुत था। खांडसारी में प्रचलित कोल्हू कढ़ाव के काम में भी भगवान दास हाथ आजमाते हैं तो कभी परिवार पालने के लिए एक छोटी सी टॉफी गोली की दुकान भी चलाते हैं। बड़े पुत्र राजेश तब तक सत्रह साल के हो चुके होते हैं तो राजेश गुप्ता शहामतगंज में नवल किशोर मेहरोत्रा कपड़े वाले होते हैं उनके यहां ₹100 मासिक में नौकरी करने लगते हैं।
1958 से 1962 तक राजेश गुप्ता वहां नौकरी करते हैं। इसी समय मदारी गेट पर जगदीश नारायण बैजल और बंगाली बाबू साड़ी लहंगो का काम कर रहे होते हैं। राजेश गुप्ता इनके संपर्क में आ जाते हैं और कढ़ाई के काम को किस तरह बाजार में बेचना है इस काम को सीखते हैं।उस दौरान उत्तरांचल के इलाके में भी लहंगा, साड़ियां जाती थीं। क्योंकि जगदीश बैजल और बंगाली बाबू पंजाब, दिल्ली और अन्य इलाकों के व्यापारी ही नहीं संभाल पाते थे तो तय हुआ कि राजेश गुप्ता पहाड़ पर जाकर इस काम को संभालेंगे। 1965 तक राजेश गुप्ता हल्द्वानी, नैनीताल, रानीखेत जाकर पूरे पहाड़ का काम देखते रहे लेकिन राजेश गुप्ता के मन में अपना काम करने की ललक थी।1964 में राजेश गुप्ता का विवाह बिरमा गुप्ता से होता है। तब राजेश गुप्ता मिरधान गली में एक टाल वालों के मकान पर किराए पर रहने लगते हैं।

राजेश गुप्ता शनील के कपड़े के थान खरीदते हैं उनमें से शॉल के साइज के पीस काटते हैं और उन पर एंब्रॉयडरी कराते हैं। शनील के जरी जरदोजी की एंब्रॉयडरी से सजे हुए शॉल लोकप्रिय हो जाते हैं। उस जमाने में महिलाओं के लिए शनील के एम्ब्रॉयडरी शॉल व ब्लाउजों का प्रचलन अधिक हो गया था। चाहे मौका शादी ब्याह का हो अथवा ओढ़ने पहनने का शनील की शॉल ही पसंद की जाती थीं।

जगदीश नारायण बैजल के यहां जरदोजी के काम को सीखते हुए और उत्तरांचल के इलाकों में बाजार को संभालते हुए राजेश गुप्ता को यह महसूस होता है कि स्त्रियों को शादी विवाह के लिए कुछ खास किस्म के कपड़ों की जरूरत होती है। उस जमाने में एक नया कपड़ा आता है शनील का। राजेश गुप्ता शनील के कपड़े के थान खरीदते हैं उनमें से शॉल के साइज के पीस काटते हैं और उन पर एंब्रॉयडरी कराते हैं। शनील के जरी जरदोजी की एंब्रॉयडरी से सजे हुए शॉल लोकप्रिय हो जाते हैं। उस जमाने में महिलाओं के लिए शनील के एम्ब्रॉयडरी शॉल व ब्लाउजों का प्रचलन अधिक हो गया था। चाहे मौका शादी ब्याह का हो अथवा ओढ़ने पहनने का शनील की शॉल ही पसंद की जाती थीं। शनील के बड़े-बड़े थान आते थे और उनमें से पीस काट कर उन पर एंब्रॉयडरी करके शॉलें तैयार की जाती थी। राजेश गुप्ता ने जब इस काम को शुरू किया तो जरी का काम की गई शॉलें लोगों को बहुत पसंद आई और देखते ही देखते राजेश गुप्ता का काम बहुत बढ़ गया। शरीर की शॉलों के साथ ही जरी ज़रदोज़ी से सजे हुए शनील के ब्लाउज भी बनने लगे थे। राजेश गुप्ता स्वयं जाकर बाहर की थोक की कपड़ा मंडी से कपड़ा लाते,कपड़ों के घर आने पर उनकी पत्नी बिरमा देवी कपड़ों की स्टेम्पिंग करती थीं कि किस कारीगर के घर कितनी शॉल्स का काम एक वैरायटी का होगा। उसके बाद राजेश गुप्ता उन शॉलों को अलग-अलग कारीगर के घर उसके काम के हिसाब से छोड़ कर आते। जब शॉलें तैयार होकर कारीगर के अड्डे सेआती तो मिनटों न लगते उन शॉलों को बिकते हुए। शॉलें दुकान की अलमारी तक जाने से पहले ही व्यापारियों के थैले में पहुंच जातीं।
राजेश गुप्ता
बरसों बरस राजेश गुप्ता यह काम करते रहे। सबसे पहले राजेश गुप्ता ने खानकाह नियाजिया के पास एक छोटी सी दुकान किराए पर ली लेकिन वह दुकान उस इलाके के एक बाहुबली के घर के सामने थी तो वह जब वह अपनी दुकान का ताला खोलने जाते तब उनके ताले पर हमेशा गोबर लिपटा रहता था, क्योंकि राजेश गुप्ता के पास पैसा नहीं था, कोई रास्ता भी नहीं था तब वह काफी समय तक इसको बर्दाश्त करते रहे। बाद में काम से कुछ पैसा बना तब उन्होंने एक दुकान आर्य समाज गली में स्त्री सुधार स्कूल के सामने किराए पर ले ली और काम करने लगे। इसी समय राजेश गुप्ता के पास पैसों की कमी हो आई क्योंकि माल अधिक चाहिए था।एम्ब्रॉयडरी करने में वक़्त लगता था। माल रोकना पड़ता था। तब उन्होंने पैसों के लिए एक पार्टनरशिप की जो केवल तीन साल तक ही चली। 1977 में मदारी गेट पर ही मंगामल हलवाई के ऊपर उन्होंने एक दुकान किराए की ली और पूरे जोर शोर से अपना काम शुरू कर दिया। यहाँ ये सन 2000 तक रहे और बढ़िया काम करते रहे।

दुकान के काम के लिए संजय भी कई दूसरे शहरों की यात्राएं करते रहे व नये ग्राहक व माल की सप्लाई करते रहे।फिर जब स्विफ्ट के सामने दुकान ले ली गयी तब भी संजय ने बड़ी संजीदगी और प्रोत्साहन से काम को संभाला।

राजेश गुप्ता और बिरमा देवी के सात संताने हुई। बेटियों में बबीता, संगीता, रूबी,रूपिन, राशि, प्रिया और बेटे में एक ही जितेश सबसे छोटे हैं। बिरमा देवी घर में अपने सास-ससुर सहित इन सात बच्चों की परवरिश तो कर ही रही थीं साथ ही अपने देवर संजय गुप्ता को भी पुत्रवत पाल रही थीं और उनकी जरूरतों का भी ध्यान रख रही थीं। क्योंकि जब उनका विवाह हुआ तो संजय मात्र तीन वर्ष के ही थे। मिमिया टोले के अपने तीन कमरों के मकान में बिरमा देवी अपने परिवार की देखरेख के साथ बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा भी संभाले हुई थी और पति के कारोबार में भी जितना सहयोग हो सकता था कर रही थीं।
संजय गुप्ता व नीलम गुप्ता
कारोबार के सिलसिले में बाहर के व्यापारी बरेली आते थे। पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, अहमदाबाद तक का व्यापारी आता था। उनके रुकने ठहरने की व्यवस्था भी करनी होती थी। उस जमाने में बरेली में होटल नहीं होते थे। उस समय बरेली में साड़ियों के होलसेल के कारोबार में जगदीश बैजल, ओमकारनाथ और राजेश गुप्ता का ही बड़ा नाम था। इसी बीच दिल्ली के चार व्यापारी और भटिंडा के एक व्यापारी ने भी बरेली में आकर अपनी दुकान खोली कुछ काम भी जरी जरदोजी का किया लेकिन तीन-चार सालों में ही वह बरेली से वापस चले गए। 2001 में मंगामल हलवाई के ऊपर से दुकान शिफ्ट कर के बड़े बाजार में स्विफ्ट ड्राई क्लीनर के सामने साड़ी संसार मॉर्डन के नाम से दुकान खोली गयी 1976 से राजेश गुप्ता के छोटे भाई संजय भी उनके साथ काम पर बैठने लगे थे।संजय मँगामल के ऊपर वाली दुकान से ही अपने बड़े भाई के साथ कदमताल कर रहे थे।दुकान के काम के लिए संजय भी कई दूसरे शहरों की यात्राएं करते रहे व नये ग्राहक व माल की सप्लाई करते रहे।फिर जब स्विफ्ट के सामने दुकान ले ली गयी तब भी संजय ने बड़ी संजीदगी और प्रोत्साहन से काम को संभाला। संजय गुप्ता का विवाह 1984 में नीलम गुप्ता से हुआ। इनके दो पुत्र संयम और सिद्धांत हैं।
संजय भी उस समय युवा ही थे और घर में बच्चे भी बढ़ रहे थे तो उस जमाने में जब कपड़े के ब्रांड्स का बोलबाला नहीं था। साड़ी संसार से ही साड़ियों की ब्रांड की एक श्रंखला को इन्होंने बाजार में लाकर “ला जरदोज़िया” के नाम से प्रस्तुत किया जो संभवतया बरेली और पूरे रुहेलखंड में साड़ियों के लिए पहला ब्रांडेड नाम था। उस जमाने में साड़ियों, लहंगा, सूट पर हाथ की एंब्रॉयडरी का काम होता था। वह जमाना मशीनों का नहीं था। तो सौ प्रतिशत हाथ की ही कारीगरी कपड़ों पर सजती थी। साड़ी संसार के काम में 150 से अधिक जरदोजी के कारीगर दिन रात लगे रहते थे।। वह दौर भी इमानदारी का था। कभी कपड़े की घटतौली नहीं होती थी। कारीगर शांत स्वभाव के थे। दुकान वालों से के साथ संबंधों की विश्वसनीयता को बनाए रखते थे।दुकान वालों ने और कारीगरों ने खूब काम कर के साथ-साथ अपने जीवन स्तर को उठाया। यह संबंध इतने आत्मीय थे कि परिवार में खुशी और गम के मौके भी साझा किए जाते थे। राजेश गुप्ता लगातार 45 साल तक हर हफ्ते दो दिन का टूर बनाकर बाहर काम पर जाते थे। कपड़ा बाहर से स्वयं लाते, तैयार माल को खुद बड़े बक्सों में भरकर पहुंचाने जाते।दौरे से लौटते ही अगले हफ्ते के जाने के लिए टिकट बुक हो जाते। फर्स्ट क्लास ट्रेन का कूपा इनके माल के बक्सों से भर जाता था। राजेश गुप्ता के पास अपनी इन यात्राओं के चालीस साल के हर हफ्ते की रेलवे के टिकट जमाने तक संभले रहे।
जितेश गुप्ता व रोशी गुप्ता
इसी बीच राजेश गुप्ता ने अपने मामा के साथ मिलकर अपनी बहन सरोज का विवाह बदायूं के शिव चरण लाल सर्राफ के यहां महेश चंद्र गुप्ता से किया। महेश चंद गुप्ता का बदायूं टिकट गंज के पास कपड़े का कारोबार था। राजेश गुप्ता के पिता रामचरन लाल का निधन 1972 में हुआ और माता बर्फों देवी का निधन 1982 में हुआ। बरेली में बाजार बृहस्पतिवार को बंद रहता था तो राजेश गुप्ता छुट्टी वाला दिन परिवार के साथ गुजारते थे।ईश्वर ने भी राजेश गुप्ता की व्यस्तताओं को देखते हुए उनके लिए बृहस्पतिवार का ही दिन चुना। राजेश गुप्ता की सभी संताने बृहस्पतिवार के ही दिन पैदा हुईं और उन संतानों के विवाह भी बृहस्पतिवार को ही हुए।
साड़ी संसार मॉर्डन बरेली और आसपास के इलाके की एक शानदार दुकान थी। लगभग 35 फुट लंबे वाले शटर की दुकान पूरे बड़े बाजार में इनके जैसी कोई और नहीं थी। इस दुकान के पीछे एक मकान भी इन्होंने ले लिया था जिसमें जरदोजी का काम चलता रहता था।त्वरित सप्लाई वाले ऑर्डर वहीं बनते थे। सुबह से शाम छह बजे तक होलसेल का काम होता था और शाम छह बजे के बाद अपॉइंटमेंट के साथ रिटेल का काम होता था। इसी बीच 2007 में एंब्रॉयडरी की मशीनों का आगमन हो गया। इसमें काम जल्दी होता था और सस्ता भी पड़ता था। सस्ता होने के कारण बाजार में मशीनों के काम की मांग जोर पकड़ने लगी।

बरेली का भी विस्तार होने लगा था।सिविल लाइंस में साड़ियों के अच्छे शोरूम आ गए थे। घर में बच्चे भी बड़े होने लगे थे। 1998 में रामपुर बाग में दो मकानों के लिए जगह ले ली गई थी। 2005 में बराबर बराबर दोनों भाइयों ने मकान बनवा कर अपने परिवार वहां शिफ्ट कर दिए। चौकी चौराहे पर सिटी प्वाइंट के पास भी जगह खरीद ली गई थी। वहां पर साड़ी संसार के नाम से एक बड़ा नया शोरूम बनवाया गया। 2011 में राजेश गुप्ता के पुत्र जितेश और संजय गुप्ता के पुत्र संयम चौकी चौराहे वाले शो रूम पर आ गए।संयम ने फैशन मर्चेन्टाइज़ में डिग्री ली है।दिल्ली के बड़े एक्सपोर्ट हाउस में रह कर अनुभव भी लिया है।इस शोरूम को इन भाइयों ने नए रूप में डिजाइन किया।

संयम गुप्ता व प्रियम गुप्ता

संजय गुप्ता के दूसरे पुत्र सिद्धांत ने होटल मैनेजमेंट किया है तो उनके लिए चौकी चौराहे पर ही साड़ी संसार के पीछे एक होटल का निर्माण कराया गया। 2013 में होटल अमाया का शुभारंभ हुआ। सिद्धार्थ अमाया होटल को संभालने लगे। संजय गुप्ता बड़े बाजार वाली दुकान का काम देख ही रहे थे।राजेश गुप्ता बड़े बाज़ार वाली और चौकी चौराहे वाली दोनों ही दुकानों पर बैठ रहे थे। भाइयों में बंटवारा 2018 में हुआ। 2019 में बड़े बाजार वाली दुकान को बंद कर संजय गुप्ता ने तनिष्क शोरूम के बराबर में किराए पर जगह लेकर रंग माया के नाम से एक ब्रांड शुरू किया। 4 अक्टूबर 2019 को रंगमाया का बरेली के बाजार में पदापर्ण हुआ। इसी बीच अय्यूब ख़ाँ चौराहे पर काशीनाथ ज्वेलर्स के नीचे काशीनाथ बैंक हुआ करता था। बैंक का जमाना लद गया था।वह जगह संजय गुप्ता ने लेकर रंगमाया का नया भव्य तीन मंजिला शोरूम बनवाया। माया रिटेल के नाम से कारोबार खोलकर रंग माया को रजिस्टर्ड कराकर एक नया ब्राण्ड नाम बरेली को दिया। बंटवारे के वक़्त पारिवारिक सहमति से अमाया होटल जितेश गुप्ता ने टेकओवर कर लिया। सिद्धांत ने इससे पहले सीबीगंज में आम्रपाली होटल खरीद कर पिनाकी के नाम से चलाया था। बाद में बीएल इंटरनेशनल स्कूल के मालिक व उद्यमी राजेश गुप्ता ने पिनाकी को खरीद लिया।

राजेश गुप्ता के पुत्र जितेश का विवाह 2008 में रोशी से हुआ। इनके एक पुत्री परिषी है और एक पुत्र पारंगत हैं।संयम का विवाह बदायूं की प्रियम वैश्य से हुआ। प्रियम भी फैशन मर्चेन्टाइज़ का कोर्स कर चुकी हैं और मार्क्स एंड स्पेंसर के लिए काम भी कर चुकी हैं।अब रंगमाया डिज़ाइनर ऑउटफिट के तहत के नाम से रंग माया के ब्रांड को आगे बढ़ा रही हैं। सिद्धांत का विवाह रामनगर की आँचल जिंदल से हुआ।सिद्धान्त ने पारिवारिक बटवारें के बाद अमाया होटल छोड़ कर सिविल कॉन्ट्रेक्टर के रूप में अपनी पहचान बनाई।उनके पास बरेली के स्टेडियम के साथ साथ और भी महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स हैं। आँचल सोशल मीडिया पर एक ब्लॉक द पैरंटहुड जनरल के माध्यम से बच्चों के लालन पालन के टिप्स दुनिया को दे रही हैं। इनके 99 K फ़ॉलोअर्स हैं। संयम के एक पुत्री मायरा श्री है व एक पुत्र कृष्णनभ हैं।सिद्धान्त और आँचल का एक पुत्र अगस्त्या हैं।

सिद्धान्त गुप्ता व आँचल गुप्ता

साड़ी संसार हो या रंगमाया, 1990 का लॉ जरदोज़िया हो या रंगमाया डिज़ाइनर ऑउटफिट।बरेली को साड़ी संसार ने साड़ियों की जो वैरायटी 1970 से देना शुरू करी तो आज तक यह सिलसिला चल ही रहा है।कलकत्ते का सिल्क का प्योर फेब्रिक और हैंड वर्क हो,जयपुर राजस्थान का बंधेज या गोटा किनारी हो, बेंगलुरु की प्योर कांजीवरम हो, चेन्नई की सिल्क साड़ियां हो, बनारस का बनारसी काम हो, सूरत के मशीनी काम और प्रिंट के लहँगे या साड़ियां हो,मुंबई की ड्रेसेज हो या बरेली की खालिस हाथ की जरदोजी हो। यह परिवार पूरे रोहिलखंड को उनकी पसंद का सामान देता ही नहीं रहा शनील की शॉल और ब्लाउज और जरदोजी को दिल्ली, पंजाब, हरियाणा व गुजरात तक पहुंचाता भी रहा। बरेली से कपड़े, जरदोजी और फैशन को दूर-दूर तक पहुंचा कर इस परिवार ने बरेली के नाम को ही रोशन ही किया है।

लेखक- डॉ राजेश शर्मा

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