बरेली: फनसिटी जैसा तोहफा देने वाले अनिल अग्रवाल की हिम्मत को सलाम

boond water park

उझानी कारोबारी के मेधावी पुत्र बरेली आ कर रचते हैं कारोबार की नई इबारत

GUZISHTA BAREILLY: लगभग 200 वर्ष पूर्व राजस्थान से नन्दराम अग्रवाल उत्तर प्रदेश में बस गये। इनके तीन पुत्र थे। रामस्वरूप अग्रवाल, बिहारी लाल अग्रवाल, अयोध्या प्रसाद अग्रवाल। बिहारी लाल अग्रवाल के कोई संतान नहीं थी, रामस्वरूप अग्रवाल के एक पुत्र मंगलसेन थे और अयोध्या प्रसाद के पाँच पुत्र हुए। श्रवण कुमार अग्रवाल, कृष्ण कुमार अग्रवाल,कृष्ण मुरारी लाल अग्रवाल, हरि भगवान अग्रवाल, विष्णु भगवान अग्रवाल। अयोध्या प्रसाद उझानी में केरोसिन का काम करते थे। केरोसिन के ड्रम लेकर बोतलों में भरकर वहां के बाजार में बेचा किया करते थे।

बाद में इनके सभी पुत्र भी पिता के काम में ही लग गए। उस समय पावरीन आता था। पावरीन पेट्रोल का ही एक रूप था। इसको भी श्रवण कुमार और उनके भाई बेचा करते थे। श्रवण कुमार ने चंदौसी से बीएससी कर ली थी। उनका दुनिया को समझने का नज़रिया अलग हो गया था। बर्मा शैल कंपनी ही उस समय तेल को सप्लाई करती थी। कंपनी के अंग्रेज अधिकारी अयोध्या प्रसाद के पास आते थे चूँकि इनकी तेल की बिक्री अत्यधिक थी। बर्मा शैल के अधिकारी ये देखते थे कि इस दुकान की सेल बहुत है तो उन्होंने अयोध्या प्रसाद से कहा कि आप पूरा तेल का टैंकर रेलवे से मंगवाए इसमें आपको अधिक लाभ होगा। लेकिन अयोध्या प्रसाद ठहरे परंपरागत तरीके से काम करने वाले।

उन्होंने कहा ”नहीं इसमें नुकसान हो जाएगा।” जब श्रवण कुमार ने उनसे कहा कि नहीं टैंकर का तेल मंगवाना ठीक है तब अयोध्या प्रसाद नाराज हो गए उन्होंने कहा कि अगर नुकसान हो गया तो तुम जानो। श्रवण कुमार ने अधिकारियों से बात कर के तेल का पूरा टैंकर मंगवा लिया और जब तेल तोला गया तो जितना तेल मंगाया था उससे 400 लीटर तेल टैंकर में अधिक था। यह देखकर अयोध्या प्रसाद जी बड़े प्रसन्न हुए और उसके बाद से रेलवे के टैंकरों से ही तेल आने लगा।

इसी बीच बदायूं उझानी में कंपनी ने इनको दो पेट्रोल पंप दे दिए। यह कंपनी का माल खूब बेचते थे। श्रवण कुमार का नाम चारों तरफ होने लगा। दिल्ली मैं शैल कंपनी के रीजनल मैनेजर मिस्टर विल्सन बैठते थे। उन्होंने जब इनकी बिक्री देखी तब उन्होंने श्रवण कुमार को दिल्ली बुलाया और कहा कि हमारा मथुरा में बहुत बड़ा डिपो है उससे आधा यूपी, राजस्थान और हरियाणा को हम सप्लाई करते हैं। अब क्योंकि हम आगे की तरफ कामों के लिए बढ़ रहे हैं तो हम चाहते हैं यह पूरा डिपो आपके सुपुर्द कर दें और आप इसे अपने भाइयों के साथ मिलकर चलाओ।

पिता श्रवण कुमार व माता संतोष कुमारी

श्रवण कुमार दिल्ली से अपॉइंटमेंट लेटर लेकर आए थे लेकिन घर में पैसे का अभाव था किस तरह से इस काम को किया जाता, इतने बड़े पैमाने पर का तेल खरीदने के लिए पैसा नहीं था। सो भाइयों ने मना कर दिया। जब श्रवण कुमार ने रीजनल मैनेजर को वह लेटर वापस किया तब उन्होंने इनका फीडबैक लेकर कहा कि हम आपको सेटेलाइट पर डिपो देते हैं आप पूरा माल बेचने के बाद पैसा कंपनी में जमा कर देना। अब तो बात बन गयी। साख पर काम हो गया। अब श्रवण कुमार सात-आठ साल तक मथुरा में ही रहे।इस बीच पूरी मेहनत करके इन्होंने कई राज्यों में तेल बेचकर खूब पैसा बनाया। परिवार में पैसा आ गया था सो काम करने के रास्ते भी खुल गए थे।

इसी बीच प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीयकरण की नीति शुरू कर दी और बर्मा शैल का भारत पेट्रोलियम और कोलटेक्स का हिंदुस्तान पैट्रोलियम से कांटेक्ट हो गया। भारत सरकार ने इंडियन ऑयल को डेवलप करना शुरू किया। सारा काम अब इंडियन ऑयल के अंतर्गत ही होना लगा। बर्मा शैल के अधिकारी जो अग्रवाल परिवार के पुराने परिचित थे उन्होंने इस परिवार के सभी भाइयों को दूर-दूर तक ढेर सारे पेट्रोल पंप एलॉट कर दिए। अब परिवार और भी मजबूत हो गया। इस परिवार की वजह से उझानी का नाम पैसे और साख में पूरे उत्तर प्रदेश में गूँजता था।

श्रवण कुमार का विवाह संतोष कुमारी से होता है। श्रवण कुमार और संतोष कुमारी के तीन पुत्र रहे। गोपाल कृष्ण अग्रवाल, विमल कृष्ण अग्रवाल और अनिल अग्रवाल। ये परिवार उझानी के मोहल्ला किला खेड़ा में रहता था। गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने चंडीगढ़ में पेपरमिल लगा ली थी, विमल कृष्ण अग्रवाल पिता के साथ ही उझानी में एपीएस कोल्ड स्टोरेज को संभाल रहे थे। इसी समय बर्मा शैल कंपनी ने इनको 1986 में बरेली के कोहाडापीर पर नारीमन वालों से भी एक पेट्रोल पंप लेकर सौंप दिया। यह पेट्रोल पंप श्रवण कुमार अग्रवाल के पुत्र अनिल अग्रवाल ने संभाल लिया। पिता चाहते थे कि अनिल उझानी से बाहर जा कर काम करें।

जीवन और प्रकृति का फैलाव संसार की सबसे अद्वितीय संज्ञा है। अद्भुत रचना संसार से ऊपर उठकर भी आकाश को हाथों से थामने की ललक ऊंचाइयां तो देती है लेकिन उससे पहले मन का बल्लियों उछलना भी कुछ कम मजा नहीं देता। विरोधी परिवेश में, असंतुलित हालातों में, अंधेरे की सुरंगों से निकलकर भी सूर्य की धधकती अंगारी संज्ञाओं का अनुभव यदि झेल पाने की ताब हो तो विचार हो या व्यक्ति कुंदन सा तो चमकता ही है

एक छोटे से कस्बे उझानी में जन्म लेकर व्यापारिक परिवेश में पले बढ़े और कस्बेनुमा प्राथमिक शिक्षा लेकर भी व्यक्ति सोच और चाहतों की ऊंचाइयों तक यदि जा सकता है तो इसके पीछे उसकी अपनी ललक और स्पष्ट दृष्टि ही है। किसी पौधे में फूल यदि बड़ा निकलना हो तो माली शुरू से ही पौधे को आधार देता चलता है। ताकि सही देखरेख में फूल की परवरिश हो जाए और जब खूबसूरत फूल खिलता है तो उसकी तारीफ बहुत होती है। लेकिन माली कहीं बहुत पीछे छूट जाता है।

ऐसा तो नहीं लेकिन अनिल अग्रवाल के पिता श्रवण कुमार अग्रवाल एक ऐसे ही माली हैं। श्रवण जी के पास दूरदृष्टि और मजबूत इरादों वाला जिगरा था। तभी अपने पिता के छोटे से केरोसिन के व्यापार को उन्होंने अपने दम पर लगभग 12 पेट्रोल पंप और कई तेल एजेंसी में बदल दिया। अपने जमाने की विदेशी कंपनियों और भारतीय तेल कंपनियों में जो अपनी साख बनाई वह दूर-दूर तक के इलाके में परिवार को एक सुखद छवि देती गयी। इन्ही सब से पैसा कमा उझानी में ही कोल्ड स्टोरेज और अन्य कई व्यवसाय किए गए। दोनों बड़े बेटों को उन कारोबारों में व्यवस्थित किया गया।

पढ़ने में तेज़ और खेलों में अव्वल रहें हैं अनिल अग्रवाल

चूँकि अनिल छोटे थे, लाडले भी थे, पढ़ने में तेज़ और खेलों में अव्वल तो वो व्यापारिक परधियों से दूर थे. अनिल पढ़ने में बहुत कुशाग्र थे। दसवीं से लेकर बी कॉम,एम कॉम और लॉ करने तक हमेशा प्रथम ही आये। लॉ 1985 में किया। क्रिकेट और बैडमिंटन में यूपी स्टेट तक खेले हुए थे। ये बात अलग थी कि पिता ने पैसों की बहुत गुंजाइश से अनिल को दूर ही रखा था। साइकिल जैसी मामूली चीज़ भी उनके पास नहीं हुआ करती थी। वो उझानी जैसी छोटी जगह से ही दिल लगा बैठे। पिता ने देखा तो जाना कि इसकी तरक्की यहां संभव नहीं। पिता व्यापार की गुंजाइश में को उनको देख परख चुके थे।

परिवार के साथ अनिल अग्रवाल व अमिता अग्रवाल

उन्होंने अनिल से बरेली चले जाने को कहा और कहा कि वहाँ बड़े शहर में व्यापार करो। अनिल के अनसुना करने पर एक दिन जब कड़े शब्दों में आदेश दिया गया तो अनिल अपनी मां संतोष कुमारी के पास जा कर फूट-फूट कर रोए और कहा कि यह उन्हें घर से अलग करने की साजिश है। पिता का कठोर होना ही अनिल के भविष्य को संवार सकता था ये बात मां जानती थी। अनिल को प्यार से उन्होंने समझाया कि तुम्हारा भविष्य इसी में है। अपना लड़कपन और मोह मां की धोती की गिरह में बांध अनिल बाइस साल की उम्र में बरेली चले आए।

टिबरीनाथ में किराये का घर लेकर शुरू किया व्यापार

बरेली में एक मशहूर पारसी परिवार नारीमन हुआ करता था जिनके कई पेट्रोल पंप थे। उन्हीं का एक पेट्रोल पंप खरीदकर अनिल के हवाले किया गया। टिबरीनाथ पर किराए का मकान ले अनिल अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गए और पारिवारिक परिवेश का रंग चढ़ने लगा और अपने व्यवसाय को वह चमकाने लगे। इसी बीच 1986 में बिधोलिया पर एक पेट्रोल पंप उन्होंने और लगाया। दिन-रात की मेहनत से यह पेट्रोल पंप खूब चल निकला। इसके बाद विस्तार करते हुए एक पेट्रोल पंप किच्छा में भी लगाया। हल्द्वानी में भी पेट्रोल पंप लगाए। लेकिन पंजाब में तत्कालीन आतंकवादी माहौल को देखते हुए यह पेट्रोल पंप उन्होंने अपने भाई को दे दिया। परिवार का पुश्तेनी काम, काम की समझ और कंपनियों से पुराने जुड़ाव के चलते यह काम अनिल को मुश्किल नहीं लगे।अपनी मेहनत से उन्होंने पैसा कमाया।

1987 में उन्होंने आगरा के रायबहादुर के परिवार की बेटी अमिता से विवाह कर लिया। अमिता एमएससी, एमफिल की हुईं एक बेहद जागरूक और मॉर्डन लड़की थीं। इनके पिता की आगरा में 150 साल पुरानी गोदरेज की डीलरशिप बेलनगंज में थी। अमिता घर में सबसे छोटी है तो सबकी लाडली भी बहुत थीं। अबअनिल को अमिता के रूप में एक पत्नी के साथ ही एक दोस्त भी मिल गयी थी। वह हरदम साथ रहना चाहते थे, बतियाना चाहते थे। लेकिन कामों की अपनी जगह थी।

परिवार के साथ अनिल अग्रवाल व अमिता अग्रवाल

एक शाम घर में डकैत घुस आये और बना लिया बंधक

1987 में एक शाम अमिता घर में नौकर के साथ अकेली थी कि घर में डकैत घुस आए और उन को बंधक बना लिया गया। चाभियाँ न मिलने से डकैत अनिल के लौटने का इंतजार करने लगे। लेकिन इसी बीच अमिता की सूझबूझ ने ऐसा चमत्कार कर दिया कि डकैतों को पावँ सर पर रख कर भागना पड़ा। मामूली सामानों और ज़ेवर वो ले जा पाये। लेकिन घटना आहत करने वाली थी। डकैत पकड़े गए और उनकी शिनाख्त की बारी आई। महिला का जेल में अपराधियों के बीच जाना परिवार और दोस्तों को शालीन नहीं लगा। लेकिन अनिल अड़ गए। उन्हें यह गलत लग रहा था कि डर या शर्म से चुप होकर बैठ जाना। घटना छोटी है लेकिन इससे अनिल की चारित्रिक विशेषताओं का पता चलता है कि उनकी मानसिक मजबूती और निडर रहने की प्रक्रिया उस माप दण्ड को दिखाती है जिसे लोग छोड़कर समाज में झोल पैदा कर देते हैं और अपराधियों को छूट मिल जाती है। अपराधी की पहचान हुई और उसे सजा मिली। अनिल के लिए यही न्याय था।

कार रोक कर अनिल अग्रवाल का कर लिया गया अपहरण

अभी अनिल की परेशानियां खत्म नहीं हुई थी। दुश्मन भी बढ़ रहे थे। एक रात वे अपने पेट्रोल पंप से अकेले घर लौट रहे थे कि उनकी कार रोकी गयी और माल निकालने को कहा गया। माल अनुमान के हिसाब से न मिलने पर अपराधियों ने मार मार कर उन्हें लहूलुहान कर दिया और फिर फिरौती के लालच में उनका अपहरण कर लिया गया। वे किसी गांव में बंधक बनाकर रखे गए लेकिन अनिल ने अपनी सत्यता, इमानदारी पर उस समय भी भरोसा किया और बगैर डरे सहजता से अपहरणकर्ताओं से बातचीत की। एक महत्वपूर्ण व्यापारी का अपहरण हो गया था तो शहर में भी बवाल मचा हुआ था।

मीडिया भी मामले को लगातार उछाल रहा था। अधिकारियों का चैन हराम हो गया था और बढ़ते दबाव का असर अपहर्ताओं पर भी था। अनिल को लग रहा था कि किसी भी समय उनको गोली मारी जा सकती है। लेकिन अनिल डरे नहीं। अस्सी लाख की फिरौती की मांग को उन्होंने वहीं ठुकरा दिया और चार दिन बाद दो लाख के पर्चे को लिखा। निर्भीक अनिल अपनी स्पष्टवादीता से अपहरण कर्ताओं को भी हिलाने पर सफल हुए। उन्होंने जो रसूख अपने समाज में बनाकर रखे थे उन लोगों के हस्तक्षेपों के जरिए आखिरकार वह अपहरणकर्ताओं के चंगुल से बच निकले। यह दो कहानियां अनिल की मजबूती और धैर्य को दर्शाती हैं और ऐसा व्यक्ति ही सफलता की सीढ़ियां लाँघ सकता है।

इन दो हादसों ने अनिल के पारिवारिक जीवन को हिला दिया था। पत्नी अमिता भी इस हादसे से व्यथित थी और दोनों बच्चे भी सहमे हुए थे। अनिल ने अपने जीवन को अनुशासित कर लिया था और बेवजह वे कहीं भी नहीं जाते थे। शैडो की उपस्थिति उन्हें आश्वस्त करती थी लेकिन कोई अनजाना हादसा अपनी गूँज के साथ दिमाग में रहता था। लेकिन अनिल को चुपचाप बैठना भी अच्छा नहीं लगता था वह अपने व्यवसायों के बने बनाए ढांचे से निकलकर ऐसा कुछ करना चाहते थे जिससे लोगों में बंट सकें।

जब कभी उनका दिल्ली जाना होता था तो अप्पूघर हमेशा ही जाया करते थे। परिवार के साथ वहां बड़ा आनंद आता था। हमेशा ही बिजनेस के बारे में सोचने वाले अनिल कभी फैक्टरी लगाने की सोचते तो उन्हें इस लाइन से थोड़ा ख़ौफ़ लगता था। ट्रेडिंग का काम उन्हें सुरक्षित लगता था। इसी बीच एक विज्ञापन उन्होंने अखबार में देखा। बोलिंग एली की प्रदर्शनी लगी हुई थी। उन्होंने उसे देखने का मन बनाया। उनकी दो बहनों में से एक की शादी बेंगलुरु और दूसरी की मुंबई हुई थी तो मुंबई जा बहन के पास ठहर कर वो प्रदर्शनी देखने गए।

अप्पू घर से प्रेरणा लेकर रखी फनसिटी पार्क की बुनियाद

वहां एक सलाहकार राजेश खुर्शीजा ने उन्हें बताया कि बरेली के ही तीन लोग पहले से इस प्रोजेक्ट पर बातचीत कर रहे थे। अनिल के लिए यह सब एक अजूबा था। राजेश ने ही उन्हें राय दी कि बोलिंग एली वाले मसले पर ध्यान न देकर एक बड़ा मनोरंजन पार्क बनाने की सोचें। यह एक बड़ा सपना था। उनकी पूँजी भी पर्याप्त नहीं थी। इतनी बड़ी जमीन भी अनिल के पास नहीं थी। लेकिन आश्वासन मिलने पर उन्होंने यह करने की ठान ली। बरेली आकर जमीनों की तलाश की तो जमीन भी मिल भी गई। इसी बीच में आर्डर किए कुछ झूले बरेली पहुंच गए। अब मुश्किल फिर सामने आई और इसका भी हल निकला। मयूर वन चेतना में वो झूले लगवा दिए गए। अब उनको झूले चलवाने का अनुभव भी हो रहा था और दूसरी तरफ ज्यादा जमीन का अधिग्रहण कर उस पर काम शुरू कर दिया गया। 2001 में फन सिटी के प्रोजेक्ट को अनिल और अमिता ने मिल कर शुरू किया।

फनसिटी पार्क का मेन गेट

बरेली के ही मशहूर आर्किटेक्ट अनुपम से अनिल ने पार्क को डिज़ाइन करने के लिए कहा। अनुपम सक्सेना भी इसमें जी जान से जुट गए और पार्क को बनाने के दौरान उन्होंने बहुत कम प्रोजेक्ट अपने हाथ में लिए। पूरा ध्यान पार्क पर ही दिया। इस तरह शहर को फनसिटी मिला जो बरेली शहर के साथ-साथ आसपास के बड़े-बड़े इलाकों में इकलौता मनोरंजन पार्क है। पहला एम्यूजमेंट पार्क।

2004 में वाटर पार्क की हुई शुरुआत

फन सिटी ने धूम मचा दी। लेकिन लोग इसमें वाटर पार्क की कमी को महसूस कर रहे थे। सन 2004 में अनिल ने वाटर पार्क भी शुरू करवा दिया। फन सिटी को भी अनिल ने विशुद्ध व्यवसायिक तौर पर लिया। पत्नी अमिता का भरपूर सहयोग उन्हें मिला। पार्क के रखरखाव से लेकर उसकी मार्केटिंग तक के नजरिये को उन्होंने बढ़ावा दिया। शहर की विभिन्न संस्थाओं के, आसपास के शहरों के स्कूल के बच्चे फन सिटी में आने लगे। नृत्य,संगीत, गीत और भी ना जाने कितनी तरह की प्रतियोगिताएं वहाँ होने लगी। इसके साथ ही पर्यावरण से संबंधित जानकारी के लिए भी अनिल और अनुपम सक्सैना ने मिलकर कई योजनाएं पेश की।

Boond Water Park View at Funcity Bareilly

वाटर हार्वेस्टिंग इनमें से मुख्य है। बरेली का संभवतः पहला वाटर हार्वेस्टिंग यूनिट फन सिटी में ही लगायी गयी। इस तरह अनिल की सोच ने व्यवसाय को सीधे-सीधे समाज, उसकी शिक्षा और उनके मनोरंजन से जोड़ दिया। अब अनिल अपनी आत्मा से खुश थे और जुड़ाव महसूस कर रहे थे। वे कहते हैं कि फन सिटी को चलाने में बरेली की महिलाओं का बहुत सहयोग मिला और वाटर पार्क में जिस तरह की रुचि महिलाओं ने दिखाई थी वह चौकानें वाली थी। फन सिटी जब अनिल लगा रहे थे तो पिता ने नाराज होकर बोलना ही छोड़ दिया था। सबको लग रहा था कि वो एक घाटे के कारोबार में हाथ डाल रहे हैं। तो परिवार का बहुत सारा विरोध उन्होंने झेला। मुनाफ़े के काम को छोड़कर इस तरह का जोखिम उठाना परिवार और दोस्तों को अच्छा नहीं लग रहा था। लेकिन पत्नी का सहयोग और प्रेरणा उनके साथ थी।

फनसिटी के बराबर में खूबसूरती बढ़ाता है हवेली रिसोर्ट

फन सिटी जब हिट हुआ तो उनके साथी लोगों का भ्रम टूटा। पिता ने भी अपनी सोच को गलत बताया और आशीर्वाद दिया। दूर-दूर तक परिवार में भी धूम रही। सबने स्वीकार कर लिया कि परिवार के किसी व्यक्ति ने यह साहसिक कार्य किया है। खैर अनिल अब रिलैक्स और संतुष्ट थे। बाद में अनिल ने फन सिटी के प्रांगण में ही एक बड़ा रिसॉर्ट हवेली के नाम से बनवाया। जहाँ शहर भर के कार्यक्रम सम्पन्न होने लगे। अमिता भी जोर शोर से शहर भर के सभी कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेतीं। एक समय में बरेली के कमिश्नर थे दीपक त्रिवेदी। उनकी पत्नी नीलिमा त्रिवेदी आकांक्षा समिति की अध्यक्षा थीं। उन्होंने अमिता अग्रवाल से कहा कि नारी निकेतन के लिए कुछ पैसा इकट्ठा करना है। जो संवासिनियों के लिए खर्च किया जायेगा। हम अमिता ने कुछ छाते खरीदे और उन्हें सभी स्कूलों में पहुंचा दिया और कहा गया कि जो भी छाता बहुत अच्छा पेंट होकर आएगा उसको पुरस्कार दिया जाएगा।अब अमिता ने शहर भर के रईसों को फन सिटी पर एकत्रित किया और रामपुर से सिने अभिनेत्री जयाप्रदा को बुलवाया अब उन छातों की जब बोली सामाजिक हित के लिए लगी और जयाप्रदा ने अपने ऑटोग्राफ उन छातों पर दिए तो देखते ही देखते कुछ समय में सवा लाख रुपया नारी निकेतन के लिए इकट्ठा हो गया।

फनसिटी में मिस्र के म्यूजियम, मोगेंबो की गुफा, अफ्रीकी जंगल भी फन सिटी में लोग खूब पसंद करते हैं।

पूरा पार्क सोलर एनर्जी से सम्पादित होता है। ट्रीटमेंट प्लांट से हरियाली को मेंटेन करते हैं
Haweli resort front look at Funcity

इसी तरह के बहुत सारे कार्यक्रम विभिन्न सामाजिक संस्थाओं को मदद करने के लिए अमिता अग्रवाल आज तक भी करती हैं। साल भर के सभी उत्सवों और पारंपरिक रिवाजों से जुड़े लगभग सभी कार्यक्रम वह अपने फनसिटी और हवेली में करवाती हैं। फन सिटी आज भी बरेली और दूर दूर के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है। अमिता अग्रवाल समय समय पर इसकी राईड्स को भी आधुनिक करती रहतीं हैं। इनके जैसा 7 डी लखनऊ तक के एम्यूजमेंट पार्क में नहीं है। क्लिक आर्ट म्यूज़ियम पूरी यूपी में नहीं है।भारत में भी सिर्फ एक दो जगह है। पूरा पार्क सोलर एनर्जी से सम्पादित होता है। ट्रीटमेंट प्लांट से हरियाली को मेंटेन करते हैं। मिस्र के म्यूजियम, मोगेंबो की गुफा, अफ्रीकी जंगल भी फन सिटी में लोग खूब पसंद करते हैं।

बायोफ्यूल के लिए रजऊ परसपुर में लगाया एक बड़ा प्लांट

अनिल अग्रवाल दूरगामी सोच के व्यक्ति हैं और हमेशा नए प्रोजेक्ट में हाथ डालते हैं। जिस तरह से उन्होंने बरेली और इस पूरे परीक्षेत्र को फनसिटी जैसा एम्यूजमेंट पार्क और वाटर पार्क दिया उसी तरह से अब एक नए और शहर के लिए जरूरी प्रोजेक्ट को तैयार कर रहे हैं। उन्होंने बायोफ्यूल के लिए रजऊ परसपुर में एक बड़ा प्लांट लगाया है। इसमें यह ग्रीन एनर्जी को डवेलप करेंगे।इसके लिए बरेली शहर भर के वेस्ट यानी कूड़े को इस्तेमाल करेंगे। पूरे बरेली शहर की सब्जी और फल मंडीयों सहित शहर की वेस्ट इकट्ठा करके बायो सीएनजी बना कर सीयूजीएल को सप्लाई कर देंगे ।इससे जहाँ शहर भर को कूड़े से निज़ात मिलेगी वहीं सीएनजी भी बायो मिलेगी।

रजऊ परसपुर स्थित बायोफ्यूल प्लांट

बरेली में रोजाना लगभग 400 टन कूड़ा निकलता है। ध्रुव बायो फ्यूल प्राइवेट लिमिटेड के तहत अनिल अग्रवाल इटली के फिनलैंड से कूड़े को अलग अलग करने की भी नयी टेक्नोलॉजी ला रहे हैं। जैविक खाद बनाने के लिए भी अनिल अग्रवाल ने एक प्लांट को लगाने की तैयारी की है इसमें शराब फैक्टरी से निकलने वाली राख का इस्तेमाल करा जायेगा। इस राख में पोटाश के अवयव होते हैं। इसको एक्सट्रेक्ट करके जैविक खाद का निर्माण होगा। भविष्य में हो सकता है कि आर्ट और कल्चर से बरेली शहर को पोषित करने के लिए भी शहर के बीचों बीच भी कोई बड़ी योजना लाएं।

अपनी क्लास में हमेशा पहली श्रेणी में रहने वाले अनिल ने बीकॉम और एमकॉम में टॉप किया। अपनी अद्भुत मेधा और निर्णय लेने की क्षमता ने उनको हमेशा आगे रखा। लेकिन संघर्ष अनिल के साथ हमेशा रहा। लंबी कानूनी लड़ाई लड़ते-लड़ते भी वह थके नहीं और संघर्ष करते ही रहे। वह जानते थे की फन सिटी की भी अपनी सीमाएं हैं अगर जिंदगी में आगे जाना है तो और कुछ भी करना पड़ेगा। एक नए काम की तलाश में वो लगे रहे संभवत एक पेपर मिल का सपना उन्होंने सोचा। अपने पिता को ही अपना गॉडफादर मानने वाले अनिल पारिवारिक परंपराओं को भी खूब निभाते हैं।

शहर और रिश्तों को खूबसूरत बनाने की सीख देते हैं अनिल अग्रवाल

अपने बच्चों में भी रिश्तो को निभाने की सीख डालते हैं। फालतू के पाखंड और उनसे दूर रहने वाले अनिल आधुनिक सोच के हैं और केवल मेहनत को ही सफलता का मूल मंत्र मानते हैं। इसी के बलबूते जिसमें उन्होंने हाथ डाला उसे सफलता के मुकाम तक पहुंचाया और लाभ कमाया। वह यह मानते हैं कि आज पैसा ही सब कुछ हो गया है। जिससे वह अपने आप को सहज महसूस नहीं करते। सामाजिक मूल्य व एथिक्स जो अब खत्म हो रहा है वह परिवारों में,समाज में दोबारा से प्रसारित हो और सामाजिक ग्रुप बनाकर इसका प्रसार करना चाहिए। इसके लिए कुछ भी करने को अनिल तैयार हैं। सब लोग भी अगर अपनी जिम्मेदारी समझने की बात करेंगे तो समाज की एक अलग शक्ल सामने आएगी जो खूबसूरत होगी। न्याय व्यवस्था से भी जूझते रहने वाले अनिल न्याय व्यवस्था में भ्रष्टाचार को लेकर भी आहत हैं। आमूलचूल परिवर्तन इस दिशा में भी होने चाहिए और इस व्यवस्था की खामियां भी खत्म होनी चाहिए।

खुद को कान्वेंट शिक्षा न मिलने से अंग्रेजी बोलने में एक फ्लो की कमी आती है उसको लेकर कभी-कभी अनिल उदास होते थे और कहते हैं कि ग्लोबल बिजनेस के लिए यह जरूरी हो जाता है वरना आप अपने को अच्छे से अभिव्यक्त नहीं कर सकते। लेकिन मानते हैं कि उनकी पत्नी इस कमी को पूरा कर देती हैं। ऐसे मौकों में वो अपनी पत्नी को आगे कर देते थे। आज अनिल अग्रवाल एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व हैं लेकिन आज भी शाय हैं। अनिल अपने को अच्छा पब्लिक वक्ता भी नहीं मानते। पॉलिटिक्स में इसलिए पत्नी को लाना चाहते हैं। आज भी खुद को सामाजिक सरोकारों के प्रति जागरूक पाते हैं।

इसलिए एक बड़े पैमाने पर स्पोर्ट्स के लिए भी कुछ करना चाहते हैं। उनका सपना है कि खेल की किसी भी विधा पर बरेली से राष्ट्रीय स्तर का काम किया जाए जिससे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हो। अकेले या चार लोगों के साथ जोड़कर एक ऐसी कंपनी का निर्माण करना चाहते हैं जिससे खिलाड़ियों को पूरा सहयोग मिले और उच्चस्तरीय तौर पर उनकी छमता का निर्माण हो सके। भले ही इस पर कितना भी पैसा खर्च हो जाए और इस कंपनी से निकला खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर छा जाए।

अनिल और अमिता के दो बच्चे हैं। बेटा ध्रुव परिवार के सारे कामों को बखूबी संभाल रहे हैं लेकिन आज भी अपने पिता से उनका कल्चर और बिजनेस संभालने के तरीकों को सीख रहे हैं। उनकी पत्नी महक भी अपने पति और सास ससुर के साथ सभी पारिवारिक कामों में कदमताल करतीं हैं। इनका एक प्यारा सा बेटा नीलाश है। इनकी पुत्री तृषा है। उनका विवाह मेरठ के एक बिल्डर वरुण अग्रवाल से हुआ है। वरुण के पिता मेरठ कैंट के विधायक भी हैं। अनिल आज भी दस रुपये से लेकर एक करोड़ की यदि कोई चीज़ खरीदनी हो तो अपनी पत्नी से ही पूछते हैं। यही है उनका परिवार, शहर और देश के लिए प्रेम और उनकी सकारात्मक सोच और ऊर्जा।

  • राजेश शर्मा

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