आज भी लुभाती है बरेली की बियाबानी कोठी: गुज़िश्ता बरेली

biyabani kothi


बियाबानी कोठी और चमन कोठी बरेली शहर के दो जड़ाऊ नगीने रहे हैं, जिसमें से चमन कोठी वाला नगीना शहर से खो गया।

चमन कोठी में इस्तेमाल हुआ इटेलियन पत्थर, बेल्जियम का ग्लास, पहली अंडर ग्राउंड वायरिंग।
60 से ज्यादा कमरे थे इस कोठी में। 1935 में ख़र्च हुआ था पाँच लाख से अधिक रुपया।
बरेली की पहली शुगर मिल नेकपुर में लगायी। धामपुर की शुगर मिल लगवायी। इसके बाद इस परिवार ने पाँच और शुगर मिल लगवाईं।
इस परिवार ने दिए बरेली को आधुनिक हैवी इंजीनियरिंग प्लांट्स।
डैम के ब्रिजों का किया निर्माण, शुगर मिल की मशीनों का लगाया प्लान्ट, सरिया बनाने की फैक्ट्री लगाई।
साहू गोपीनाथ के परिवार से शुरू हुई तरक्की की कहानी जिसे उनके बच्चों और फिर उनके बच्चों ने आगे बढ़ाया।
धर्मार्थ कार्यों में भी परिवार का रहा योगदान। साहू राम स्वरूप ने साहू गोपीनाथ इंटर कालेज और राम स्वरूप डिग्री कॉलेज की स्थापना की। आर्युवैदिक मेडिकल कॉलेज को बिल्डिंग तोहफ़े में दी।
मनोज अवतार आज भी आरएस इंफ्रा प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी से देश के अग्रणी मोबाइल टॉवर और पॉवर ट्रांसमिशन के उपकरण बना रहे हैं।

GUZISHTA BAREILLY: 1870 के आसपास अपने व्यापार की खोज के सिलसिले में एक शख्स गोपीनाथ मुरादाबाद से बरेली आते हैं । बरेली आकर उन्हें नमक का कारोबार सूझता है और वह नमक का कारोबार करने लगते हैं। नमक के कारोबार से उनको इतना फायदा होता है कि वह साहू गोपीनाथ कहलाने लगते हैं और शहर से दूर बियाबान में एक कोठी का निर्माण करवाते हैं। कोठी बेहद खूबसूरत कंगूरों से सजी अट्टालिकाओं से पूरित, मेहराबों के निशान लिए हुए, बड़े-बड़े बरामदे और लाइन से लगे हुए बड़े-बड़े कमरे, बहुत विशाल दालान। कोठी इतनी खूबसूरत कि देखने वाले का दिल ही उस पर आ जाए और उसमें रहने वाले से खामखाँ ही रश्क हो जाए।

PIC: CHAMAN KOTHI, BAREILLY

साहू गोपीनाथ के तीन बेटे होते हैं। रामनारायण 1898 में राम भरोसे लाल 1899 में और रामस्वरूप 1890 में। तीनों बेटों की शानदार परवरिश के साथ उनकी अच्छी शिक्षा का प्रबंध भी साहू गोपीनाथ ने किया। उस जमाने में जब लोग ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होते थे यदि कोई ग्रेजुएशन भी कर लेता था तो लोग उसको नाम से नहीं बीए साहब कहते थे. तो साहू गोपीनाथ के तीनों बेटे भी बीए साहब हो गए थे। धड़ल्ले से अंग्रेजी बोलने लगे थे। राम नारायण, राम भरोसे और रामस्वरूप अपने पिता का ही नमक का व्यापार साझा संभालने लगे। पढ़े-लिखे इन नए लड़कों ने काम को नया रूप देना शुरू किया।

PIC: SAHU RAM BHAROSE LAL

शहर का अंग्रेज कलेक्टर इन तीनों से बहुत प्रभावित था। अंग्रेज कलेक्टर को इनसे अंग्रेजी में बात करने और शहर की बाबत फैसले लेने में सहूलियत होती थी। तो कलेक्टर ने अंग्रेज़ सरकार से इन्हें माला के जंगलों का ठेका दिलवा दिया। अब साझे के काम में यह तीनो भाई माला के जंगलों की लकड़ी काटकर बेचने लगे। इस काम में इन्हें भारी मुनाफा हुआ। घर में चांदी के सिक्कों की बोरियां लाइन लगाकर आने लगीं। सिक्कों की 20-25 बोरिया तो आंगन में यूं ही पड़ी रहती थीं। यह बात सन 1920 के आसपास की है।

अब जब पैसा बहुतायत से हो गया तो इन भाइयों ने और आगे बढ़ने की सोची और बरेली की पहली चीनी मिल 1930 में नेकपुर में लगाई। 1930 से लेकर 1933 के बीच में एक चीनी मिल धामपुर में भी लगाई। धामपुर की शुगर मिल तो आज भारत की सबसे बड़ी चीनी मिलों में से एक है। अभी तक सब भाई साझे में कारोबार कर रहे थे। सबकी शादियां भी हो गई थीं। सभी भाई अपने पिता की कोठी में अपने अपने परिवारों के साथ रहते थे। चूँकि यह कोठी बियाबान यानी शहर से बाहर थी तो लोग इसको बियाबानी कोठी कहने लगे।

1925 में दस हज़ार वर्ग गज में बनी यह कोठी आज भी बियाबानी कोठी ही कहलाती है। इसकी चारों तरफ की जालीदार चारदीवारी और कलात्मक से कंगूरे वाले गेट के भीतर की यह खूबसूरत इमारत आज भी वहां से गुजरने वालों को आकर्षित करती है। लोग इसकी जाली वाली चारदीवारी से इसको झाँकते हैं। बड़े-बड़े लॉन, चौड़े रास्ते वाली यह कोठी शहर का आज भी जगमगाता नगीना है।

यह तीनों भाई इस कोठी में रहते हुए और अपनी चीनी मिलों को देखते हुए सामाजिक कार्य भी कर रहे थे। साहू राम स्वरूप शिक्षा के प्रति समर्पित थे। उन्होंने उन्नीस सौ चालीस इकतालीस के बीच अपने पिता साहू गोपीनाथ के नाम से एक इंटर कॉलेज साहू गोपीनाथ खोला फिर एक डिग्री कॉलेज साहू राम स्वरूप भी बनवाया। ये आज भी शहर के अच्छे स्कूल हैं। इन तीनों भाइयों ने आलमगीरी गंज में एक बड़ी इमारत खरीद कर सरकार को आयुर्वेदिक कॉलेज के लिए दान में दी। आज भी वहां आर्युवैदिक मेडिकल कॉलेज चल रहा है। ऋषिकेश में भी एक बड़ी जमीन खरीद कर स्वर्ग आश्रम के नाम से एक आश्रम के लिए जमीन दान की।

1935 में राम भरोसे लाल अपने भाइयों से अलग होकर आलमगीरी गंज में एक बहुत आलीशान कोठी का निर्माण करवाते हैं। तब का आलमगीरी गंज आज जैसा भीड़भाड़ वाला नहीं था। 1935 में पंडित मुल्लों महाराज से 3500 वर्ग गज का एक बाग राम भरोसे लाल खरीदते हैं और लाहौर के एक प्रसिद्ध वस्तुविद मिर्जा नईम के साथ बैठकर एक भव्य भवन के निर्माण की परिकल्पना करते हैं। मिर्जा कागज पर एक आलीशान भवन का चित्र उकेरते हैं और रामभरोसे लाल के पसंद आ जाने पर इस इमारत को कागज से उतार कर उस बाग में तामीर कर देते हैं। इस इमारत को बनने में लगभग तीन साल का वक्त लगता है और लगभग पाँच लाख रुपये उस जमाने में इस पर खर्च होता है।

इस कोठी में लगने वाले पत्थर और टाइल्स इटली से आए थे। कोठी में इटालियन मार्बल का इस्तेमाल हुआ था। कोठी में इस्तेमाल सारा शीशा बेल्जियम से आया।

भारत में पहली बार अंडरग्राउंड इलेक्ट्रिक वायरिंग भी इस कोठी में हुई

इस इमारत की खूबी यह थी कि यह एक डिजाइएंड इमारत थी। इसकी खासियत में दिन के प्रकाश, हवा और वेंटिलेशन की अनूठी व्यवस्था थी। कभी इसकी छत से बहती हुई रामगंगा का नजारा आसानी से दिखता था। इस कोठी में लगने वाले पत्थर और टाइल्स इटली से आए थे। कोठी में इटालियन मार्बल का इस्तेमाल हुआ था। कोठी में इस्तेमाल सारा शीशा बेल्जियम से आया। भारत में पहली बार अंडरग्राउंड इलेक्ट्रिक वायरिंग आई थी वह भी इस कोठी में हुई। इस कोठी के सारे दरवाजे और खिड़कियां टीक और नेपाली लकड़ी से बने हुए थे। इस कोठी का सारा फर्नीचर भी टीक की लकड़ी से बना था।

इस कोठी में तीन बड़े हाल बिना किसी पिलर के बने थे। जिसमें दूरदराज के शहरों और विदेशों से आए मेहमान बैठते थे। इस कोठी में 60 से ज्यादा कमरे थे। रामभरोसे लाल का पूरा परिवार इस कोठी में रहने के लिए 1939 में चमन कोठी में आ गया। चमन कोठी और बियाबानी कोठी की उस जमाने में चार-पाँच कारें अपनी थीं, जबकि सारे शहर में 10 -15 कारें कुल थीं। लेकिन साहू राम भरोसे लाल पूरे जीवन बघ्घी पर ही चले।

PIC: Dr. RAJESH SHARMA AT BIYABANI KOTHI BAREILLY

राम भरोसे लाल के छह पुत्र हुए। सबसे बड़े राम अवतार दूसरे लक्ष्मण अवतार तीसरे भरत अवतार चौथे शत्रुघ्न अवतार पांचवे राम प्रकाश गोयल छठे ओम प्रकाश गोयल। इसके अलावा इनकी तीन पुत्रियां भी हुईं। राम भरोसे लाल ने अपने बच्चों को समुचित शिक्षा देना प्रारंभ किया। सभी बच्चों को ग्रेजुएट किया। ये सब अपनी अपनी फील्ड के माहिर लोग रहे हैं। साहू राम भरोसे स्वयं भी अंग्रेजों के शासन में ऑनरेरी मजिस्ट्रेट रहे और इनकी अपनी अदालत चमन कोठी में ही लगती थी। इनके फैसले भी सब जन को मान्य होते थे।

चमन कोठी कांग्रेस का इलेक्शन दफ्तर भी बन गया था। तब गोविंद बल्लभ पंत इसको देखते थे। 1951 में अपना पहला इलेक्शन गोविंद बल्लभ पंत ने इसी चमन कोठी से लड़कर जीता था। साहू राम भरोसे की इस कोठी में उस जमाने के बड़े-बड़े नेता और भारत भर के विख्यात लोग मेहमान बन कर आते रहे हैं। इस कोठी में उस समय के स्वास्थ्य मंत्री जगजीवन राम, मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा, मुख्यमंत्री एनडी तिवारी, मिनिस्टर सतीश चंद्र और रेड्डी साहब जैसे लोग चमन कोठी में आते रहे हैं।

PIC: ANAND GOYAL

साहू राम भरोसे लाल के तीनों पुत्रों ने मिलकर 1956 में आरआर हेवी इंजीनियरिंग कंपनी का निर्माण किया, जिस में चीनी मिलों में इस्तेमाल किये जाने वाली की मशीनों का निर्माण किया जाता था। आरआर कंपनी ने कई शुगर मिलों का एक्सपेंशन किया और कई नई शुगर मिलें भी लगवाई जिनमें बाजपुर और पानीपत की शुगर मिलें प्रमुख हैं। आरआर कंपनी ने एक बड़ा काम काशीपुर के पास कालागढ़ डैम का ब्रिज बना कर भी किया। डैम पर बने इस ब्रिज से इस कंपनी की साख बहुत बड़ी।

1960 में फर्नेस का काम शुरू किया जिसमें इंगट बनता था जिससे सरिया बनाई जाती थी। यह फर्नेस का पूरा प्लांट हंगरी से इंपोर्ट किया गया था। इसमें 50 टन इंगट रोज बनता था। 1961 में आरआर रोलिंग मिल भी लगाई गई जिसमें सरिया बनता था। यह सारे प्लांट सीबीगंज में एक बड़े कॉन्प्लेक्स में बारी-बारी से लगाए गए थे। सारे भाई मिलकर इन कारोबार और चीनी मिल को एक साथ देखते थे।यह छहों भाई अपने अपने काम में माहिर थे।

राम अवतार कॉर्पोरेट का काम देखते थे ,लक्ष्मण अवतार अकाउंट के माहिर थे, भरत अवतार टेक्नॉलॉजी के खिलाड़ी थे और पूरा प्रोडक्शन वही देखते थे, शत्रुघ्न अवतार शुगर इंस्टिट्यूट से केमिस्ट की डिग्री लिए हुए थे, राम प्रकाश गोयल ग्लेसगो से इंजीनियरिंग किए हुए थे और ओम प्रकाश गोयल एडवोकेट थे। यानी पूरे कारोबार को संभालने के सारे सेक्शन घर में ही मौजूद थे। इसलिए ही इन्होंने तरक्की भी खूब की। राम भरोसे लाल की तीनों बेटियों में से दो बेटियों की शादी शुगर मिल के खानदानों में और एक की चाय बागान वालों की यहां हुई। राम भरोसे लाल की मृत्यु 1951 में हुई।

राम अवतार के तीन बेटे हुए रवि अवतार, राजेंद्र अवतार और वीरेंद्र अवतार। दो बेटियां भी हुईं। लक्ष्मण अवतार के तीन पुत्र हुए ऋषि गोयल, माधव गोयल और केशव गोयल। भरत अवतार के एक पुत्र हुए आनंद गोयल। शत्रुघ्न अवतार के चार पुत्र हुए नवीन गोयल, सुशील गोयल, सुनील गोयल और संजय गोयल। राम प्रकाश गोयल के कोई संतान नहीं हुई। ओम प्रकाश गोयल के दो पुत्र हुए मनु गोयल और आलोक गोयल। इस परिवार की नेकपुर वाली शुगर मिल मायावती शासन में नीलाम कर दी गई क्योंकि 1976 में चीनी मिलों का राष्ट्रीयकरण हो गया था। इस परिवार को इस मिल से कुछ ना मिला।

सभी भाइयों के परिवार दिल्ली और दिल्ली एनसीआर में शिफ्ट होकर अलग-अलग कुछ कारोबार करने लगे। बरेली में केवल भरत अवतार के एकमात्र पुत्र आनंद गोयल रुके और आरआर इंजीनियरिंग कंपनी वाली जगह पर सबसे बड़ा वेयरहाउस बनवाया। इसी के साथ उन्होंने 2003 में बर्जर पेंट की और 2014 में एमआरएफ की सी एन्ड एफ लीं। जिसे आज उनके पुत्र विनायक चला रहे हैं।

PIC: INSIDE VIEW OF BIYABANI KOTHI BAREILLY

2008 में आनंद गोयल भी चमन कोठी छोड़कर कैंट की एक कोठी में शिफ्ट हो गए जो उन्हें उनके पिता की तरफ से कुर्रे में एलॉट मिली थी। मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस से इस कोठी को खाली कराकर आनंद गोयल अपने परिवार के साथ आज भी उसी में रह रहे हैंयह कोठी तब बनी थी जब आज से 100 साल पहले माला के जंगलों के ठेके उन्हें मिले थे और इस कोठी में इनके अधिकारी रहा करते थे। शहर में भी इस परिवार की कई प्रॉपर्टी थी जो बाद में परिवार में ही बंट गई थीं।

साहू गोपीनाथ के बड़े पुत्र राम नारायण की मृत्यु 1960 में और छोटे रामस्वरूप की मृत्यु 1955 में हुई। रामनारायण के पुत्र मुरली मनोहर हुए और रामस्वरूप के चार पुत्र हुए। सूरज अवतार, कृष्ण अवतार, विष्णु अवतार और ओम अवतार। मुरली मनोहर बरेली क्लब बरेली के पहले सिविलियन मेंबर बने थे। जो उस समय बड़ी बात थी। कैंट में शहर के चुनिंदा परिवारों को जाने की छूट थी। हर कोई बरेली कैंट में प्रवेश नहीं कर सकता था। मुरली मनोहर के तीन पुत्र हुए विजय गोयल, अशोक गोयल और अजय गोयल

अजय गोयल अब इस दुनिया में नहीं है। जवानी में ही उनकी मृत्यु हो गई थी। इन सभी ने के पास बंटवारे में धामपुर शुगर मिल आयी। धामपुर शुगर मिल आज भी हिंदुस्तान की बेहतरीन शुगर मिल है। इसके पश्चात इन भाइयों ने मिलकर पाँच और शुगर मिल लगवाईं। असमोली शुगर मिल मुरादाबाद, मंसूरपुर शुगर मिल मुजफ्फरनगर, काशीपुर शुगर मिल काशीपुर, रजपुरा शुगर मिल चंदौसी और मीरगंज बरेली।

PIC : GEST ROOM @ BIYABANI KOTHI BAREILLY

धामपुर शुगर मिल पहले मुरली मनोहर देखते थे अब इस मिल को विजय कुमार गोयल और अशोक कुमार गोयल देखते रहे। विजय गोयल के एक पुत्र गौतम गोयल और दो पुत्री हुई। अशोक गोयल के एक पुत्र गौरव और दो पुत्री हुईं। सूरत अवतार के कोई बेटा नहीं है एक बेटी अनुराधा गुप्ता हैं जिनका विवाह उपेन्द्र कुमार से हुआ जिनके ग्रूप ऑफ क्लार्क्स होटलों की जानी-मानी श्रृंखला है।उन्होंने अपने छोटे भाई ओम अवतार के पुत्र संजीव अवतार को गोद ले लिया। कृष्ण अवतार के तीन पुत्र अनिल गोयल, राजू गोयलराकेश गोयल हुए जिनमें राजू गोयल अब इस दुनिया में नहीं हैं।

विष्णु अवतार की दो पुत्रियां हुईं। ओम अवतार के दो पुत्र मनोज और संजीव थे ही। ओम अवतार बरेली के सीबी गंज में आज जहां हौंडा हेरिटेज का शोरूम है वहां मोबाइल के टावर बनाने का कारखाना चलाते थे आरएस स्टील वर्क्स के नाम से। 1985 में बरेली में बंद हुई इस कंपनी की देनदारी बरेली के वर्कर्स की 1995 में खत्म हुई। ये कंपनी10 साल के बुरे दौर से गुज़री। बाद में वह दिल्ली शिफ्ट से हो गए तो कारखाना भी साथ ले गए। दिल्ली शिफ्ट हो जाने पर भी दुश्वारियां कम नहीं हुईं। लेकिन लगातार मेहनत कर उनके पुत्रों मनोज अवतार व संजीव अवतार ने आज उस कंपनी को भारत की सबसे बड़ी लीडिंग मोबाइल टावर कंपनी बनाने वाली कंपनी बना दिया है। आज ये कंपनी आरएस इंफ्रा प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से जानी जाती है। अशोक गोयल ने भी अभी 72 वर्ष की आयु में वर्ल्ड ब्रिज टूर्नामेंट में भारत को सिल्वर मेडल दिलवाया है।

ओम अवतार ने भी बरेली के दोनों स्कूलों की बेहतरी के लिए बहुत काम किये। डिग्री कॉलेज में यूजीसी की कई बेंचस् की स्थापना करायी।उच्च शिक्षा के कई काम करवाये।

चमन कोठी बरेली का दूसरा खूबसूरत नगीना था। आलमगीरी गंज वाले इसे अपने इलाके की शान समझते थे। लेकिन 2013 में इस चमन कोठी को तोड़ डाला गया क्योंकि कोई भी इसे संभालने वाला नहीं था। वहाँ बाद में बड़ी अनगढ़ सी एक कॉलोनी सी बन गयी। आन-बान-शान ईश्वर देता है। समय के साथ हर चीज़ बदलती है। भाग्य भी बदलते हैं। भाग्य के साथ आन-बान-शान भी बदल जाती है। इस संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है।

  • डॉ राजेश शर्मा
ias Coaching , UPSC Coaching