बरेली में पारसियों का एक वक्त रहा था जलवा आज रहता है सिर्फ एक ही पारसी परिवार: गुज़िश्ता बरेली

डॉ राजेश बता रहे हैं बरेली में पारसियों का इतिहास

बरेली में केवल चार पाँच पारसी परिवार थे लेकिन इन पारसी परिवारों की धूम थी शहर भर में। पेट्रोलियम और जरनल सप्लायर के रूप में थी बड़ी पहचान।

नारीमन, दारूवाला, सोहराब जी और पेस्टन जी इन परिवारों के पास थी बहुत सी दौलत। बरेली की बहुत सारी जमीनों के भी थे मालिक।आज सिर्फ एक ही पारसी परिवार बरेली में कभी कभी आता रहता है।

अंग्रेजों के बहुत करीब और कैंटोमेंट की स्थापना के कारण ही पारसी बरेली आये थे।बरेली की पहली विदेशी शराब की दुकान भी सोहराब जी ने खोली थी।

आरए नारीमन ने बरेली में खोले थे कई पेट्रोल पंप। कई टैंकरों के द्वारा करते थे तेल की सप्लाई। नारीमन मैन्शन इनका खूबसूरत घर पूरे बरेली का पहला वेल फर्निश्ड घर था। इनके इस नारीमन मैन्शन पर आज पूरी नारीमन कॉलोनी खड़ी है। आज केवल एक पेट्रोल पंप शहामतगंज में स्थित है।

बरेली के कैंट से आगे इनके परिवार के मृत व्यक्तियों के अंतिम संस्कार के लिए टॉवर ऑफ साइलेंस आज भी मौजूद हैं। जहाँ इनके शवों को गिद्ध और चीलें खाती थीं।

BAREILLY LIMELIGHT: इस्लाम की उत्पत्ति के पूर्व प्राचीन इरान में जरथ्रुष्ट धर्म का ही प्रचलन था। सातवीं शताब्दी में तुर्की और अरबों ने ईरान पर बर्बर आक्रमण किया और कत्लेआम की इंतहा कर दी। पारसियों को जबरन धर्मान्तरित किया गया। संसेनियन साम्राज्य के पतन के बाद आक्रमणकारियों द्वारा सताए जाने से बचने के लिए पारसी लोग अपना देश छोड़कर भागने लगे। इस्लामी क्रांति के इस दौर में कुछ ईरानियों ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया और वह एक नाव पर सवार होकर भारत भाग आए।

पारसी शरणार्थियों का पहला समूह मध्य एशिया के खुरासान में आकर रहा। वहां वह लगभग 100 वर्ष रहे। जब वहां भी उपद्रव शुरू हुआ तो वे उरभुज टापू पर रहे।वहां से भागे तो एक छोटे जहाज में बैठकर पवित्र अग्नि और धर्म पुस्तकों के साथ खंभात की खाड़ी में भारत के दीव नामक टापू पर उतरे जो उस काल में पुर्तगालियों के कब्जे में था। वहां भी उन्हें पुर्तगालियों ने चैन नहीं लेने दिया तब वे सन 716 ईसवी के लगभग दमन के दक्षिण 25 मील पर राजा यादव राणा के राज्य क्षेत्र संजान नामक स्थान पर आ बसे।

Mr. RATANSHAW A. NARIMON

गुजरात के दमण दीव के पास के क्षेत्र के क्षेत्र के राजा जादी राणा ने उनको अग्नि मंदिर की स्थापना करवाई। 10 वीं सदी के अंत तक इन्होंने गुजरात के अन्य भागों में भी बसना प्रारंभ कर दिया। यहां उन्होंने इंडियन पारसी कम्युनिटी की स्थापना की। सोहलवीं सदी मैं सूरत में जब अंग्रेजों ने फैक्ट्रियां खोली तो बड़ी संख्या में पारसी कारीगर और व्यापारियों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। अंग्रेज भी उन के माध्यम से व्यापार करते थे जिसके लिए उन्हें दलाल नियुक्त कर दिया जाता था।

भारत का पहला लग्ज़री होटल ताज होटल टाटा की ही देन है।

पारसी समुदाय ने देश को पहली स्टील मिल 1960 में जमशेदजी टाटा ने टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी के नाम से जमशेदपुर में स्थापित की थी। जेआरडी टाटा ने 1932 में देश के पहले एयरलाइंस टाटा एयरलाइंस की भी स्थापना की थी बाद में यह एयर इंडिया बना।

विकास के लिए पार्टियों ने मुंबई की ओर रुख किया। वर्तमान में भारत में पारसियों की जनसंख्या 2011 के अनुसार 57000 है जिसके 70% पारसी मुंबई में रहते हैं। भारत की इतनी बड़ी आबादी में मामूली प्रतिनिधित्व होने के बावजूद इस समुदाय ने देश को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। बड़े कानून विद स्वतंत्रता सेनानी से लेकर सैन्य बलों में भी इनकी मौजूदगी और गहरी छाप है। पारसी समुदाय ने देश को पहली स्टील मिल 1960 में जमशेदजी टाटा ने टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी के नाम से जमशेदपुर में स्थापित की थी। जेआरडी टाटा ने 1932 में देश के पहले एयरलाइंस टाटा एयरलाइंस की भी स्थापना की थी बाद में यह एयर इंडिया बना। भारत का पहला लग्ज़री होटल ताज होटल टाटा की ही देन है।

पारसियों ने पेशे या स्थान से संबंधित उपनाम अपना अपनाने का फैसला किया। कपड़े का व्यापार करने वाले कपाड़िया, मोती का व्यापार करने वाले मोती वाला, शराब का व्यापार करने वाले दारूवाला, पुणे में रहने वाले पूनावाला कहलाए। परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा, सेनाध्यक्ष मानेकशॉ, पहली बार तिरंगा फहराने वाली सेना मेडम भीकाजी कामा, स्वतंत्रता सेनानी दादा भाई नौरोजी, गोदरेज के संस्थापक आर्वेशिट गोदरेज, वाडिया उद्योग के संस्थापक लवजी नुसरवान जी वाडिया, सीरम इंस्टीट्यूट के सायरस पूनावाला, पहली बोलती फिल्म आलम आरा बनाने वाले फिल्मकार ए एम ईरानी, राजनेता पीलू मोदी यह सभी पारसी समुदाय से हैं ।

अंग्रेज जब भारत में राज करने लगे तो पारसी उनके बहुत करीब हो गए। अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी सीखना है, अंग्रेजों के रहने के तौर-तरीकों को सीखना है, उनकी तरह खाना खाना,व्यवहार करना सबसे पहले पारसियों ने ही अपनाया और इस प्रकार पारसी अंग्रेजों के खासमखास हो गए। भारतीय लोगों से संवाद करने के लिए भी अंग्रेज पारसियों का ही सहारा लेते थे। इस सब का फायदा उठाते हुए पारसी व्यापार करते हुए अंग्रेजों का सहारा लेते हुए बहुत धनवान बनते गए। भारत में अंग्रेजों ने जहां भी सैन्य ठिकाने बनाए पारसी वहां वहां भी व्यापार के लिए पहुंच गए। सेना में सामानों की सप्लाई हो या स्थानीय लोगों से संवाद हो तब सब पारसी ही किया करते थे। इसके एवज में पारसियों को अंग्रेजों से और सरकार से बहुत मदद मिलती थी।

MOVIE ALAM ARA SCENE: IMAGE CURTSY BY Shruti Swamy from India, WIKI MEDIA

बरेली में भी अंग्रेजों ने छावनी बसायी थी तो पारसियों का आगमन बरेली में भी हुआ। बरेली तक ज्यादा बड़ा नहीं था और चारों तरफ जंगल था तो पारसियों को जंगल अलॉट कर दिए गए। पारसियों ने जंगलों को साफ किया और अपना व्यापार करने लगे। आज जहां बरेली का बड़ा डाकखाना है उसके आसपास की सारी जमीन पारसियों के पास थी। जहां आज जे बी मोटर्स है वह जगह डी सोहराबजी दारूवाला के पास थी। दैनिक जागरण के ऑफिस तक की जमीन,बड़ा डाकखाना और आवास विकास कॉलोनी व पूरी कचहरी की जमीन भी सोहराबजी के मालिकान में थी।

आज की भटनागर कॉलोनी की जमीन भी उन्ही की मिल्कियत में थी। बरेली की पहली शराब की दुकान भी दारूवाला ने खोली थी।ये दुकान जे बी मोटर्स के पास जहां आज फेयरडील फाइनेंस है वहां थी। आज भी इस दुकान का स्वरूप ज्यादा नहीं बदला है। इसी के पीछे इनका एक बड़ा सा घर होता था। यह दुकान 1893 में खोली गई थी सोहराबजी एंड संस के नाम से। बरेली से पहले यह लोग रानीखेत में रहते थे। बरेली में स्थापित पारसियों की रानीखेत और अल्मोड़ा में भी बहुत ज़ायदाद थी। सोहराबजी के घर में पाँच पुरुष और दो महिलाएं थीं। पाँच पुरुषों में दो शादीशुदा थे और तीन कुआरें रहे थे। दोनों महिलाएं बड़ी बाई जी और छोटी बाई जी कहलाती थीं। पारसियों में लड़कियों की संख्या कम होती हैं इसलिए घरों में स्त्रियों की महत्ता ज्यादा रहती है।

पारसियों की स्त्रियों की कोई अवेहलना नहीं कर सकता। घर का पूरा कमांड और निर्देशन स्त्रियों के ही हाथों में होता था और वही सब संचालित भी करती थीं। घर के सारे काम पुरुषों को करने होते थे, यहां तक की रसोई में खाना पकाने का काम भी पुरुष ही किया करते थे। अपने घर में यह लोग अपनी पारसी भाषा में ही बातें करते थे। डी सोहराबजी भी अंग्रेजों के मैस में समान सप्लाई के साथ-साथ शराब भी सप्लाई किया करते थे।आज़ादी के बाद ये सब काम खत्म होने पर उन्होंने पोल्ट्री फॉर्म अपने घर में खोल लिया था। इनकी आजीविका का यही साधन था। डी सोहराबजी सर्दी हो या गर्मी हमेशा नेकर पहनते थे। उनका नाम ही आस-पास वालों ने नेकर वाले सोहराबजी कर दिया था। उनके भाई पतलून पहने थे तो वह पतलून वाले सोहराबजी कहलाते थे। सुबह शाम टहलना और व्यवस्थित जिंदगी को जीना उनकी जिंदगी का हिस्सा था।

बरेली में एक परिवार नारीमन परिवार भी बहुत संभ्रांत और प्रमुख व्यवसाई परिवार था। नारीमन के कई पेट्रोल पंप बरेली और आसपास हुआ करते थे। इस परिवार की मिनी नारीमन ने ब्रूशेन नारीमन के नाम से बरेली की सबसे पहली गैस एजेंसी खोली थी। तब कुकिंग गैस एक बिल्कुल नई चीज थी। मिसेज़ मिनी नारीमन लोगों को गैस के डिमोस्ट्रेशन देती थीं और लोगों को गैस खरीदने के लिए प्रेरित करती थीं। उस समय लोग गैस पर खाना नहीं बनाते थे। खाना परंपरागत चूल्हा और अँगीठी पर पकाया जाता था। अगर कोई गैस खरीद भी लेता था तो उसका इस्तेमाल केवल पानी गरम करने के लिए किया जाता था।

लोगों को भ्रांति थी कि गैस पर खाना बनाने से बहुत सारी बीमारियां होती हैं। मिस्टर नारी मन ने बरेली में ट्रांसपोर्ट और पेट्रोल पंप का काम खोला। उस समय तेल की बड़ी कंपनियां बर्मा शैल और कर्लेक्स से तेल खरीदा जाता था। उस जमाने में मोहम्मद रफी बर्मा शैल के पेट्रोलियम तेल का विज्ञापन किया करते थे। बर्मा शैल एक एंग्लो फ़ारसी ऑयल कंपनी थी। बर्मा ऑयल ब्रिटिश साम्राज्य की थी। बाद में इस का नाम एक्लो ईरानी तेल कंपनी फिर ब्रिटिश पेट्रोलियम और अन्ततः बीपी कर दिया गया था। उस जमाने में नारीमन ने इस पेट्रोलियम तेल की खपत का काम बरेली में शुरू किया और टैंकर खरीद कर बड़े पैमाने पर तेल की सप्लाई करने लगे।इनके उस ज़माने में तीस से अधिक पेट्रोल पंप थे।

भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम की शुरुआत बहुत बाद में हुई। एस्सो एक्सानमोबिल और उससे संबंधित कंपनियों का एक व्यापारिक नाम है। यह एक अमेरिकन कंपनी है। इस कंपनी के साथ भी नारीमन ने काम शुरू किया था। बाद में इन विदेशी कंपनियों का नेशनलाइज़ेशन हुआ और उसके बाद प्राइवेटाइजेशन हुआ। नारीमन का पेट्रोल पंप का काम बरेली में बहुत बड़े पैमाने पर था। स्टेशन रोड पर इनका एक नारीमन मैन्शन हुआ करता था। यह बरेली का तब का सबसे बड़ा फर्निश्ड मैन्शन था। सभी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित नारीमन मैन्शन बरेली में अपनी घर की पार्टियों के लिए भी विख्यात था। आरए नारीमन साहब एक लंबे, खूबसूरत इंसान थे। आधुनिक वस्त्रों से सुसज्जित शानदार नुकीली मूछों के साथ रौबीले व्यक्तित्व के स्वामी थे। सफेद कॉटन की शर्ट और कॉटन की पैंट व जूते पहने वह एक संभ्रांत सभ्य व्यक्ति सजते थे। इनकी पत्नी बालूबाई नारीमन थीं। ये भी बाद में बम्बई चली गयी थीं।

इनके पुत्र पेसी रतन शाह नारीमन पेस्टनजी थे। इनकी पत्नी मिसेज मिनी नारीमन थीं। इनकी दो पुत्रियाँ जरनाज़ और फरीदा हुईं।मिसेज नारीमन और उनकी बेटियां भी उस समय आधुनिक अंग्रेजी पोशाकें पहनते थे। नारीमन साहब शिकार के भी बहुत शौकीन थे। नैनीताल के बोट हाउस क्लब में जेम सेशन डांस के मौकों पर इस परिवार के लोग वन टू चा च च और ट्विस्ट के साथ नाचने गाने के लिए भी बहुत प्रसिद्ध थे। उस समय चा च च और ट्विस्ट बहुत मशहूर था। बॉडी शेक का जमाना बाद में शम्मी कपूर फिल्मों से लेकर आए थे। जरनाज़ नारीमन की शिक्षा नैनीताल के सैंट मैरीज से हुई। बाद में इनका विवाह ख़ुशरू जमशेद इंजीनियर से हुआ। फरीदा शादी करके फरीदा अबरार बन कर मुम्बई शिफ्ट हो गयीं।

BAREILLY: NARIMAN PARSI COLONY

बरेली के विमको फैक्टरी में भी एक पारसी परिवार कपाड़िया परिवार बहुत सालों तक रहा। वो वहाँ सिर्फ नोकरी ही करते रहे लेकिन बरेली के पारसी परिवारों में उनका आना जाना था।

नवरोज पारसी समुदाय का नया साल होता है यह 21 मार्च को हर वर्ष मनाया जाता है. इस दिन पारसी घरों में सुबह के नाश्ते में रावों नामक व्यंजन बनाया जाता है। इसे सूजी, दूध और शक्कर से मिलाकर तैयार किया जाता है। पारसी खाने मसाले, मिठास और मिर्च का मिलाजुला मिश्रण होता है। साली बोटी, पातरानी नी मच्छी, धनसाक, अंकुरी, लगन नू कस्टर्ड इनके प्रमुख व्यंजन हैं। मीट, नट्स और अंडा पारसी व्यंजनों के मुख्य घटक हैं। पारसी अपने भगवान अहूरामज़दा को मानते हैं। दिया जलाकर अग्नि को साक्षी मानकर ये अपनी प्रार्थना करते हैं। इनकी फ़ारसी भाषा में एक नमाज़ भी है जिसे ये पढ़ते हैं। जरथ्रुष्ट इन पारसियों के प्रीस्ट हैं।पारसियों में प्रीस्ट बनने के लिए भी अलग परिवार और नियम हैं, जिनको अन्ध्यारु कहा जाता है।

पारसी समुदाय का रहन-सहन अंग्रेजियत से भरपूर है लेकिन अपने धार्मिक पूर्वाग्रहों और खास जीवनशैली की वजह से वे अपनी संख्या में वृद्धि नहीं कर पाए। जियो पारसी 2013 में भारत सरकार की शुरू की गई एक योजना जो राष्ट्रीय वित्त पोषित परियोजना है जिसमें सब्सिडी वाले आईवीएफ उपचार और अनुदान सहित अधिक जन्मों को प्रोत्साहित किया जाता है। ये सुविधा तीसरे बच्चे के जन्म के लिए होती थी। माना जाता था कि दो बच्चे तो अनिवार्य रूप से पैदा हो ही जायेंगे। लेकिन ये स्कीम चल नहीं पायी। इनकी बिरादरी में जन्म का अनुपात बहुत कम हो गया था और अब तक बहुत देर हो चुकी थी। संतानहीनता इस बिरादरी में बढ़ गई थी।

वे चाहते थे कि उनकी संख्या बढ़े लेकिन उनकी रूढ़ियां उनकी राह में बाधा बन गयीं। एक तो विवाह उन की अनिवार्यता में शुमार नहीं रह गया। लगभग हर घर में कम से कम एक कुंवारा एक कुंवारी जरूर मिल जाएंगे. दूसरे वे बच्चों को अच्छी तालीम देने के लिए छोटे परिवार में विश्वास रखते थे. तीसरे उनके परिवार का कोई सदस्य यदि अंतरजातीय विवाह कर ले तो उसे बिरादरी से बाहर कर दिया जाता था। पारसियों में धर्म परिवर्तन स्वीकार नहीं है।

दूसरे धर्म में शादी करने वाली लड़की को तुरंत धर्म से निकाल दिया जाता है

कोई हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई बन सकता है लेकिन पारसी नहीं बन सकता। पारसी वह जन्म से ही हो सकता है। पारसी लोग अपने धर्म को सबसे ऊपर लेकर चलते हैं।

कोई हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई बन सकता है लेकिन पारसी नहीं बन सकता। पारसी वह जन्म से ही हो सकता है। पारसी लोग अपने धर्म को सबसे ऊपर लेकर चलते हैं। इसी वजह से अगर कोई लड़की अन्य किसी भी धर्म के लड़के से विवाह कर लेती है तो उसके लिए नियम काफी सख्त हो जाते हैं। दूसरे धर्म में शादी करने वाली लड़की को तुरंत धर्म से निकाल दिया जाता है। गैर पारसी से शादी करने वाली लड़की को सिर्फ धर्म से ही नहीं और भी कई चीजों पर उस पर रोक लगा दी जाती है। सबसे बड़ी रोक है कि लड़की अपने पिता की मौत पर दखमा में जाकर प्रार्थना में शामिल नहीं हो सकती है। यदि पारसियों में कोई लड़का किसी गैर मजहब की लड़की से शादी करता है तब उसके उस परिवार को पारसी परिवार में शामिल नहीं किया जाता है। हाँ बच्चे चूँकि पिता से आते हैं तो उनको स्वीकार कर लिया जाता हैं। पारसी होने के लिए धार्मिक शुद्धता को पहले रखा जाता है।

PARSI COMMUNITY’S GRAVES AT BAREILLY CANTT. AREA

पारसी धर्म में अंतिम संस्कार में शवों को ना तो हिंदुओं की तरह जलाया जाता है और ना ही मुस्लिम और ईसाई धर्म की तरह दफनाया जाता है। पारसी समुदाय में मौत के बाद व्यक्ति के शव को टावर ऑफ साइलेंस पर रखा जाता है। यह एक गोलाकार ढांचा होता है। इस पर शरीर को रख दिया जाता है। इसे दखमा भी कहते हैं। यहां शव रखने के बाद मृतक की आत्मा की शांति के लिए चार दिन प्रार्थना की जाती है। इस प्रार्थना को अरन्ध कहते हैं। यहां रखे शवों को गिद्ध और चीलें खाते हैं। यह पारसी समुदाय की परंपरा का हिस्सा है।

पारसी धर्म में किसी शव को जलाना या दफनाना प्रकृति को गंदा करना माना गया है। उनके धर्म के अनुसार मृत शरीर अशुद्ध होता है। पारसी धर्म में पृथ्वी, जल, अग्नि को बहुत ही पवित्र माना गया है इसलिए शवों का जलाना, दफनाना धार्मिक नजरिए से पूरी तरह गलत है। बरेली में भी इस तरह का पारसियों का अंतिम संस्कार करने के लिए एक स्थान बनाया गया था जो बरेली में कैंट से बहुत आगे के सुनसान स्थान पर आज भी स्थित है। इस स्थान पर एक लोहे का एक पिंजरा चबूतरे पर रहता था जिस पर पारसियों के मृत शरीरों को रखा जाता था। जब चील और गिद्ध उनके शरीरों को खा लेते थे और उनकी हड्डियां अलग अलग होकर उस पिंजड़े में गिर जाती थीं तब उन अस्थियों को उठाकर जमीन में दबा कर उन पर कब्रें बना दी जाती थीं। इस प्रकार की बहुत सारी कब्रें आज भी बरेली के पारसियों के उस कब्रिस्तान में स्थित हैं। पारसियों के इस परम्परागत अंतिम संस्कार के स्थालों पर गैर पारसियों का प्रवेश निषेध है। अब नए पारसियों में जिन्होंने गैर मजहबों में शादी कर ली है उनके यहाँ रिवाज़ बदल गए हैं।

बरेली में आज सिर्फ एक ही पारसी परिवार रहता है। आरए नारीमन की पड़पौत्री मिसेज जरनाज़ इंजीनियर। ये लोग भी बरेली में कम समय के लिए रहते हैं। सोहराबजी के परिवार में बड़ी बाई जी और छोटी बाई जी की मृत्यु भी कुछ वर्ष पूर्व हो गई और उनके शरीरों को भी बरेली के ही पारसियों के संस्कार स्थल पर ले जाकर उनका अंतिम संस्कार किया गया। जिस व्यक्ति ने उनका संस्कार किया उससे मैंने उनके बारे में जाना। उनकी कब्रें आज भी वहां उस कब्रिस्तान में मौजूद हैं। केवल आर के नारीमन वालों का पेट्रोल पंप जो शहामतगंज में है जिसका ऑफिस चंद्रगुप्त होटल में स्थित है वहां पर नारीमन परिवार के दामाद ख़ुशरू जमशेद इंजीनियर देखते हैं।

  • डॉ राजेश शर्मा
ias Coaching , UPSC Coaching