फरीदपुर कस्बे से ‘लंदन रिटर्सं’ तक का सफर: वैश्य एंड कंपनी

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  • फरीदपुर कस्बे के निवासी जादों प्रसाद के परिवार में और लाला मूलचंद के पुत्र रामअवतार वैश्य ने बरेली में वैश्य एन्ड कम्पनी खोलकर टेलरिंग एन्ड ड्रेपिंग के क्षेत्र में बड़ा नाम कमाया। 1937 में लंदन से टेलरिंग एन्ड ड्रेपिंग की ट्रेनिंग व डिग्री लेकर बरेली आये और अंग्रेजी शान बान के सूट्स व कपड़े सिलकर धूम मचा दी। वैश्य एन्ड कम्पनी को एक ब्राण्ड बना दिया।
  • रामअवतार वैश्य के पुत्र कपिल वैश्य ने पिता की मृत्यु के बाद मुश्किल हालात घर पर देखे। लेकिन अपनी जिजीविषा और अपने सी ए ताऊ श्यामबिहारी लाल वैश्य को रोलमॉडल मान कर खुद भी सीए बने और एक बड़ी पहचान इस क्षेत्र में बनायी।
  • सीए कपिल वैश्य की कंपनी “के वैश्य कंपनी” के बरेली, नोयडा और लखनऊ ऑफिस जीएसटी के क्षेत्र में बहुत शानदार काम कर रहे हैं और पूरे उत्तर प्रदेश में इनकी पहचान है. सेंट्रल एक्साइज का काम करने के साथ कपिल वैश्य को इस क्षेत्र में बहुत बड़ी पहचान मिली। अब इनके दोनों पुत्र आशीष वैश्य और मोहित वैश्य इस क्षेत्र में शानदार काम कर रहे हैं।

GUZISHTA BAREILLY. बरेली के पास की तहसील फरीदपुर में जादों प्रसाद का परिवार रहा करता था। जादों प्रसाद के पुत्र थे लाला मूलचंद जो बरेली में आकर मुनीमी का काम करते थे। बड़े लोगों के साथ उठना बैठना था। बरेली के मिर्चिया टोला और साहूकारा में रहने लगे थे। लाला मूलचंद के चार पुत्र व चार पुत्रियां थीं। चार पुत्रों में श्याम बिहारी लाल सबसे बड़े, दूसरे नंबर पर राममुरारीलाल, तीसरे नंबर पर रामअवतार और चौथे अर्जुन अवतार हुए।

पुत्रियों में सिया दुलारी, लक्ष्मी देवी अग्रवाल, रामकिशोरी अग्रवाल और सीता देवी हुईं। लाला मूलचंद पढ़ाई लिखाई का महत्व जानते थे। अपने बच्चों को अच्छा भविष्य देने के लिए उन्होंने उनकी शिक्षा-दीक्षा पर ध्यान दिया। श्याम बिहारी लाल ने अपनी बेसिक पढ़ाई खत्म करके गवर्नमेंट डिप्लोमा अकाउंटेंट की डिग्री ले ली। उस जमाने में चार्टर्ड अकाउंटेंट नहीं होता था। बाद में जब 1949 में दिल्ली में चार्टर्ड अकाउंटेंट इंस्टीट्यूट बना तो जिन लोगों के पास गवर्नमेंट डिप्लोमा डिग्री थी उन सब को उसी डिग्री के आधार पर चार्टर्ड अकाउंटेंट बना दिया गया। श्याम बिहारी लाल वैश्य इस इंस्टिट्यूट के 1953 में तीसरे प्रेसिडेंट बने। श्याम बिहारी लाल वैश्य कानपुर में शिफ्ट हो गए। वहीं इन्होंने अपना काम बढ़ाया। दूसरे पुत्र राममुरारीलाल वैश्य बरेली के आईवीआरआई में रजिस्ट्रार हो गए। अर्जुन अवतार वैश्य ने कानपुर में कपड़े का व्यवसाय कर लिया।

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चित्र: रामअवतार वैश्य

लाला मूलचंद के तीसरे पुत्र रामअवतार वैश्य का जन्म 1919 में हुआ। उन्होंने अपनी पढ़ाई लिखाई खत्म की और 18 साल की उम्र में पानी के जहाज से यात्रा कर लंदन जा पहुंचे। इरादा था अंग्रेजों जैसे आलीशान सूट और कपड़े बनाने का। लंदन से 1937 में रामअवतार वैश्य ने बकायदा टेलरिंग एंड ड्रेपिंग की ट्रेनिंग ली। भारत में तब अच्छे टेलर्स होते थे लेकिन अंग्रेजी मिजाज के सूट और पेंट शर्ट की बात ही कुछ और थी।

बरेली में उस जमाने में बड़े बाजार में एक मुल्लाजी कपड़े सीने की दुकान चलाते थेमुल्लाजी महिलाओं के ओवरकोट यानी चैस्टर सिलने में माहिर थे। अंग्रेज महिलाएं उनके पास ओवरकोट का डिजाइन या लंदन, इंग्लैंड के किसी शोरूम में टंगे ओवरकोट का फोटो लेकर आती थीं और मुल्लाजी हूबहू वैसा ही ओवरकोट सिल देते थे। महिलाओं के ओवरकोट यानी चैस्टर व छोटे कोट भी सिलने में मुल्लाजी माहिर थे। बड़े बाजार में ही एक और टेलर्स नवाब होते थे। नवाब भी बरेली के एक आलीशान टेलर थे और बहुत ही अच्छी पेंट कमीज व सूट सिला करते थे। बरेली के तमाम शौकीन उनके पास भी आया करते थे।

अब जब राम अवतार वैश्य बरेली आते हैं और बड़े बाजार में वैश्य एंड कंपनी के नाम से टेलरिंग एंड ड्रेपिंग की दुकान खोलते हैं।उस समय बरेली के लोग कपड़े सिलना तो जानते थे लेकिन टेलरिंग व ड्रेपिंग में अंतर नहीं जानते थे। टेलरिंग तो कपड़े की सही और कलाकारी से कटी हुई कटाई और फिर उसकी सिलाई। कपड़ा जितना शानदार कटा हुआ होगा सिलकर वह जिस्म पर उतना ही शानदार फिट भी होगा। ड्रेपिंग दरअसल टेलरिंग की दुकान पर पहनावे संबंधित कपड़े का मिलना भी होता है और उस कपड़े को पहनने वाले के जिस्म पर रखकर उसके शरीर के नाप के साथ उसकी कटाई की जाती है। जिस अदा और गरिमा से राम अवतार वैश्य ने वैश्य एंड कंपनी खोली तो बरेली के तमाम शौकीन वहां पहुंचने लगे।

बरेली और दूरदराज के शौकीन और रईसजादे वैश्य एन्ड कंपनी से सिले सूट्स ही पहनना चाहते थे, लेकिन “वैश्य एन्ड कम्पनी” भी अपनी गुणवत्ता के चलते बहुत महँगी थी। मामूली आदमी की पहुँच वहाँ तक नहीं थी।

सूट का ट्रायल यदि कोई घर से करना चाहे तो उसे “वैश्य एन्ड कंपनी” के मुलाजिम को फर्स्ट क्लास का किराया और मेहनताना देना होता था।

काम बड़ा तो दुकान के लिए मुफीद जगह टाउन हॉल लगी जो आज का कुतुब खाने के पास घंटाघर है वहां। तो दुकान को वहां शिफ्ट कर दिया गया। तब टाउन हॉल बरेली का सबसे शानदार बाजार हुआ करता था। 1960 के आसपास जब टाउन हाल में कुतुब खाने की इमारत ढहाई गई तब वैश्य एंड कंपनी अयूब खां चौराहे के पास दीनानाथ क्राकरी वाली जो आज दुकान है वहां शिफ्ट हो गई। वैश्य एंड कंपनी के पड़ोस में बरेली का सबसे शानदार रेस्टोरेंट रियो हुआ करता था। धीमे-धीमे वैश्य एंड कंपनी का टेलरिंग का काम इतना मशहूर हो गया कि लखनऊ और दिल्ली के बीच अकेला वही ऐसा सेंटर था जहां अंग्रेजी कट के शानदार सूट और कपड़े सिले जाते थे।

पड़ोस का रियो रेस्टोरेंट भी लखनऊ और दिल्ली के बीच में एक अकेला ही पीस था। उस जैसा कोई रेस्टोरेंट दूर दूर तक नहीं था। तो सिविल लाइन के इलाके में ये दो शानदार प्रतिष्ठान सजे हुए थे।

रामअवतार वैसे खुद को फॉरेन रिटर्न लिखा करते थे। तब तक राम अवतार वैश्य साहूकारा में ही किराए के मकान में रहा करते थे।वैश्य एंड कंपनी दुकान पर लगभग 40 कारीगर उनके पास काम किया करते थे। दिन-रात कटिंग और सिलाई का काम चलता रहता था। दुकान के बोर्ड पर भी वैश्य एंड कंपनी लंदन ट्रेन्ड टेलरिंग एंड ड्रेपिंग लिखा था। बरेली में कैंटोंमेंट भी था। अंग्रेज अधिकारी भी अपने सूट सिलवाने राम अवतार के पास ही आया करते थे।

शहर और दूरदराज के तमाम शौकीन और रईस रामअवतार के हाथ से कटा हुआ और सिला हुआ सूट पहनना चाहते थे। जमाना राज कपूर ,देवानंद और दिलीप कुमार का था। यह नायक जब सिल्वर स्क्रीन पर सूटेड बूटेड होते थे तो इन शहरों में नौजवानों के दिल भी खुद को इन जैसे ही सूटेड बूटेड देखने को मचलते थे और इनमें मचलते दिलों को शांत करते थे. वैश्य एंड कंपनी से कपड़े सिलवाये जाते थे। रामअवतार वैश्य अपने काम में परफेक्शनिस्ट होने के लिए बहुत मेहनत करते थे। उन्हें काम परफेक्ट चाहिये होता था।

एक-एक सूट की फिटिंग को ग्राहक के जिस्म पर तीन-तीन बार नापा जाता था। पहले कपड़ा केवल कच्चा सिला होता था। आस्तीन हाथ ऊपर जाने पर कैसी होगी नीचे करने पर कैसी होगी। कॉलर का उठान कितना होगा, पेट ग्राहक के खड़े होने पर कितना है, बैठने पर कितना होगा।

वैश्य एंड कंपनी की सिलाई इतनी महंगी थी कि उसको अफोर्ड करना बड़े रईसों के ही बस की ही बस की बात थी।

एक-एक सूट की फिटिंग को ग्राहक के जिस्म पर तीन-तीन बार नापा जाता था। पहले कपड़ा केवल कच्चा सिला होता था। आस्तीन हाथ ऊपर जाने पर कैसी होगी नीचे करने पर कैसी होगी। कॉलर का उठान कितना होगा, पेट ग्राहक के खड़े होने पर कितना है, बैठने पर कितना होगा। इस प्रकार की नपाईयाँ होती थीं। ग्राहक को तीन बार अपना ट्रायल देने के लिए खुद दुकान पर आना होता था। अगर कोई दूरदराज का रईस यदि अपने घर पर ट्रायल देना चाहे तो वैश्य एंड कंपनी के कारिंदे को उसे फर्स्ट क्लास का किराया और फीस चुकानी होती थी। वैश्य एंड कंपनी की सिलाई इतनी महंगी थी कि उसको अफोर्ड करना बड़े रईसों के ही बस की ही बस की बात थी। आम आदमी तो सूट सिलवाने की सोच भी नहीं सकता था। बरेली में वैश्य एंड कंपनी ने अपने को बहुत हाई स्टैंडर्ड पर रखा हुआ था।

राम अवतार वैश्य का उठना बैठना भी बरेली के अच्छे लोगों में था और बरेली के सारे रईस और पैसे वाले उनको व्यक्तिगत रूप से भी जानते थे। रामअवतार वैश्य एलन क्लब भी नियमित जाया करते थे। वहां पर ताश खेलने का शाम को उनका शगल हुआ करता था। अंग्रेजों का जमाना था। भारत में केवल मद्रास, बेंगलुर,बम्बई और दिल्ली इन सब बड़े शहरों में विदेशी कंपनियों के टेलरिंग एन्ड ड्रेपिंग के सेंटर खुले थे। इनकी ब्रांचेज शिमला, मसूरी, ऊटी, नैनीताल में हुआ करती थीं। क्योंकि जब रईस लोग यहाँ घूमने आते थे और फुर्सत में भी होते थे और इस तरह की कंपनियां भी वहां होती थी तो कपड़े सिलवाए भी जाते थे।

भारत में केवल मद्रास, बेंगलुर,बम्बई और दिल्ली इन सब बड़े शहरों में विदेशी कंपनियों के टेलरिंग एन्ड ड्रेपिंग के सेंटर खुले थे।

इनकी ब्रांचेज शिमला, मसूरी, ऊटी, नैनीताल में हुआ करती थीं।

लंदन कोट हाउस जैसी तीन चार कंपनियां भारत में तब विदेशी थीं। रामअवतार वैश्य बरेली के ही रहने वाले थे इसलिए उन्होंने बरेली को ही अपना कार्यक्षेत्र बनाया। अगर वह दिल्ली के कनॉट प्लेस में होते तो उन्होंने कुछ और ही नाम कमाया होता. वह हुनर था उनके हाथों में। लेकिन बरेली में रहकर अपना काम करके उन्होंने लखनऊ से दिल्ली तक धूम मचा दी थी। रामअवतार वैश्य लंबे ऊंचे गौरवर्ण के खूबसूरत इंसान थे। हमेशा सफेद कपड़े नफ़ासत के साथ पहनते थे। रामअवतार वैश्य का विवाह बरेली की ही गंगापुर की सुशीला देवी से हुआ था। इनका परिवार तोपखाना वाले परिवार के नाम से मशहूर था। इस दम्पति के सात बेटियां व एकमात्र पुत्र कपिल वैश्य रहे।

सब कुछ बहुत शानदार चल रहा था कि 1966 में राम अवतार वैश्य को पक्षाघात हुआ। वह बिस्तर पर आ गए। दुकान जाना तक मुश्किल हो गया और काम करना तो बिल्कुल ही बंद हो गया। इस कारण 1968 में काम ना हो पाने के कारण वैश्य एन्ड कंपनी को बंद कर दिया गया। 1975 में राम अवतार वैश्य की मृत्यु हो गई। घर में कमाने वाले राम अवतार ही अकेले थे। धीरे-धीरे घर के हालात जुझारू होने लगे। साहूकारा में मकान किराए का ही था।

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चित्र: कपिल वैश्य

पैसे की तंगी आने लगी। 1966 से 1982 तक इस परिवार के हालात बहुत खराब रहे। इस दौर में रामअवतार वैश्य की सबसे बड़ी बेटी शकुंतला अग्रवाल ने केंद्रीय विद्यालय में टीचर की नौकरी कर घर के हालात संभालें। पूरे परिवार को सहारा दिया। अपनी सब छोटी बहनों को पढ़ाया लिखाया। उन सबके विवाह करने के बाद ही स्वयं का विवाह किया। शकुंतला अग्रवाल घर में छोटी माँ के ही रूप में थीं। पिता के बीमार होने के समय कपिल वैश्य मात्र पांच 6 साल के थे। 14 वर्ष के थे कि पिता का साया उठ गया। घर के हालात हमेशा सख्त देखें।

कपिल वैश्य जब अपने ताऊ श्याम बिहारी लाल वैश्य को देखते थे तो उन जैसा बनने की हुक उनके मन में उठा करती थी। ताऊ और पिता के हालातों में बहुत अंतर था। एक बार ताऊ श्याम बिहारी ने उनसे पूछा कि वह क्या बनना चाहते हैं तो कपिल का जवाब था कि आप जैसा ही बनना चाहता हूं। और हुआ भी यही। कपिल वैश्य ने अपनी प्राइमरी पढ़ाई केंद्रीय विद्यालय और विष्णु इंटर कॉलेज से कर 1983 में कानपुर से चार्टर्ड अकाउंटेंट की डिग्री ली। श्याम बिहारी लाल उनके रोल मॉडल थे। तब कपिल वैश्य ने बरेली आकर 1983 से 1988 तक विमको माचिस फैक्ट्री में नौकरी की। फिर उन्हें महसूस हुआ कि यदि तरक्की करनी है तो अपने को व्यवस्थित करना होगा। आगे नौकरी करनी है तो बड़े शहर में जाना होगा। लेकिन कपिल वैश्य ने अपने परिवार को देखा और बरेली में ही रहने का निर्णय किया और चार्टर्ड अकाउंटेंट की अपनी कंपनी अपने साहूकार वाले घर से ही शुरू की।

तय किया कि सेंट्रल एक्साइज एक ऐसा विषय है जिस पर बरेली में काम करने वाला कोई नहीं था। कपिल वैश्य के साथियों ने उन्हें समझाया कि यह विषय ठीक नहीं है इसमें प्रेक्टिस करने में बहुत चुनौती है। लेकिन कपिल वैश्य ठान लिया था और इस विषय में काम करने पर उन्हें बरेली के बड़े उद्योगों ने हाथों-हाथ लिया। बरेली की कत्था फैक्टरी, स्प्रिंग वैली, सिंथेटिक एंड केमिकल सहित सभी बड़ी कंपनियों के काम कपिल के पास आने लगे। धीमे-धीमे “के वैश्य एंड कंपनी” का बोलबाला चारों तरफ होने लगा। जिस प्रकार कपिल के पिता ने अपने हुनर में नाम और शोहरत कमाई उसी प्रकार कपिल वैश्य ने अपने क्षेत्र में नाम और शोहरत अर्जित की।

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चित्र: चार्टर्ड अकाउंटेंट मोहित वैश्य

कपिल का विवाह 1986 में बरेली की प्रीति वैश्य से हुआ। इनके दो पुत्र हुए आशीष वैश्य और मोहित वैश्य। इन दोनों ने भी चार्टर्ड अकाउंटेंट की डिग्री ली और पिता के रास्ते पर चल पड़े। आशीष का विवाह प्राची वैश्य से 2015 में हुआ और यह भी चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। आशीष नोएडा में 2011 से अपने परिवार की “के चार्टर्ड अकाउंटेंट” की कंपनी चला रहे हैं अब प्राची वैश्य ने भी इसी कम्पनी को जॉइन कर लिया है। छोटे बेटे मोहित वैश्य का विवाह इशिता वैश्य से हुआ. यह भी चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। 2014 में लखनऊ में भी परिवार का “के वैश्य एन्ड कंपनी” चार्टर्ड अकाउंटेंट का ऑफिस खोला गया। मोहित वहां के काम देखते हैं। कपिल वैश्य वैसे नोएडा और लखनऊ हर सप्ताह जाकर वहां के कामों की देखभाल भी करते हैं और बरेली का ऑफिस भी संभालते हैं।

इन तीनों को संचालित करते हुए कपिल वैश्य यू पी चेंबर ऑफ कॉमर्स में और चार्टेड इंस्टिट्यूट में अपने लेक्चर देने जाते रहते हैं।राजस्थान और हरियाणा से भी उन्हें अपने विषयों पर लेक्चर देने के आमंत्रण आते रहते हैं। कपिल वैश्य आईआईए की नेशनल बॉडी के जीएसटी कमेटी के चेयरमैन भी हैं। चार्टेड अकाउंटेंसी के क्षेत्र में कपिल वैश्य ने बहुत नाम कमाया और अपने शहर बरेली को अपने पिता की भांति ही रोशन भी किया। कपिल वैश्य अब अपने परिवार के साथ राधेश्याम एनक्लेव में निवास करते हैं। यदि इरादे मजबूत हों और दिल में कुछ बनने करने की तमन्ना हो तो सारी कायनात आपकी मदद करने लगती है।

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