पेटेंट कंपनियों के सताए हुए फ़िल्म निर्माताओं ने बसाया था ‘हॉलीवुड’

स्वतंत्र फ़िल्म निर्माताओं पर लगा दी थीं बहुत सारी पाबन्दियाँ

यूं तो खुशगवार शामों में न्यूयॉर्कवासियों के लिए कोस्टर और बायल म्यूजिक हॉल के सामने खड़े होना कोई नई बात नहीं थी, लेकिन 23 अप्रैल 1896 की रात की कुछ बात ही अलग थी. उस रात थॉमस एडिसन के नए अविष्कार ‘वीटास्कोप’ का प्रदर्शन होने वाला था. हजारों की संख्या में लोग इस नई मशीन की जादूगरी देखने के लिए बेताब थे. इस मशीन की मदद से थिएटर में एक साथ हजारों लोग बड़े पर्दे पर चलती फिरती तस्वीरें देखने का मजा ले सकते थे. उस रात दो नौजवानों के नृत्य को फिल्माया गया, जो पिंक और नीली पोशाकें पहने थे. एडिशन ने अपनी इस नई मशीन का पेटेंट कराना चाहा, मगर किसी कारणवश उन्हें सफलता नहीं मिल पाई.

लुमियरे ब्रदर्स ने खोली पहली फ़िल्म निर्माण कम्पनी

उधर यूरोप में दूसरे आविष्कारकों और अनुसंधानकर्ताओं ने एडिसन के इस विचार और तकनीक पर कब्जा कर लिया और उन्हें पहले से ज्यादा विकसित कर (वगैर रॉयल्टी दिए) उनके यंत्र का प्रयोग करने लगे. इन सब में लुमीएरे ब्रदर्स का नाम अग्रणीय रहा. उन्होंने अपनी फिल्म निर्माण कंपनी खोल ली. इस तरह फिल्म निर्माण कार्य की आधारशिला रख दी गई.

छोटी-छोटी हुआ करती थीं शुरआती फिल्में

इस श्रेणी में फ्रांसीसी फिल्म निर्माता जॉर्ज मेलिस जो एक अच्छे जादूगर थे, उन्होंने वैज्ञानिक तथ्यों तथा कल्पना पर आधारित फिल्म ‘ए ट्रिप टू द मून’ बनाई, जो आधुनिक फिल्म प्रेमियों को बहुत पसंद आई. इसी क्रम में अमेरिकी एडविन एस पोर्टर ने ‘द ग्रेट ट्रेन रोबरी’ फिल्म बनाकर फिल्म जगत में एक और कीर्तिमान स्थापित किया। इस फिल्म में पहली बार एडिटिंग और नई कैमरा तकनीक का प्रयोग किया गया था, जिससे यह फिल्म बहुत ही अधिक जल्द कामयाबी के शिखर पर पहुंच गई और कमाई का रिकॉर्ड भी बनाया।

शुरुआती फिल्में बहुत ही छोटी तथा खेल, कुश्ती, प्रतियोगिता, तमाशा आदि पर होती थीं। वक्त के साथ लोगों का मिजाज बदला। फिल्म निर्माताओं ने कहानियों पर आधारित फिल्में बनाना शुरू कीं और इसकी पहल की श्रीमती एलिस गे ने जिन्होंने कैबेज फेअरी (CABBAGE FAIRY) फिल्म बनाई, जिसमें एक परी गोभी के पत्तों में से शिशुओं को पैदा करती थी.

हॉलीवुड में खुली पहली फ़िल्म निर्माण कम्पनी

फ़िल्म स्टूडियो को कहा जाता था फ़िल्म फैक्ट्री

उस समय दर्शकों की मांग पर दिन में कई फिल्मों को बदल-बदल कर प्रदर्शित किया जाता था. दर्शकों के बढ़े हुए हौसले से मोशन पिक्चर की मांग बड़ गयी. न्यूयार्क और न्यूजर्सी में नई प्रोडक्शन कंपनियां और स्टूडियो स्थापित होने लगे. शुरुआती दौर में इन स्टूडियों को ‘फिल्म फैक्ट्री’ कहा गया.

सन 1908 से 1918 तक फिल्म निर्माण कार्य एक फायदे का सौदा माना जाने लगा। फ़िल्म निर्माता युद्ध स्तर पर फिल्म निर्माण का कार्य करने लगे। इसके नतीजे में एक प्रतियोगिता को जन्म हुआ। छोटी-छोटी फिल्म कंपनियां अवैध रूप से (वगैर रॉयल्टी दिये हुए) इन यंत्रों का उपयोग फिल्म निर्माण कार्य में करने लगीं। जो जल्द ही गला काट स्तर तक पहुंच गयीं।

पेटेंट कंपनी स्थापित होने से बढ़ा टकराव

ऐसे हालात से निपटने के लिए अग्रणीय फिल्म तथा यंत्र निर्माताओं ने इन समस्याओं से निपटने के लिए ‘मोशन पिक्चर्स पेटेंट कंपनी’ (MPPC) की स्थापना की, जिसके तहत फिल्म दर्शकों को ‘एमपीपीसी प्रमाणित’ उपकरणों के उपयोग करने पर प्रति सप्ताह दो डॉलर टेक्स के रूप में देना होते थे।

टेक्स न दे पाने की स्थिति में थिएटर मालिक को एमपीपीसी प्रमाणित फिल्मों की सप्लाई बंद कर दी जाती थी। उस वक्त फिल्म निर्माता और थिएटर मालिकों का सीधा संबंध था। इस घटना ने दोनों के बीच की कड़ी ‘वितरक’ को जन्म दिया, जो फिल्म निर्माता से फिल्म खरीद कर थियटर मालिकों को किराए पर देता था। यह त्रिस्तरीय प्रक्रिया निर्माण, वितरण और प्रदर्शन आज भी यथावत सुचारू रूप से गतिमान है।

नायक-नायिका के क्लोज़-अप पर लगी पाबन्दी

एनपीपीसी का दूसरा कहर फिल्म कलाकारों पर भी पड़ा। वे भी एमपीपीसी के कहर से बच नहीं सके। उसने नायक-नायिकाओं के क्लोज-अप शॉट्स पर पाबंदी लगा दी। कंपनी को डर पैदा हो गया कि अगर कोई कलाकार पहचान लिया गया और लोकप्रिय हो गया तो वह अधिक धन की मांग कर सकता है। कंपनी नहीं चाहती थी कि किसी को अधिक धन दिया जाए, क्योंकि फिल्म प्रति फुट के हिसाब से बेची जाती थी। यह बात कोई मायने नहीं रखती थी कि उस फिल्म में किसने काम किया है।

10 मिनट से ज़्यादा फ़िल्म नहीं देख सकते थे दर्शक

एमपीपीसी के कठोर नीतियों से दर्शक वर्ग भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाया। उनको भी उसका कोपभजन बनना पड़ा। कंपनी ने शर्त लगाई कि दर्शक एक बार में लगातार एक रील से ज्यादा (लगभग 10 मिनट) फिल्म नहीं देख सकते।

इस तरह एमपीपीसी की तानाशाही प्रवृत्ति से परेशान और नाराज़ होकर स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं ने फिल्म प्रदर्शकों को एमपीपीसी से कम मूल्य पर फिल्में देना शुरू कर दीं। फुल लेंथ की फीचर फिल्में यूरोप से आयातित होने लगीं। तब एमपीपीसी ने घबराकर इन कंपनियों के खिलाफ युद्ध घोषित कर दिया। बहुत सारे अवैध स्टूडियो पर छापे मार कर उन्हें बंद कर दिया गया तथा उपकरण छीन लिए गए। कई जगह हिंसक वारदातें भी हुईं।

नई ज़मीन की तलाश में फ़िल्म निर्माता

एमपीपीसी के आतंक से बचने के प्रयास में स्वतंत्र निर्माताओं ने न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी की जमीन को अलविदा कह दिया। एमपीपीसी के अत्याचारों से पीड़ित सहमा हुआ, शोषित, प्रताड़ित तथा थका-हारा स्वतंत्र निर्माताओं का यह वर्ग किसी नई जमीन की तलाश में था। जहां पर वह खुली हवा में सांस लेने को स्वतंत्र हो और भौगोलिक, पर्यावरणीय तथा आर्थिक परिस्थितियों के अनुकूल हों। किसी भी तरह के वायदे- पाबंदियां उनके रास्ते का रोड़ा न बनकर उनकी आजादी में फल पैदा न करे। बहुत सी जगहें ढूंढी गयीं। फ्लोरिडा बहुत नमी का क्षेत्र साबित हुआ। क्यूबा बहुत कष्टदायक था। टैक्सास बिल्कुल समतल था। आखिर में उन्हें अपनी मंजिल मिल ही गई, जो उनके अनुकूल थी। यह जगह थी ‘लॉस एंजेल’ जो ‘हॉलीवुड’ के नाम से मशहूर हुई।

‘हॉलीवुड’ बना स्वतंत्रत फ़िल्म निर्माताओं का नया घर

यह नया घर स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं के लिए शुभ साबित हुआ और फिल्म निर्माण के नित नये कीर्तिमान स्थापित होते चले गए। 1917 तक एमपीपीसी का तानाशाही राज्य ताश के पत्तों की तरह ढह गया और उसकी सारी शक्तियां क्षीण हो गयीं। इस तरह पेटेंट संगठनों के शासन का अंत हो गया और उसके बाद हॉलीवुड फिल्म निर्माताओं ने आज तक पीछे मुड़कर नहीं देखा।

‘हॉलीवुड’ नाम रखने की दिलचस्प कहानी

1886 में हर्वे और विलकोक्स दंपति ने कैलिफोर्निया में एक पहाड़ी क्षेत्र में 200 एकड़ भूमि खरीदी। उनकी इच्छा थी कि वे इस भूमि को शांतिपूर्ण तथा हरी-भरी जगह में बदल लेंगे। उस वक्त वहां अंजीर का एक फॉर्म था और संपत्ति अंजीर के पेड़ों से ढकी हुई थी। बिल्कॉक्स का विचार कुछ दूसरा था। कुछ साल पहले इस दंपति ने अपने एक दोस्त के फॉर्म का दौरा किया था, जिसमें होली के (एक सदाबहार पेड़ जिसमें लाल फल आते हैं) के वृक्ष लदे खड़े थे। वह इन दरख्तों से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने ‘होली’ के पेड़ों के बाग का सपना देखने लगे।

बहुत उम्मीद के साथ उन्होंने दर्जनों वृक्षों को अपनी भूमि में रोपण किया मगर एक भी वृक्ष जीवित न बच सका। कई बार कोशिश के बावजूद उन्हें कामयाबी नहीं मिली फिर भी बिलकोक्स ने अपनी राय नहीं बदली और उसे जगह को ‘हॉलीवुड’ का नाम दिया

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