केमिकल्स के जादूगर इं. प्रेम प्रकाश गुप्ता ने रचा खुश्बुओं का संसार

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  • कोल्हू कढ़ाव बनाने बेचने वाले परिवार के पुत्र प्रेम प्रकाश गुप्ता ने शिक्षा के महत्व को समझ प्रथम श्रेणियों समेत नेशनल स्कॉलरशिप प्राप्त की और कैमिकल इंजीनियरिंग कर रसायनों की दुनिया को बरेली में ईज़ाद किया।
  • भारत की पहली स्माल स्केल सेक्टर की मेन्था फैक्टरी लगाने वाले प्रेमप्रकाश गुप्ता ने इसके वेस्ट ऑयल डीमेंथोलाइज़ से भी मेंथॉल का उत्सर्जन कर लिया। तुलसा के तेल से सौंफ़ का रसायन निकाल उसका बाजार सजा दिया, तारपीन के तेल से टर्पिनियल निकाल उसके भी अवशिष्ट से टीएच ऑयल निकाल वाईपा जैसा प्रोडक्ट विकसित कर लिया। सिस थ्री हेक्सनाल को ईज़ाद कर विदेशों के बाज़ार लूट लिया।
  • खुशबुओं के संवाहक रहे प्रेमप्रकाश गुप्ता ने अपनी व्यवसायिक समझ के चलते विज्ञापन के क्षेत्र में भी उस जमाने में जागरूक थे।वाईपा की बड़ी सी बोतल तब कोहाड़ापीर सड़क पर बरेली वालों के लिए आकर्षण का केंद्र थी।
  • बद्रीनाथ धाम में बरेली वालों की धर्मशाला के निर्माण के साथ साथ अपना घर वृद्धाश्रम की नींव रखने वाले तथा गण्यमान्य लोगों के सहयोग से बासु बरल सरस्वती विहार स्कूल को विस्तार देने वाले, रोटरी क्लब ऑफ बाँस बरेली की स्थापना करने वाले प्रेम प्रकाश गुप्ता चैरिटी के कामों में हमेशा आगे रहे।
  • प्रेमप्रकाश गुप्ता मैनेजमेंट और इंजीनियरिंग कॉलेज भी प्रेमप्रकाश गुप्ता ने बरेली को दिये।
  • रसायनों, खुशबुओं के साथ साथ शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हुए और समाजसेवी के रूप में काम करते हुए प्रेमप्रकाश गुप्ता आज भी क्रिएटिव हैं। अभी भी बाज़ार में नये उत्पाद लाने के लिये उनकी बेचैनी उनकी शिक्षा और खोजी तबियत को दर्शाती है।

LIMELIGHT MEDIA BAREILLY: बरेली के कन्हैया टोला में बृजलाल लाला अपने परिवार के साथ रहा करते थे। अंग्रेजों के जमाने से ही उनका कोल्हू कड़ाव का बनाने, बेचने और किराए पर देने का काम था। लाला बृजलाल के दादा टिपरचंद थे, जो किसी राजा के सेनापति हुआ करते थे। बहुत साल पहले ही टिपरचंद का परिवार हल्द्वानी से बरेली आकर बस गया था। उस जमाने में शुगर मिल वगैहरा तो थीं नहीं, सो खांडसारी का काम होता था।

PIC: राम किशोर गुप्ता

इस काम में गन्ने को पेरने के लिए कोल्हू कढ़ाव का इस्तेमाल होता था। संपन्न लोग तो अपना खरीद लेते थे, लेकिन यह किराए पर भी मिलता था। बृज लाल के पुत्र राम किशोर गुप्ता भी नैनीताल रोड कोल्हू कढ़ाव का काम करते रहे। इसी के साथ-साथ बरेली के आसपास के इलाकों के गांवों में भी इन्होंने अपने सामान की बिक्री और किराए पर देने का केंद्र भी बनाया।

राम किशोर गुप्ता का विवाह ज्वाला देवी से हुआ। इनके पाँच पुत्र व दो पुत्रियां हुई। पुत्रों में सबसे बड़े सूर्य प्रकाश गुप्ता, दूसरे चंद्र प्रकाश गुप्ता, तीसरे हरि प्रकाश गुप्ता, चौथे प्रेम प्रकाश गुप्ता व सबसे छोटे आनंद किशोर गुप्ता हुए। बेटियों में तारावती देवी और केशव कुमारी हुईं। सूर्य प्रकाश, चंद्र प्रकाश, हरि प्रकाश अपने पिता के पुश्तैनी व्यवसाय में ही लग गए और इस कार्य को आसपास के क्षेत्रों में भी विकसित किया। इसी के साथ साथ इन लोगों ने बरेली में कास्ट आयरन का काम भी शुरू किया जो उस समय का नया काम था। सबसे छोटे आनंद किशोर ने आयुर्वेदिक कॉलेज से शिक्षा ली और डॉक्टर बन गए।

घर में व्यवसाय के चलते शिक्षा का माहौल ज्यादा नहीं था। राम किशोर गुप्ता के चौथे पुत्र प्रेम प्रकाश गुप्ता गुलाब राय स्कूल में पढ़ते थे। पढ़ने के दौरान एक शिक्षक चन्द्र प्रकाश अग्रवाल ने प्रेम प्रकाश पर स्नेह का हाथ रखा और उन्हें शिक्षा का महत्व बताया। अपनी प्रेरणादायक बातों और सीखों से चन्द्र प्रकाश अग्रवाल ने प्रेम प्रकाश के हृदय और मानस में शिक्षा के प्रति लगाव को इतना समाहित कर दिया. इसका नतीजा रहा प्रेम प्रकाश हाई स्कूल की परीक्षा में 1961 में उनकी प्रथम श्रेणी आई और साथ ही उन्हें नेशनल स्कॉलरशिप भी उस जमाने की 376 रू की मिली. जब सोने का दाम 80 रू प्रति तोला था।

PIC: ज्वाला देवी

स्कूल से 376 रू घर लाते हुए प्रेम प्रकाश के पैर थरथरा रहे थे। इतनी बड़ी उपलब्धि इस गुप्ता परिवार को पहली बार मिली थी और यह प्रेरणा यहीं तक नहीं रुकी। 12वीं की कक्षा में भी प्रेम प्रकाश गुप्ता ने प्रथम श्रेणी प्राप्त की। चूँकि प्रेम प्रकाश ने तेरह साल की उम्र में ही हाईस्कूल कर लिया था सो ये अंडर एज थे। बरेली कॉलेज से उन्होंने बीएससी की और आईआईटी रुड़की में उन्हें इंजीनियरिंग में एडमिशन मिल गया।

उस समय वह रुड़की विश्वविद्यालय कहलाया करता था और यह एशिया का सबसे पहला इंजीनियरिंग कॉलेज था। इसको थॉमसन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग कहा जाता था। ब्रिटिश लोगों ने ही इसे बनवाया था। क्योंकि इसी इलाके में गंगा नदी से बड़ी नहर निकालने के लिए कैनाल बनानी थी तो सैकड़ों के हिसाब से इंजीनियर चाहिए थे, तो यहीं इंजीनियर बनते और उनको यहीं काम मिल जाता था। 1969 में प्रेम प्रकाश गुप्ता ने अपनी कैमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की। फिर यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान से एमबीए किया। उस जमाने में पूरे भारत में केवल तीन ही एमबीए कॉलेज थे।

अपनी पढ़ाई खत्म करके प्रेम प्रकाश गुप्ता बरेली आए। जमाना बदल रहा था। कोल्हू कढ़ाव का काम लगभग समाप्त हो रहा था। प्रेम प्रकाश अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई को ही अपना कैरियर बनाना चाहते थे, तो किसी नए काम की खोज में थे। तब इनकी बहन केशव कुमारी के पति स्वामी शरन ने इनको मशवरा दिया कि एक रसायन होता है मेंथाल उसे सभी बाम वगैरह में इस्तेमाल किया जाता है तो यह इस पर ध्यान दें।

स्वामी शरन बी फार्मा थे लेकिन मेंथाल के बारे में उन्हें और ज्यादा जानकारी नहीं थी। अब प्रेम प्रकाश गुप्ता चले गए रुड़की के अपने कॉलेज और वहां की लाइब्रेरी में बैठकर कई दिनों तक उन्होंने रिसर्च स्टडी की और बहुत जानकारियों को इकट्ठा करके उन्होंने फैसला किया कि वह मेंथाल का ही काम करेंगे। उस समय भारत में यह काम न के बराबर था। बल्कि कहा जाए तो प्रेम प्रकाश गुप्ता ने ही इस कार्य की शुरुआत की।

मेंथाल के लिए मेंथा फसल का होना जरूरी था। तब बरेली के कांग्रेस के नेता राममूर्ति जो देवमूर्ति के पिताजी थे, ने प्रेम प्रकाश की मदद की। राममूर्ति के फार्म भोजीपुरा के इलाके में थे। उन्होंने प्रेम प्रकाश को साथ ले उस इलाके के किसानों को मेंथा की फसल बोने के लिए प्रेरित किया।

1971 में प्रेम प्रकाश गुप्ता ने अपनी मशीनों को इजाद किया। अपने तीनो बड़े भाईयों को साथ लेकर इन्होंने मेंथा का बिजनेस शुरू किया। इनके परिवार में भी लेथ मशीनों का इस्तेमाल कोल्हू कढ़ाव को बनाने में होता था। तो उन्हीं मशीनों पर इन्होंने अपने प्लांट को तैयार करवाया। मेंथा की खेती रामपुर, संभल, बिलासपुर में भी होती थी।

ER. PREM PRAKASH GUPTA
PIC: Er. PREM PRAKASH GUPTA, MADHULINA GUPTA, SHRADDHA KHANDELWAL & POOJA SINGHAL

प्रेम प्रकाश गुप्ता की मेंथा की स्माल स्केल सेक्टर की यह फैक्ट्री पूरे भारत में पहली फैक्ट्री थी। बरेली के टिबरीनाथ मंदिर के आसपास का पूरा ग्राउंड उस समय खाली था। तो मंदिर ट्रस्ट की तरफ से यह जगह इन्होंने किराए पर ली और फैक्टरी की शुरुआत कर दी। टिबरीनाथ के पीछे पूरे इलाके में मेंथा की फसल भरी रहती थी। अब इन्होंने मेंथा फसल से तेल निकालकर उसका क्रिस्टल बनाने और बेचने का काम शुरू किया।

तेल निकाल लेने के बाद जो डीमेंथोलाइज़ ऑयल होता पहले उसे फेंक दिया जाता था, लेकिन प्रेम प्रकाश गुप्ता ने उस बेकार डीमेंथोलाइज़ ऑयल से भी ऑयल प्रोसेस कर मेंथाल निकालना शुरू कर दिया। उस जमाने में पिपरमेंट जापान में ही बनता था और पूरी दुनिया को जाता था। बरेली में प्रेम प्रकाश गुप्ता ने अपनी समझ से ही खुद मशीनें इजाद कीं और बेकार डीमेंथोलाइज़ तेल में से भी मेंथॉल निकालना शुरू कर दिया। यह इनकी बड़ी जीत थी।

PIC: PREM PRAKASH GUPTA FACTORY OUTSIDE LOOK

अब प्रेम प्रकाश ने रामपुर, मुरादाबाद, संभल के लोगों को प्रेरणा दी कि वह भी इस बिजनेस को करें और क्योंकि इस इलाके में यह फसल बहुतायत होती है, तो इन्होंने लोगों को मेंथॉल का तेल निकालने के प्लांट लगवाए। अब यह इन लोगों से वह बचा हुआ बेकार डीमेंथोलाइज़ ऑयल खरीदते थे और उसमें से मेंथॉल को प्रोसेस करते थे। इस काम ने इनको बहुत मुनाफा दिया। अब जब सब लोग मेंथा का ही काम करने लगे और मेंथा के बाजार में उतार-चढ़ाव ज्यादा होने लगा, तब इन्होंने अपनी फैक्ट्री में मेंथा की फसल में से मेंथॉल निकालना बंद कर दिया। मेंथा के बाजार का भाव भी रोज ऊंचा नीचा होता था और इस काम में अब दुर्घटना होने के आसार ज्यादा थे। उस जमाने में मेंथा तेल पर डकैती भी पड़ जाती थी। तो प्रेम प्रकाश गुप्ता ने यह काम छोड़ दिया।

इसी बीच बीडीए बरेली ने एक कॉलोनी टिबरीनाथ मंदिर की इस जमीन पर बनाने की सोची। तब त्रिलोक चंद सेठ और राजकुमार अग्रवाल ने प्रेम प्रकाश से कहा कि वे यह जमीन छोड़ दें क्योंकि बीडीए यहां एक आवासीय कॉलोनी बनाना चाहता है। प्रेम प्रकाश गुप्ता ने सहर्ष ये बात स्वीकार कर ली. प्लांट को छोड़कर बाकी जमीन से उन्होंने अपना कब्जा हटा लिया।

प्रेम प्रकाश गुप्ता का विवाह 1976 में मधुलीना गुप्ता से हुआ था। 1978 में जब पहली संतान का जन्म होना था तब बरेली की मशहूर स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुधा गुप्ता के अस्पताल में इनका केस होना था। डॉक्टर सुधा गुप्ता बेहद संजीदा और कार्य कुशल डॉ रही हैं। लेकिन दुर्भाग्य से यह केस बिगड़ गया और बिगड़ ही नहीं गया बेटा तो हाथ से गया ही मधुलीना गुप्ता की दोनों किडनी भी अचानक से फेल हो गईं। इस बीमारी का इलाज तुरंत ही चाहिए था। डायलेसिस होना था और इसके इलाज के लिए पीजीआई चंडीगढ़ ही एकमात्र स्थान था। लेकिन इतने कम समय में वहां जाना नामुमकिन था।

प्रेम प्रकाश गुप्ता ईश्वर में विश्वास रखते हैं। उन्होंने भगवान बद्री विशाल को याद किया। तब एक खुल्लर साहब बरेली की वायु सेना क्षेत्र के बड़े अधिकारी थे। बरेली के मेलोडी हाउस के मालिक बुद्धदेव जी की सहायता से संदेश मिला कि एक हेलीकॉप्टर जो चंडीगढ़ जा रहा था लेकिन बादल ज्यादा होने की वजह से उसे बरेली में उतरना पड़ा है। अगर डिफेंस मिनिस्ट्री की इजाजत मिल जाए तो पेशेंट को चंडीगढ़ भेजा जा सकता है। जिलाअधिकारी बरेली के यहां त्रिलोकचंद्र सेठ और राजकुमार अग्रवाल पहुंच गए और 15 मिनट में डिफेंस मिनिस्ट्री से मरीज को ले जाने की इजाजत मिल गई। राजकुमार अग्रवाल शहर के एक बड़े डॉक्टर डॉ सतीश चंद्र को भी साथ लेकर आ गए कि यह मरीज के साथ जाएंगे।

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प्रेम प्रकाश गुप्ता की पत्नी इन मित्रों की सहायता के चलते आधे घंटे में पीजीआई चंडीगढ़ पहुंच गईं और उनका इलाज शुरू हो गया। परिवार वाले डॉ जीडी तनेजा के साथ अगले दिन सुबह पहुंचे लेकिन पत्नी का स्वास्थ संभलने लगा था और डॉक्टर्स ने कहा कि इनको हम नहीं स्वयं ईश्वर ठीक कर रहें हैं। इस घटना ने प्रेम प्रकाश गुप्ता को ईश्वर और अपने मित्रों के समक्ष सदा के लिए नतमस्तक कर दिया। बाद में प्रेम प्रकाश गुप्ता और मधुलीना गुप्ता के दो जुड़वाँ पुत्रियां श्रद्धा और पूजा हुईं।

जब इन्होंने मेंथा का काम बंद कर दिया था तब बदायूं में पैदा होने वाले तुलसा के तेल से सौंफ का तेल बनाने की टेक्नोलॉजी को प्रेम प्रकाश गुप्ता ने ईज़ाद किया। तुलसा के तेल में कई रसायन होते हैं। प्रेम प्रकाश गुप्ता ने इस में से सौंफ़ की गंध का जो रसायन होता है उसको अलग किया। इसको एनिसऑयल कहते हैं। इनका यह तेल पूरे भारत में बिकने लगा। इसकी फैक्टरी बाद में उन्होंने बरेली के दोहना में प्रेम प्रकाश गुप्ता एंड ब्रदर्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से लगाई। इस तेल का उपयोग अल्कोहल की बिटरनेस को कम करने के लिए ब्लेंडिंग के तौर पर किया जाता है। स्वाद में यह बहुत मीठा और सौंफ़ की गंध लिए होता है

दरअसल यह तेल मसालों में प्रयोग होने वाली स्टार या चकरी से भी निकलता है लेकिन उसमें कुछ ऐसे अवयव होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। इनका यह एनिस ऑयल पूर्णता प्राकृतिक है। यही नहीं जब इन्होंने एथेनॉल निकाला तो भारत में इन्होंने 99.5 प्रतिशत प्यूओरिटी वाला बहुत कम दाम में सप्लाई करना शुरू कर दिया। जिससे इस प्रोडक्ट का इंपोर्ट होना बंद हो गया। जबकि इनके इस प्रोडक्ट को इस दाम में देने से पहले यह विदेश से आया करता था।

1991 में प्रेम प्रकाश गुप्ता ने एक केमिकल और खोजा जो भारत में नहीं बनता था और विदेशों में बहुत महंगा बिकता था। यह रसायन था सिस थ्री हेक्सनाल। यह जिस पौधे से निकाला जाता था उसमें इसकी लेश मात्र उपस्थिति होती थी और इसका उत्सर्जन बेहद मुश्किल काम था। लेकिन प्रेम प्रकाश गुप्ता ने यह भी कर लिया। इस रसायन को उन्होंने एक्सपोर्ट किया. यह प्रोडक्ट परफ्यूम बनाने के काम आता है।

बाद में दोहना की ही फैक्ट्री में तारपीन के तेल से एक रसायन टर्पिनियल निकालने लगे। यह अगरबत्ती बनाने में खुशबू के तौर पर इस्तेमाल होता है। अब इसका भी एक वेस्ट प्रोडक्ट होता है टीएच ऑयल। प्रेम प्रकाश गुप्ता ने इस अवशिष्ट ऑयल का प्रयोग करके वाइपा बनाया। वाईपा एक क्लीज़निंग प्रोडक्ट (सफाई का प्रोडक्ट) है। उस जमाने में वाइपा अपनी तरह का पहला क्लीज़निंग प्रोडक्ट्स था। इसका प्लांट पहले उन्होंने अपनी कोहडापीर वाली जमीन पर लगाया।

कुदेशिया फाटक से कोहड़ापीर जाने वाली सड़क पर इनके प्लांट के बाहर वाईपा की एक बड़ी बोतल बरेली वालों के लिए आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी। यह वह जमाना था जब विज्ञापन का बाजार सजा नहीं था। उस समय इस तरह की बहुत बड़ी सी बोतल का सड़क पर विज्ञापन भी प्रेम प्रकाश गुप्ता की बाजार की व्यवसायिक समझ को दर्शाता है।

VAIPA IMAGE
PIC: DUMMY MODEL OF WAIPA BOTTLE

उस जमाने में अमर उजाला अखबार के मुख्य पृष्ठ के कोने पर वाईपा का विज्ञापन “पोछे के पानी में डाला जाए,फर्श को साफ चमचम बनाए” बरेली वालों को शायद अभी भी याद होगा। आज की तारीख तक प्रेम प्रकाश गुप्ता का यह व्यवसाय भारत के सभी बाजारों के साथ विदेश एक्सपोर्ट का भी हो गया है। वाईपा फ्लोर क्लीनर पाँच खुशबूओं में गुलाब, बेला, खस, नींबू और पाइन के रूप में आ रहा है। अब बाथरूम क्लीनर, फ्लोर क्लीनर, ग्लास क्लीनर,किचन क्लीनर और रूम फ्रेशनर के रूप में सामने आ रहा है। अपनी खुशबू क्वालिटी और सबसे सस्ता होने के कारण इसने अपना स्थान बाजार में प्रमुखता से बनाया हुआ है।

इसी समय इन्होंने शहद के छत्ते से वैक्स बनाना भी शुरू किया। शहद की मक्खी के छत्ते से प्यूरिफाई करके अपने इजाद किए संयंत्रों से यह वैक्स बनाते थे। इनके वैक्स की क्वालिटी को पोंड्स जैसी कंपनी ने भी अप्रूव कर दिया था। लेकिन यह काम भी बाद में इन्होंने छोड़ दिया।

मेंथा से लेकर क्रिस्टल, डीमेंथोलाइज़ ऑयल, सिस थ्री हेक्सनाल, टर्पिनियाल, टीएच ऑयल तक का रासायनिक सफ़र तो प्रेम प्रकाश गुप्ता ने किया ही है लेकिन सबसे ज्यादा महारत खुशबू में समायोजन की है। तमाम रसायनों के मिश्रण से खुशबुओं का निर्माण भी प्रेम प्रकाश गुप्ता ने खुद ही किया है।

कन्हैया टोला वाले घर को छोड़कर बाद में गांधीनगर में प्रेम प्रकाश गुप्ता ने घर बनवाया और अपने भाइयों सूर्य प्रकाश और हरि प्रकाश के परिवार के साथ आज भी वो इसी घर में रहते हैं। इस घर में परिवार की सुख-सुविधाओं का उन्होंने बहुत ख्याल रखा है। घर में ही स्विमिंग पूल, गोल्फ कोर्स और बिलियर्ड्स टेबल उनके शौकों को भी दर्शाती है। सूर्य प्रकाश गुप्ता के दो पुत्र ज्ञानेंद्र प्रकाश और सुधीर गुप्ता के साथ एक बेटी सुषमा हुईं। हरि प्रकाश गुप्ता के पुत्र एंब्रॉयडरी का काम करते रहे। उनका नाम बेटा निरेश और उनकी बेटी बेटी नीलिमा हैं। प्रेम प्रकाश गुप्ता की दो पुत्रियां श्रद्धा और पूजा हैं। श्रद्धा का विवाह केसीएमटी के विनय खंडेलवाल से हुआ और पूजा का विवाह इंजीनियर शोभित शिंघल से हुआ। आनंद गुप्ता अपनी प्रैक्टिस सीताराम कूंचा और एक मीनार की मस्जिद के पास अपने क्लीनिक में करते हैं।

SWIMING POOL
PIC: SWIMMING POOL AT RESIDENCE

1998 में प्रेम प्रकाश गुप्ता ने शहर के गणमान्य व्यक्तियों के साथ मिलकर एक ट्रस्ट बनाया जिसका नाम सीनियर सिटीजन वेलफेयर ट्रस्ट रखा। प्रेम प्रकाश गुप्ता इसके संस्थापक अध्यक्ष रहे हैं। इसके संस्थापक सचिव राम नारायण अग्रवाल रहे। इसके तहत एक वृद्धा आश्रम “अपना घर’ के नाम से संचालित किया गया। इसका उद्देश्य था कि सीनियर सिटीजन की अपनी एक दिनचर्या और जीवनशैली होती है। इस वय के सभी लोगों के लिए एक साथ रहने की परिकल्पना की गई थी। लेकिन यह आश्रम अपना घर नहीं चला क्योंकि लोगों को लगता था कि यदि वह इस में जा कर रहेंगे तो उनके पोते पोतियो के विवाह में समस्या आएगी।

2003 में इस बिल्डिंग में परिवर्तन कराकर बासु बरल सरस्वती विहार स्कूल के नाम से एक सीबीएसई का स्कूल कक्षा 6 से 12 तक का यहां खोल दिया गया। बासु बरल नाम रखने के पीछे प्रेम प्रकाश गुप्ता का यह तर्क था कि बरेली को बासु बरल ने ही बसाया और बाद में इसका नाम बिगड़ कर बांस बरेली हो गया. इनके इस कार्य में इनकी ट्रस्ट के सभी साथियों ने इनका सहयोग किया और समवेत स्वर में इसका अनुमोदन किया। 2005 में प्रेम प्रकाश गुप्ता ने रोटरी क्लब आफ बांस बरेली की नींव इसी भावना से रखी। यह क्लब आज भी चल रहा है।

PREM PRAKASH GUPTA COLLEGE
PIC: PREM PRAKASH GUPTA MGT. & ENG. COLLEGE

1998 में प्रेम प्रकाश गुप्ता ने अपनी प्रेम प्रकाश गुप्ता चेरिटेबल फाउंडेशन के तहत 120 बीघा का एक प्लॉट शाहजहांपुर रोड पर खरीदा था। लेकिन इस पर निर्माण इन्होंने अपनी बेटियों का विवाह करने के बाद 2008 में किया। यहां पर इन्होंने प्रेम प्रकाश गुप्ता मैनेजमेंट एवं इंजीनियरिंग कॉलेज को खोला। अपने इस कॉलेज में 2012 में उन्होंने इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजिनियर्स का बरेली चैप्टर भी खोला।

इंस्टीट्यूट ऑफ इंजिनियर्स चेप्टर को भी प्रेमप्रकाश अपने इंजीनियर साथियों की मदद से अथक प्रयासों से बरेली लाये। इस कॉलेज के चेयरमैन प्रेम प्रकाश गुप्ता है। लेकिन इस कॉलेज का मैनेजमेंट का काम इनके दामाद विनय खंडेलवाल देखते हैं। आज भी ज्ञान प्रकाश गुप्ता के पुत्र अभिनव गुप्ता और प्रेम प्रकाश गुप्ता की पुत्री पूजा गुप्ता शिंघल प्रेम प्रकाश गुप्ता के व्यापार और बाजार को संभाल रहे हैं। प्रेम प्रकाश गुप्ता की दूसरी पुत्री श्रद्धा गुप्ता खंडेलवाल अपने पति विनय खंडेलवाल के साथ प्रेम प्रकाश गुप्ता इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेज की देखभाल कर रहीं हैं।

संयुक्त परिवार की भावना से अभिभूत होकर प्रेम प्रकाश गुप्ता ने अपने भाईयों के परिवारों को अपने साथ आज तक जोड़े रखा है।सूर्य प्रकाश गुप्ता के पुत्र दोनों पुत्र ज्ञानेंद्र गुप्ता और सुधीर गुप्ता और ज्ञानेंद्र के दोनों पुत्र अभिषेक गुप्ता और अभिनव गुप्ता आज भी इस पूरे बिजनेस को देख रहे हैं और एक ही घर मे साथ ही रहते हैं।

PIC: DHARAMSHALA IN BADRINATH

प्रेम प्रकाश गुप्ता ने एक चैरिटेबल ट्रस्ट प्रेम प्रकाश गुप्ता चैरिटेबल फाउंडेशन के नाम से बनवाया। सन 2003 से 2005 के बीच इसके तहत उन्होंने बद्रीनाथ धाम में एक धर्मशाला का निर्माण करवाया। जब इस धर्मशाला की जमीन खरीदकर निर्माण शुरू करवाया तो पूरे गढ़वाल में धर्म स्थलों के पास निर्माण पर सरकारी रोक लग गयी। प्रेम प्रकाश गुप्ता के मन में धर्मशाला बनवाने की इच्छा बलवती थी तब इस ट्रस्ट की कोशिशों और वकील मंगल सिंह चौहान की कर्मठ कार्यशैली के चलते धर्मशाला के निर्माण की अनुमति मिली।इस कानूनीअनुमति ने दी इनको पूरे कुमाऊं गढ़वाल में ख्याति दी और श्री बद्रीश कृपा धर्मशाला बरेली वालों की धर्मशाला के नाम से धर्मशाला आज भी बद्रीनाथ में बस स्टैंड के सामने ही स्थित है और सुचारू रूप से दर्शनार्थियों की सेवा कर रही है। यह पूरी धर्मशाला अर्थक्वेक फाउंडेशन से बनी है। ताकि कभी कोई नुकसान ना हो।

आज भी बद्रीनाथ वाली धर्मशाला को प्रेम प्रकाश गुप्ता अपनी बेटी पूजा के साथ उसकी देखरेख करते हैं। अपने पिता राम किशोर गुप्ता और माता ज्वाला देवी की मूर्तियों को बद्रीनाथ धाम धर्मशाला के साथ साथ प्रेमप्रकाश गुप्ता ने अपने कॉलेज में एक समाधि स्थल बनवा कर और बासु बरल विद्यालय में एक भवन बनवा कर उसके सामने स्थापित करवाया है। प्रेम प्रकाश गुप्ता ने बरेली व आसपास के जिलों की कई शैक्षणिक संस्थानों को भी अपने ट्रस्ट के द्वारा आर्थिक सहयोग प्रदान किया। विशेष रूप से रुड़की विश्व विद्यालय के लिए उन्हें कुछ करके बहुत सुख प्राप्त हुआ, क्योंकि इसी विश्व विद्यालय से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी।

पूरी जिंदगी तमाम खुशबू और केमिकल को ईज़ाद करने वाले प्रेम प्रकाश गुप्ता रिटायरमेंट की उम्र में भी अपने ईज़ाद करते रहते हैं। उनकी खोजी प्रवृत्ति आज भी जोरदार है। अब यह एक नए प्रोडक्ट पर काम कर रहे हैं। गर्म कपड़ों को संभालने के लिए कि उसमें कीड़ा ना लगे और कपड़े खराब ना हो तो नेफ़थलीन की गोलियों का इस्तेमाल कपड़ों के बीच में किया जाता है। लेकिन जब सर्दियों में ये कपड़े निकाले जाते हैं तो नेफ्थलीन की गंध इतनी तेज़ होती है कि उसे लोग बर्दाश्त नहीं कर पाते और कपड़ों को धूप दिखाई जाती है या धोया जाता है।

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अब प्रेम प्रकाश गुप्ता इन नेप्थलीन बॉल्स का सब्सीट्यूट ढूँढ़ लाये हैं, जिसमें नेफ्थलीन का प्रयोग नहीं होगा लेकिन इन बॉल्स में खुशबू भी होगी और कीड़ा भी नहीं लगेगा। यह प्रोडक्ट जल्द ही बाजार में आने वाला है. अपनी पढ़ाई को यदि आप ठीक ढंग से इस्तेमाल करते हैं तो, वह आपको बहुत ऊंचे मुकाम तक ले जाती है। प्रेम प्रकाश गुप्ता की सजगता और ईश्वर में उनकी अगाध श्रद्धा के साथ उनकी शिक्षा के तमाम प्रयोगों ने उनको जीवन के ऊंचे मुकाम तक पहुंचाया।

  • गुज़िश्ता बरेली
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