कलाप्रेमी डॉ बृजेश्वर सिंह बरेली को नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा का रिमोट सेंटर बना चुके हैं
BAREILLY LIMELIGHT: पीसीएस अधिकारी आर.बी. सिंह और उनकी पत्नी गायत्री देवी को तीन पुत्र होते हैं। बृजेश्वर, अखिलेश्वर और भुवनेश्वर। सभी बच्चे पढ़ाई में अच्छे होते हैं। बृजेश्वर सिंह लखनऊ के सिटी मांटेसरी में अपनी बेसिक पढ़ाई करके बरेली के गवर्नमेंट इंटर कॉलेज से 12वीं की कक्षा पास करते हैं। पिता की पोस्टिंग बरेली होती है फिर बरेली के आसपास के इलाकों में भी में तैनात रहते हैं। यह परिवार 1997 में गुलाब नगर में रहता है. बाद में सरकारी मकान लेने के बजाय एक घर रामपुर बाग में मिल जाता है। सरकारी घर न होने के कारण पिता की पोस्टिंग की हेराफेरी से मकान पर असर नहीं पड़ता और बच्चों की पढ़ाई भी सुचारू चलती रहती है।
बृजेश्वर डॉक्टर बन कर बरेली आते हैं और मगर थियेटर की दुनिया को भी बसाते हैं
बृजेश्वर सिंह का चयन मेडिकल के लिए हो जाता है. वह 1986 में किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ से एमबीबीएस करने के लिए रवाना हो जाते हैं। मेडिकल पूरा करने के बाद एक साल में बाल रोग में विशेषज्ञता हासिल करने का प्रयास करते हैं, लेकिन उसमें उनका मन नहीं रमता है। इसके बाद वह अस्थि रोग विशेषज्ञ के रूप में अपनी पढ़ाई को पूरा करते हैं। कानपुर से अपने एमएस को पूरा करने के बाद दिल्ली के दिल्ली ट्रामा सेंटर में ढाई वर्ष काम करके अपनी योग्यता को साबित करते हैं।
डॉ बृजेश्वर सिंह ने श्री सिद्धि विनायक अस्पताल की शुरुआत की
पिता का मन था कि बृजेश्वर सिंह बरेली को अपनी कर्मभूमि बनाएं तो बृजेश्वर अब डॉक्टर बृजेश्वर सिंह बनकर बरेली आकर गंगाचरण अस्पताल को ज्वाइन कर लेते हैं। अपने कुशल अनुभव और काम के प्रति अपनी समग्रता के चलते डॉ. बृजेश्वर सिंह बहुत कम समय में ही बरेली में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बना लेते हैं। इसी बीच इनकी मुलाकात दो व्यवसायियों से होती है।ये चरणजीत सिंह और संजीव अग्रवाल हैं। चरणजीत सिंह के पेट्रोल पंप व एक पेंसिल बनाने की फैक्ट्री होती है और संजीव अग्रवाल भी बड़े व्यवसाई होते हैं। यह दोनों डॉ. बृजेश्वर सिंह को राय देते हैं कि बरेली में आपका इतना नाम है तो आप अलग से अपना अस्पताल क्यों शुरू नहीं करते। अब यह तीनों मिलकर एक अस्पताल का निर्माण करते हैं श्री सिद्धिविनायक अस्पताल और इसकी विधिवत शुरुआत दिसंबर 2004 में तत्कालीन कमिश्नर दीपक त्रिवेदी उद्घाटन करके करते हैं।
थिएटर और लेखन से हो गयी दिली मुहब्बत
डॉ बृजेश्वर सिंह की बचपन से ही पढ़ाई के साथ-साथ कला के विभिन्न आयामों में बेहद रूचि थी। साहित्य, पेंटिंग, थिएटर, सिनेमा, गायन, नृत्य सब के सब बृजेश्वर को बहुत लुभाते थे। लखनऊ में अपनी पढ़ाई के दौरान वह हिंदी की मशहूर लेखिका शिवानी के संपर्क में आए। शिवानी ने उनको अच्छा साहित्य पढ़ने की राय दी। बृजेश्वर ने ढूंढ ढूंढ कर अच्छा साहित्य खूब सारा पढ़ा। गुनाहों के देवता से शुरू हुआ सफर फिर रुका ही नहीं।
इसी बीच लेखिका मृदुला गर्ग को उन्होंने उनके साहित्य पर रीझ कर एक चिट्ठी लिखी। मृदुला गर्ग ने भी उनको साहित्य के प्रति उत्साहित किया। फिर तो धर्मवीर भारती, निर्मल वर्मा सहित लगभग बहुत सारे लेखको को हिंदी और अंग्रेजी दोनों में पढ़ा। जब दिल्ली के ट्रामा सेंटर में बृजेश्वर अपनी सेवाएं दे रहे थे तब दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में उनका अकसर जाना होता था। बृजेश्वर अपना दिल इस कैंपस में हार बैठे और इन्हें थिएटर से ही मोहब्बत हो गई।
दिल्ली के एनएसडी से सीखीं अभिनय और रंगमंच की बारीकियां
दिल्ली में रहकर डॉ बृजेश्वर ने सौ से अधिक नाटकों का मंचन रूबरू देखा। जब यह नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में जाते थे, तो वहां के कई लोगों से उनका दोस्ताना हो गया। जिनमें सुरेश शर्मा, मल्लिका प्रसाद, अनूप बरुआ, पराग शर्मा, सोती चक्रवर्ती, एहसान बख्श, विजयपाल वशिष्ठ मुख्यता हैं। इन्होंने बृजेश्वर सिंह को नाटक देखने और समझने की कला और नाटकों के प्रति इनकी रूचि को बढ़ाने में मदद की। इन मित्रों ने यह भी कहा कि आपको थिएटर इतना पसंद है लेकिन थिएटर के लिए काम कम हो रहा है। अब आप जहां भी रहिएगा थिएटर के लिए कुछ जरूर कीजिएगा।
2004 में श्री सिद्धिविनायक अस्पताल शुरू हो गया था। धीरे-धीरे जम भी गया। एक अस्पताल के रूप में सिद्धि विनायक की गूँज चारों ओर थी। 2006 में डॉक्टर बृजेश्वर ने दया दृष्टि चैरिटेबल संस्था की स्थापना की। इसके तहत लगभग 500 लोगों की आंखों की सर्जरी मुफ्त में की गई। इसके साथ थैलेसीमिया रोग से ग्रस्त बच्चों को भी दया दृष्टि मदद करता है। थैलेसीमिया रोग से ग्रस्त बच्चों का महीने में दो बार खून बदलना पड़ता है। यह एक दुसाध्य और महंगा काम है। थैलेसीमिया से ग्रसित लगभग 150 बच्चे दया दृष्टि की कृपा दृष्टि में अभी भी हैं।
दया दृष्टि चैरिटेबल ट्रस्ट की रखी बुनियाद
अब थिएटर का जूनून बृजेश्वर सिंह के दिल दिमाग पर सवार हुआ। दया दृष्टि के अंतर्गत बृजेश्वर सिंह ने थिएटर को विकसित करने की योजना बनाई। आईएमए की प्रशासिका अनुराधा खंडेलवाल से बात करके इस योजना को 2007 में पहली बार मूर्त रूप दिया गया। आईएमए हॉल में ही घासीराम कोतवाल और राम नाम सत्य है नाटकों से बरेली में स्तरीय नाटकों की शुरुआत हुई। बरेली के प्यासे कला प्रेमियों ने इसको हाथों हाथ लिया।
IMA हॉल बरेली में नाटकों के मंचन की हुई शुरुआत
2008 में नाटकों के समागम को पाँच दिनों तक आईएमए हॉल में लगातार किया गया। इसमें विख्यात नाटककार रोहिणी हट्टंगड़ी, मकरंद देशपांडे भी अपने नाटक लेकर आए । 2009 में यह समागम सात दिनों तक चला। थियेटर के कुमुद मिश्रा और मानव कौल जैसे बड़े नाम बरेली नाटकों के सिलसिले में आए। 2010 में दस दिनों तक आईएमए के मंच पर लगातार नाटक खेले गए और 2013 में यह समागम तेरह दिनों तक चला। बरेली तो डॉक्टर बृजेश्वर सिंह से यह तोहफा पाकर अभिभूत हो गई। बरेली के आसपास के जिलों के भी कला प्रेमियों नाटकों को देखने बरेली आते। जिस तरह बरेली को राष्ट्रीय स्तर पर प्रख्यात नाटक बरेली में देखने को मिल रहे थे उसी प्रकार पूरे भारत के थिएटर के परिदृश्य पर बरेली का नाम थिएटर के रसिक तौर पर जाना जा रहा था।
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आईएमए हॉल को दस से तेरह दिनों तक इंगेज करना कई बार कठिन भी हो जाता था। डॉ. बृजेश्वर ने भारत भर के तमाम थियेटरों में बैठकर नाटकों का लुफ्त उठाया था लेकिन उन्हें जो मजा एनएसडी के बहुमुख हाल और मुंबई के पृथ्वी थिएटर में आता था वैसा मजा कम ही हॉल्स में आता था। डॉ. बृजेश्वर सिंह इस बीच अपनी डिमांड के चलते एक व्यस्त डॉक्टर हो गए थे. लेकिन थिएटर के प्रति उनका प्रेम ऐसा था कि मसलन मुंबई या कोलकाता में कोई नाटक नया आया है या देखने का मन है तो अपने कामों को निपटा कर कार से दिल्ली पहुंच कर वहां से मुंबई कोलकाता की फ्लाइट लेकर नाटक देख कर और तुरंत वापसी की फ्लाइट पकड़कर दिल्ली और तुरंत कार् से बरेली। कई बार तो यह काम सुबह से रात तक में ही निपट जाता।
अब डॉ. बृजेश्वर ने मन बनाया कि भारत में जो गिने-चुने ब्लैक बॉक्स जैसे थिएटर के मंच हैं वैसा ही कुछ बरेली में भी बनाया जाए। ब्लैक बॉक्स की खूबसूरती यह होती है कि दर्शक दो गज की दूरी से ही अभिनेता को देख रहा होता है। अभिनय की एक-एक बारीकी दर्शक के दिलो-दिमाग में उतर रही होती है।
कला प्रेमियों को दिया ”रंग विनायक विंडरमेयर” का तोहफा
स्वर्ण टावर होटल के मालिक राजशेखर ने डॉक्टर बृजेश्वर सिंह को राय दी कि वोग्स शोरूम वालों का मकान बिकने को है। अक्षर बिहार के सामने यह प्रॉपर्टी डॉक्टर बृजेश्वर को पसंद आ गई। अब शहर के सबसे अनुपम आर्किटेक्ट अनुपम सक्सेना से संपर्क किया गया। अनुपम सक्सेना गजब के वास्तुशिल्पी है। बरेली शहर को अनुपम ने कई बेहद खूबसूरत इमारतें दी हैं। अनुपम सक्सेना इस तरह के चैलेंजिंग कामों को चाहते ही हैं वह फट से राजी हो गए और ड्राइंग्स बनाने लगे। ब्लैक बॉक्स के अंदर की कारीगरी के लिए माहिर अशोक सागर भगत को एनएसडी जाकर संपर्क किया गया। वह भी बरेली आकर ब्लैक बॉक्स की तैयारियों में जुट गए।
मकरंद देशपांडे का नाटक सर सर सरला का पहला प्ले हुआ
प्रबुद्ध और कला के प्रति समर्पित कुछ लोगों द्वारा ब्लैक बॉक्स को तैयार कर लिया गया और इसे नाम दिया गया विंडरमेयर। 2010 में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट को 2013 में पूरा करके दिसंबर 2013 में इसका विधिवत रूप से शुभारंभ किया गया। प्रख्यात थिएटर आर्टिस्ट शंकरनाग की पत्नी अरुंधति नाग जो रंग शंकरा के नाम से बेंगलुरु में थिएटर संपादित करती हैं वह बरेली आयीं। साथ ही कबीर की टिप्पणियां गाने वाले मशहूर कलाकार प्रह्लाद सिंह आए और तत्कालीन कमिश्नर दीपक त्रिवेदी ने विंडरमेयर का भी उद्घाटन किया। इसमें मकरंद देशपांडे का नाटक सर सर सरला का पहला प्ले हुआ। इस नाटक को मकरंद देशपांडे ने ही लिखा और निर्देशित किया है। इसमें एक विश्वविद्यालय के दो छात्र अपने शिक्षक,दार्शनिक और मार्गदर्शक प्रोफेसर को प्रेम करते हैं।
बच्चों के लिए थियटर वर्कशॉप की हुई शुरुआत
2009 में ही बरेली में इन थियेटरों के उत्सव के साथ ही रंग विनायक रंग मंडल की स्थापना की गई। दरअसल बरेली में जब राष्ट्रीय स्तर के नाटक खेले जाने लगे तो बरेली की दबी हुई प्रतिभाओं को भी कुछ कर दिखाने का मन हुआ। डॉ बृजेश्वर सिंह को सुझाव और दबाव दोनों मिलने लगे कि अब वह बरेली के कलाकारों के लिए कुछ करें। इस प्रकार रंगविनायक रंगमंडल की शुरुआत हुई।इसके लिए वर्कशॉप करने सबसे पहले फिल्म जाने भी दो यारो से चर्चित रंजीत कपूर बरेली आए और यहां के बच्चों को उन्होंने अभिनय और संवादों की ट्रेनिंग दी।
इसके बाद मशहूर अभिनेत्री हेमा सिंह, नीलम मानसिंह, अनुराधा कपूर भी रंग विनायक के बच्चों को ट्रेंड करने के लिए बरेली आते रहे। रंजीत कपूर और हेमा सिंह तो लगातार कई सालों तक बरेली रंग विनायक में आते रहे।
यह बरेली को कितनी बड़ी सौगात थी
इसके बाद मशहूर अभिनेत्री हेमा सिंह, नीलम मानसिंह, अनुराधा कपूर भी रंग विनायक के बच्चों को ट्रेंड करने के लिए बरेली आते रहे। रंजीत कपूर और हेमा सिंह तो लगातार कई सालों तक बरेली रंग विनायक में आते रहे। 30 बच्चों से रंगविनायक की शुरुआत हुई थी। जब बरेली के बच्चे रंग विनायक रंगमंडल में इन दिगज्जों की देखरेख में तैयार हो गए, तब रंगमंडल में पूरे भारत में अपने शो करना शुरू कर दिए। अब बरेली के बच्चे बाहर के शहरों में जाकर थिएटर कर रहे थे। यह बरेली को कितनी बड़ी सौगात थी कि बरेली को ही राष्ट्रीय स्कूल ऑफ ड्रामा का एक यूनिट बनाकर पूरे भारत के सामने डॉक्टर बृजेश्वर सिंह ने प्रस्तुत कर दिया था। अब तक रंगविनायक रंगमंडल पूरे भारत में अपने प्रोडक्शन के अंतर्गत सौ से अधिक प्रस्तुतियां दे चुका है।
रंगविनायक रंगमंडल के प्रोडक्शन के अंतर्गत जो नाटक पूरे भारत में सराहे गए उनमें रामलीला, शेरलॉक होम्स, पार्क, सब ठाठ पड़ा रह जाएगा, शतरंज के खिलाड़ी (अंबुज कुकरेती) खामोश अदालत जारी है (विजय तेंदुलकर) माइस एंड मैन (हेमा सिंह) चैनपुर की दास्तान वगैरा हैं।
रामलीला रंगविनायक रंगमंडल की ऐसी प्रस्तुति है कि दशहरे के मौके पर कई कई दिन तक इसका मंचन वंडरमेयर में किया जाता है। क्योंकि वंडरमेयर ब्लैक बॉक्स में सीटों की संख्या सीमित है और पूरा शहर रामलीला को देखना चाहता है तो इसकी कई प्रस्तुतियां हफ्तों तक चलती हैं। रामलीला के कलाकारों की भी प्रशंसा है कि वह लगातार उसी भावप्रवणता से रामलीला का मंचन रोजाना करते हैं। रंगमंडल से सीखे बच्चे आज पूरे भारत में विभिन्न प्लेटफार्म पर अपना नाम कमा रहे हैं। शिवा ने एक एड फ़िल्म की है, सृष्टि माहेश्वरी टेलीविजन का चेहरा है, हनीराय प्रोडक्शन में है, मोहित सोलंकी ने वेब सीरीज की है, शिविका सीरियल अग्निसाक्षी में देखी जा सकती हैं।
‘इन एन्ड आउट ऑफ थियेटर’ और अपने चिकित्सीय अनुभवों पर लिखी ‘नेक्स्ट पेशेन्ट प्लीज़’
राधेश्याम कथावाचक जैसे महान नाटककार के शहर को नाटकों के रूप में व्याख्यायित करना सही मायनों में डॉ. बृजेश्वर सिंह ने ही राधेश्याम कथावाचक को अपनी सच्ची श्रद्धांजलि दी है। इसी के साथ डॉ. बृजेश्वर सिंह ने एक गंभीर पुस्तक भी थिएटर की दुनिया पर लिखी है इन एंड आउट ऑफ थिएटर। जिसमें थिएटर जगत के अंदर और बाहर का परिदृश्य कैसा है इसको उन्होंने चित्रित किया है। इन एंड आउट ऑफ थिएटर के विमोचन के अवसर पर प्रख्यात ने सिने तारिका शबाना आजमी भी मौजूद थीं।इसके अलावा दूसरी पुस्तक अपने मेडिकल प्रोफेशन से संबंधित लिखी है नेक्स्ट पेशेंट प्लीज। इस पुस्तक को उन्होंने अपने मरीजों के साथ अपने चिकित्सकीय अनुभवों के आधार पर लिखा है। इसी के साथ डॉ बृजेश्वर भारत में कला के क्षेत्र के विभिन्न प्रमुख मंचों पर भी जाते रहे हैं। इंडिया टुडे के दिल्ली के वार्षिक कार्यक्रम में भी वह शिरकत कर चुके हैं।
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डॉ. बृजेश्वर सिंह अपने चिकित्सा के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व हैं। 2005 में जब अस्थि रोग की दुनिया में मानव घुटनों को बदलना एक रेयर घटना थी और यह सुविधा भारत के बड़े शहरों के बड़े अस्पतालों में ही थी तब डॉ. बृजेश्वर सिंह बरेली में अपने अस्पताल श्री सिद्धिविनायक में घुटना बदलने का ऑपरेशन कर रहे थे और यह सर्जरी पूरी बरेली शहर ने उस जमाने में लाइव अपने टेलीविजन सेट्स पर देखी थी। तब ये एक अभूतपूर्व घटना थी। बरेली के इस ऐतिहासिक पलों का मैं खुद डॉ बृजेश्वर का साथी रहा हूं। बरेली भर को लाइव सर्जरी दिखाने में एक भूमिका मेरी भी थी।
डॉ. बृजेश्वर सिंह के छोटे भाई अखिलेश्वर सिंह भी डॉक्टर है और बरेली के जिला अस्पताल में कोविड यूनिट के इंचार्ज हैं। सबसे छोटे भाई भुवनेश्वर सिंह कंस्ट्रक्शन के बिजनेस में हैं। डॉ. बृजेश्वर की पत्नी डॉ. गरिमा सिंह भी एक व्यस्त गाइकोनॉलॉजिस्ट हैं। इन दोनों के दो पुत्र हैं। बड़ा बेटा अनिरुद्ध सिंह भी डॉक्टर हैं और दिल्ली के एम्स के ट्रामा सेंटर में कार्यरत हैं। इन्होंने मनिपाल से अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की है। दूसरे बेटे अभिमन्यु सिंह हैं उन्होंने होटल मैनेजमेंट किया है और दिल्ली के ही पंचतारा होटल अशोका होटल में कार्यरत हैं।
उत्तर प्रदेश का 2020 का संगीत नाटक एकेडमी का एकेडमी अवार्ड भी ब्रजेश्वर सिंह को थियेटर में उनके योगदान के लिए मिला है।
अभी ये सम्मान डॉ. ब्रजेश्वर के लिए बहुत छोटे हैं। उनका कद और काम तो इन अवार्डों से बहुत ऊपर के हैं।
विनायक रंगमंडल को चलाने के लिए व विंडरमेयर को सुचारू चालू रखने के लिए धन की आवश्यकता होती है। इसके लिए दया दृष्टि के साथ-साथ श्री सिद्धिविनायक अस्पताल का मेडिकल स्टोर इनकी मदद करता है। अस्पताल का मेडिकल स्टोर डॉ. बृजेश्वर सिंह ने अपने पास न रख कर जिसको दिया है उससे यह तय है कि मेडिकल स्टोर के मुनाफे का एक हिस्सा दया दृष्टि चेरिटेबल को जाएगा। इसी के साथ सिद्धिविनायक अस्पताल में मरीजों का जो पर्चा बनता है उस पैसे से भी एक हिस्सा चेरिटेबल को जाता है।
चंडीगढ़ के टैगोर थियेटर ने ब्रजेश्वर सिंह को दिया बेस्ट थियेटर एक्टिविस्ट का अवार्ड
इसी के साथ-साथ शहर भर के दानवीर भी इस संस्था को चलाने में मदद करते हैं. हालांकि यह गिने-चुने ही हैं लेकिन जब थिएटर पर संकट आता है तब यह लोग आगे आते हैं। जहां विकिपीडिया ने डॉ. ब्रजेश्वर सिंह को थियेटर एक्टिविस्ट के रूप में सशक्त रूप से स्वीकृत किया वहीं चंडीगढ़ के टैगोर थियेटर ने ब्रजेश्वर सिंह को बेस्ट थियेटर एक्टिविस्ट का अवार्ड दिया। उत्तर प्रदेश का 2020 का संगीत नाटक एकेडमी का एकेडमी अवार्ड भी ब्रजेश्वर सिंह को थियेटर में उनके योगदान के लिए मिला है। इससे पहले 2008 में इनको यूपी रत्न के सम्मान से नवाजा जा चुका है। अभी ये सम्मान डॉ. ब्रजेश्वर के लिए बहुत छोटे हैं। उनका कद और काम तो इन अवार्डों से बहुत ऊपर के हैं।
विंडरमेयर बरेली शहर का एक ऐसा तोहफा है जिसे कलाप्रेमी हमेशा याद रखेंगे। जब इस ब्लैक बॉक्स का सीना इसके मंच पर पड़ने वाली रोशनियों के घेरों से धड़कता है तो यकीन मानिए की सीढ़ियों पर बैठे हुए हर उस कलाप्रेमी का सीना भी धड़कता उठता है। ब्लैक बॉक्स की धड़कन और दर्शकों की धड़कन जब एक गति में आ जाती है तो कला के विभिन्न आयाम खुल जाते हैं। ह्रदय में कला के फूल और दिमाग में विचारों के फूल खिल जाते हैं और फूलों के खिलने से पूरा वातावरण महकता है। ऐसे में इसी ब्लैकबॉक्स के किसी अंधेरे कोने में खड़ा इस बाग का माली बृजेश्वर चुपचाप मुस्कुराता रहता है।
- डॉ राजेश शर्मा
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