गुज़िश्ता बरेली: किला कोठी की 8 पीढ़ियों की कहानी

गुज़िश्ता बरेली : ऐतिहासिक दिल्ली जिसे शाहजहां के काल में शाहजहानाबाद कहा जाता था मुगल बादशाह की राजधानी थी। 18वीं सदी में जब दिल्ली को नादिर शाह रौंद रहा था। नादिरशाह ने दासता से अपना जीवन प्रारंभ किया था और इरान में प्रभुता स्थापित की थी। काबुल पर कब्जा करने के बाद उसने दिल्ली पर आक्रमण किया। अपनी इस लूट में उसने कोहिनूर को भी हासिल किया था। उसके आक्रमण के वक़्त दिल्ली बहुत अस्त-व्यस्त हो गई थी तो दिल्ली के तमाम प्रतिष्ठित परिवार दिल्ली से कूच करने लगे थे। इनमें से कुछ परिवारों को शासकीय प्रतिष्ठा भी प्राप्त थी। ये परिवार प्रतिभावान और विद्वान भी थे।

दिल्ली से जान बचा कर परिवार लखनऊ पहुंचा

दिल्ली से कूच करके इन परिवारों ने अलग-अलग अलग जगहों पर अपना डेरा बनाया। हजारीमल का परिवार भी इनमें से एक था। हजारीमल एक ईमानदार दरबारी थे। यह परिवार भटनागर कायस्थ परिवार का था। इस विभीषिका में वह और उनकी पत्नी मारे गए या विलुप्त हो गए पता नहीं। बहरहाल उनकी अवयस्क औलाद बहादुर सिंह को उनके परिवार की एक विश्वसनीय सेविका जान बचाते हुए लखनऊ ले आयी।

यादगीर-ए-बहादुर ग्रन्थ

1200 सफ़ों का लिखा ‘यादगीर-ए-बहादुर’ ग्रन्थ

बहादुर सिंह बहुत प्रतिभावान, योग्य, जिज्ञासु और मेघावी थे। उन्होंने लखनऊ में फारसी उर्दू और अंग्रेज़ी भाषाओं में दक्षता प्राप्त की। विलायत से प्राप्त पुस्तकों का भी अध्धयन किया और एक विस्तृत ग्रंथ “यादगीर- ए- बहादुर” की रचना की। इस कृति को उन्होंने अपने समकालीन ज्ञान को, यानि वर्ष 1815 के तत्कालीन ऐतिहासिक, भौगोलिक्, दर्शन, कला, संस्कृति, विज्ञान, राजनीति, धर्म, और सामाजिक स्थिति की नवीनतम जानकारी को प्रचलित फारसी भाषा में प्रस्तुत किया। बौद्धिक और जिज्ञासु वर्ग को जागरूक करने के लिये इस तरह के ज्ञान कोश की रचना का यह अनोखा प्रयास था। 1200 सफ़ों की फारसी नशतालिक लिपि में हस्तलिखित, उनकी इस पुस्तक की मौलिक प्रति, आज भी प्रयागराज ( इलाहाबाद) अभिलेखागार (स्टेट आरकाइव) की एक प्रतिष्ठित धरोहर है।

राय बहादुर मुंशी भीम सिंह

इस पुस्तक में भारत के अतिरिक्त विश्व का इतिहास भी झलक है। इस में अवध के तत्कालीन इतिहास का मौलिक अध्ययन है, जिस जानकारी के लिए मध्यकालीन इतिहास के विद्वानों इलियट और डाइसन ने बहादुर सिंह के इतिहास लेखन की प्रशंसा की है।ये कृति रुहेलों, अवध और उत्तर भारत के इतिहास लेखन के लिए महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

1825 में परिवार ने बरेली किया कूच

1804 के पश्चात् ब्रिटिश राज्य ने बरेली में प्रसार किया। नवाब असफद्दौला के शासन में अवध से बरेली की ओर अनेक परिवारों का आगमन हुआ। बहादुर सिंह 1815 के पश्चात् बरेली आये और स्थानीय रोहिला शासन ने उन्हें दीवान पद से नवाजा। उल्लेखनीय है की रोहिल्लों ने इसी प्रकार दीवान शोभा राम को 1830-1840 में दीवान पद से नवाजा था। दीवान बहादुर सिंह ने 1825 में बांसदेव बरल देव (और बाद में मकरंद रॉय) के काल के पुराने ध्वस्त किले के टीले पर नव निर्माण कर, किला कोठी की तामीर कराई।

दीवान केशव सिंह

ये किला कोठी देवरनीय नदी (किले की नदी) के निकट स्थित थी और बहुत भव्य थी। इसमें लगभग 100 लोगों के रहने का स्थान था। इसी समय से बहादुर सिंह का परिवार आज तक “किला कोठी” वालों के नाम से जाना जाता है |

अपने खर्चे पर बनवाया किला पुल

किले की नदी को पार कर के शहर की ओर आना बहुत ही दुसाध्य कार्य था। इस समस्या को सुलभ करने के लिए दीवान बहादुर सिंह ने किला नदी पर लगभग 1830-1835 में एक पक्के पुल का निर्माण अपने खर्च से किया। ये पुल आज भी मजबूती से स्थित है, जो कि दिल्ली मार्ग पर है और वर्तमान ओवर् ब्रिज से नीचे स्थित है। अभी किले के ओवरब्रिज की रिपेयर के चलते चार माह तक इसी पुल ने पूरे ट्रैफिक को अपने ऊपर से गुजारा है। रिक्शे या हल्की सवारियां आज भी लीचीबाग के आगे से इसी पुल के जरिए जाती हैं। इस पुल पर आज भी उनके नाम का शिलालेख लगा है।

किला पुल पर लगा दीवान बहादुर सिंह के नाम का पत्थर

दीवान बहादुर सिंह के एक ही पुत्र थे, माधो सिंह। वह फारसी के शायर थे और मिर्ज़ा ग़ालिब के शिष्य बन कर उन्होंने ‘साहेब बरेलवी’ तखल्लुस से अपने कलाम कहना शुरू किए। मिर्ज़ा ग़ालिब पर शोध करने वाले प्रसिद्ध विद्वान मालिक राम ने अपनी पुस्तकों में इस तथ्य का वर्णन किया है। माधो सिंह भी रियासत के बड़े ज़मींदारों में से एक थे।

दीवान बलदेव सिंह बने बरेली म्युनिसिपल कौंसिल के पहले सदस्य

दीवान माधो सिंह के पुत्र दीवान बलदेव सिंह थे। वह बरेली की पहली जनतांत्रिक संस्था, यानि, बरेली मुनिसिपल् कौंसिल के पांच सदस्यों में से एक थे। वह न्यायिक मजिस्ट्रेट व बरेली के बड़े ज़मींदारों में से थे। मुंशी बलदेव सिंह की किले के पास बहुत बड़ी अनाज मंडी होती थी, जो आज भी किला चावल मंडी के नाम से जानी जाती है | दीवान बलदेव सिंह के दो पुत्र थे, रंजीत सिंह, जो डिप्टी कलेक्टर थे, और दूसरे पुत्र थे राय बहादुर भीम सिंह। रंजीत सिंह के दो पुत्र थे जिनमें से बलजीत सिंह भी अवैतनिक मजिस्ट्रेट व बरेली कॉलेज प्रबंध समिति के सदस्य/ सचिव रहे थे। बलजीत सिंह के चार पुत्र हुए – विक्रमजीत सिंह, जसवंत सिंह, करणवीर सिंह, और सर्वजीत सिंह। करणवीर सिंह का परिवार आज भी किला कोठी के एक हिस्से में रहता है |

हर किसान के सिर पर होती थी पगड़ी

बलदेव सिंह के छोटे बेटे मुंशी भीम सिंह ने परिवार की ज़मींदारी को आगरा, मथुरा, पीलीभीत आदि क्षेत्रों तक बढ़ाया। वह आज भी अपनी सज्जनता और उदारता के लिए इन क्षेत्रों में विख्यात है।

राय बहादुर भीम सिंह ने साहूकारा बरेली में भी एक बड़ी कोठी खरीदी। जिस समय किला कोठी का विस्तार किया जा रहा था तब उनके पोते शंकर सिंह का जन्म उसी कोठी में हुआ था। मुंशी भीम सिंह का प्रण था की उनकी ज़मींदारी में कोई भी किसान नंगे सर नही होना चाहिए। सभी के सर पर पगड़ी होनी चाहिए। सभी की इतनी समृद्धि का होना उनकी निष्ठा को दर्शाता था।

ब्रिटिश हुकूमत से दिल्ली दरबार 1911 में मिले मेडल्स

टीकाकरण को लेकर लोगों के मन की भ्रांतियां कीं दूर

मुंशी भीम सिंह ने शिक्षा के लिए WIM (वेस्ट इंगलिश मिडिल स्कूल ) वर्तमान तिलक इंटर कॉलेज के निर्माण और विस्तार में बहुत योगदान दिया। उन्होंने बरेली कालेज के विस्तार के लिए भी दान दिया और वहां उनके नाम का शिलालेख लगा था। उन्होंने टीकाकरण प्रसार के लिए मेलों में प्रचार और प्रबंध किया था, और लोगों के मन से टीकाकरण के भय को दूर किया।

दिल्ली दरबार में शिरकत करने को ब्रिटिश महाराजा ने भेज बुलावा

मुंशी भीम सिंह को ब्रिटेन के महाराजा की ओर से सन 1901 और 1911 के दिल्ली दरबार में शिरकत का निमंत्रण मिला, जो की भारत के चुनिंदा राजा व बड़े विख्यात लोगों को ही भेजा गया था। उन्हें वर्ष 1920 में लॉर्ड चैंम्सफॉर्ड के हस्ताक्षर से ब्रिटिश महाराजा द्वारा राय बहादुर के खिताब से नवाजा गया ।

राय बहादुर मुंशी भीम सिंह के पुत्र मुंशी केशव सिंह इतिहास के विद्वांन थे और एमए इतिहास करने के पश्चात, वे देश की आज़ादी की विचारधारा में संलग्न हो गए। वो भी अवैतनिक मजिस्ट्रेट थे। केशव सिंह की युवावस्था में मृत्यु के पश्चात् उनके शिशु पुत्र शंकर सिंह, दो पुत्री शांता और प्रेमा का पालन पोषण उनकी माँ बृज किशोरी ने व उनके दादा मुंशी भीम सिंह के संरक्षण में हुआ।

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राय बहादुर मुंशी भीम सिंह के निधन पर चूंकि शंकर सिंह अवयस्क थे तो समस्त जायदाद कोर्ट ऑफ वॉर्ड्स में चली गयी। केशव सिंह की बड़ी पुत्री शांता का विवाह बीआईटीएस. पिलानी के प्रोफेसर आर एस भटनागर से हुआ और छोटी बेटी प्रेमा का विवाह भारत सरकार में उच्च पद पर आसीन वीके हरुरे से हुआ।

मुंशी भीम सिंह को जारी किया गया प्रमाण पत्र

केशव सिंह के पुत्र शंकर सिंह (1919-1963) मेधावी और न्यायप्रिय थे। 25 वर्ष की आयु में वह स्पेशल न्यायिक मजिस्ट्रेट बन गए और अपनी मृत्यु तक न्यायपालिका को उन्होंने अवैतनिक सेवा दी। वह बरेली के नामी व सम्मानित व्यक्ति थे और अनेक सामाजिक और शैक्षिक संस्थाओ, जैसे आर्य समाज अनाथालय, द्रोपदी कन्या इंटर कॉलेज, आल इंडिया भटनागर उपकारक फंड के अध्यक्ष व बरेली कालेज प्रबंध समिति के सचिव व सदस्य रहे ।

रामपुर गार्डन के संस्थापक सदस्यों में से एक थे शंकर सिंह

राय साहब शंकर सिंह

वह रामपुर बाग के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जिन्होंने नवाब रामपुर से भेंट कर रामपुर बाग में आवासीय कालोनी बनाने के लिये ज़मीन प्राप्त की। रामपुर बाग़ के ए, बी और सी ब्लॉक की निर्माता आईडियल कोआप्रेटिव हाउसिंग सोसाइटी के वह संस्थापक – सचिव रहे। यहीं ए ब्लॉक में सन् 1956-57 में इन्होंने अपनी आलीशन कोठी बनवाई और किला कोठी से रामपुर बाग रहने आ गए।

शंकर सिंह प्राय: राय साहब के नाम से जाने जाते थे। इनकी पत्नी पुष्पा सिंह, एक प्रतिष्ठित कुल से थीं, और उनके पिता राज बहादुर कृष्ण, उत्तर भारत की पूर्व रियासतों जैसे रामनगर, आयोध्या, चरखारी आदि के राजाओं के मुख्य सलाहकार हुआ करते थे। राय साहब शंकर सिंह के असामयिक निधन ने किला कोठी परिवार को झकझोर के रख दिया। वे अपने पीछे दो पुत्रियां और दो पुत्र छोड़ गए थे। उस विपदा के समय उनकी बड़ी पुत्री उषा बीए की छात्रा थी और बड़े पुत्र अजय कक्षा 2, छोटे पुत्र अभय कक्षा अपर नर्सरी, सेंट मारिया स्कूल में पढ़ते थे और सबसे छोटी बेटी राजिका 6 माह की बच्ची थी। किन्तु पुष्पा सिंह ने बड़े धैर्य से बच्चों का लालन पालन किया।

अजय कुमार सिंह ने वकालत में कमाया बड़ा नाम

बड़ी पुत्री का विवाह भारतीय वायु सेना में कार्यरत त्रिभुवन दयाल सिंह से किया। छोटी पुत्री अविवाहित रही और स्कूल में अध्यापन करती रहीं। अब ये दोनो बहने जीवित नहीं है। राय साहब शंकर सिंह के बड़े पुत्र अजय कुमार सिंह ने सेंट मारिया स्कूल, राजकीय इंटर कालेज और बरेली कालेज से शिक्षा प्राप्त की और बीए व एमए (इतिहास) में कालेज टॉप किया और एलएलबी में रुहेलखंड विश्व विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसके बाद एक समय बरेली की शान मानी जाने वाली रबर फैक्टरी सिंथेटिक्स एण्ड केमिकल्स में विधि अधिकारी के पद पे कार्य किया।

एडवोकेट अजय सिंह पत्नी आरती सिंह के साथ

फैक्टरी बंद होने से पहले ही त्यागपत्र दे कर इन्होंने बरेली मे अधिवक्ता के रूप में वकालत शुरू की और जल्द ही बड़ी बड़ी कंपनियों के स्थाई अधिवक्ता बन गए जिन में जेके शुगर फैक्टरी मीरगंज, आईडिया मोबाइल, ऐरटेल, रिलायंस, वोडाफ़ोन, टाटा टेली सर्विसेज आदि समस्त मोबाइल कंपानीयों के, बरेली मण्डल के अधिवक्ता भी रहे। साथ ही नगर निगम बरेली, लाल बहादुर शास्त्री मैनेजमेंट इंस्टिटयूट्, क्लब महिंद्रा अल्मोड़ा, बीर शिबा स्कूल रानीखेत, अल्मोड़ा व किच्छा के अधिवक्ता रहे। सन् 2000 से इन्होंने नैनीताल उच्च न्यायालय में भी वकालत करी। बरेली के कई नामी गिरामी अस्पतालों की ओर से उपभोक्ता संरक्षण फोरम मे पैरवी की। वर्ष 1996-1997 से भारत की जानी मानी कम्पनी अमरचंद मंगलदास श्रौ़फ के लिए, व कोका कोला जैसी बड़ी कंपनियों का काम करने का अनुभव इनको दिल्ली ले गया।

फैक्टरी बंद होने से पहले ही त्यागपत्र दे कर इन्होंने बरेली मे अधिवक्ता के रूप में वकालत शुरू की और जल्द ही बड़ी बड़ी कंपनियों के स्थाई अधिवक्ता बन गए जिन में जेके शुगर फैक्टरी मीरगंज, आईडिया मोबाइल, ऐरटेल, रिलायंस, वोडाफ़ोन, टाटा टेली सर्विसेज आदि समस्त मोबाइल कंपानीयों के, बरेली मण्डल के अधिवक्ता भी रहे।

वे अपने ययूट्यूब चैनल “अजय आरती – हिंदी फिल्म मेलोडीज” पे आज भी अपने गीत अपलोड करते हैं।

सन् 2013 से ये दिल्ली में विधि व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। इनकी पत्नी आरती सिंह एक गृहणी हैं, समाज शास्त्र में एमए हैं और संगीत में बहुत रुचि रखती हैं| अजय कुमार सिंह, बरेली भटनागर सभा के सचिव रहते हुए और उनकी पत्नी आरती सिंह ने विभिन्न सामजिक और सांस्कृतिक आयोजन कर भटनागर सभा को योगदान दिया।

इस दंपति की बड़ी बेटी आकृति सिंह सेंट मारिया स्कूल की छात्रा रही। उन्होंने सेंट बीड कॉलेज शिमला में पढ़ते हुए हिमाचल विश्वविधालय टॉप करा और सेंट स्टीफन कोलेज दिल्ली से एमए अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त कर आज ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी विभाग की प्रमुख हैं और इनके पति अनुरूप चक्रवर्ती भी सेंट स्टीफन कालेज से शिक्षा प्राप्त कर आज उच्चतम न्यायालय के एक सफल अधिवक्ता हैं।

गायिका अभिरुचि सिंह अभिनेता आयुष्मान खुराना के साथ

अजय कुमार सिंह और आरती सिंह का संगीत के प्रति लगाव है और उन्होंने बरेली में विभिन्न संगीत आयोजनों में भाग लिया और निर्णायक मंडल में भी रहे | वे अपने ययूट्यूब चैनल “अजय आरती – हिंदी फिल्म मेलोडीज” पे आज भी अपने गीत अपलोड करते हैं। उनके तीनों बच्चों को भी संगीत के प्रति विशेष लगाव है और तीनों ने बरेली में विभिन्न संगीत प्रतियोगिताओं में पुरूस्कार भी जीते हैं। उनकी छोटी बेटी अभिरुचि सिंह ने गायन में ही अपना करियर बनाया है। अभिरुचि सेंट मारिया स्कूल की हेड गर्ल बनी और 3 वर्ष तक जेसीस क्लब संगीत प्रतियोगीता की विनर और रोटरी क्लब की वॉइस ऑफ़ बरेली की विजेता बनी। इन्होंने एमिटी यूनिवर्सिटी नोएडा से होटल मैनेजमेंट की डिग्री लेने के बाद मुंबई के फिल्म जगत में पहचान बनाई। इन्होंने सुप्रसिद्ध एक्टर आयुष्मांन खुराना के साथ ‘पानी दा रंग’ गीत का रिमिक्स गाया है जो बहुत वायरल हुआ। आज ये देश विदेश में सफल गायिका की तरह यूरोप, दुबई, चीन, होंगकाँग्, श्रीलंका मलेशिय, थाईलैंड आदि अनेकों स्थानो पर संगीत के कार्यक्रम कर रही हैं।

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सबसे छोटे पुत्र अविजित सिंह हैं जिन्होंने शिक्षा की शुरुआत सेंट जुडस् स्कूल बरेली से की फिर माधव राव सिंधिया स्कूल, बिशप कोनरेड स्कूल बरेली से हाई स्कूल कर, दिल्ली पब्लिक स्कूल इंदिरापुरम ग़ाज़ियाबाद एवं दिल्ली विश्वविधालय में शिक्षा प्राप्त की। दिल्ली विश्वविधालय के रामजस कालेज से बीए ओनर्स इतिहास व एमए इतिहास में टॉप किया, व यू. जी.सी. नेट परीक्षा उतीर्ण करी और एम फिल की पढाई कर अमेरिका की ओहाईओ स्टेट यूनिवर्सिटी से फेलोशिप पा कर आधुनिक भारतीय इतिहास में पी.एचडी कर रहे हैं |

एडवोकेट अजय कुमार सिंह अपने परिवार के साथ

राय साहब शंकर सिंह के छोटे पुत्र और अजय कुमार सिंह के छोटे भाई डॉ. अभय कुमार सिंह ने बरेली में ही शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत रूहेलखंड विश्वविद्यालय से प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विषय मे पीएचडी उपाधि प्राप्त की। 2006 में उनको ईरान के राष्ट्रपति द्वारा उनकी कृती के लिये विश्व पुरस्कार प्रदत्त किया। अभय कुमार सिंह ने प्राचीन इतिहास विभाग में वर्ष 1992 से शिक्षण कार्य किया। प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष और संकाय अधिष्ठाता भी रहे। अपने कार्यकाल में हिंद-ईरान अध्ययन केंद्र तथा पांचाल संग्रहालय का समूल नव विस्तारण उनकी उपलब्धि रही।

नालन्दा विश्वविद्यालय के कुलपति अभय कुमार सिंह

अभय कुमार सिंह को भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा राजनयिक के रूप में तेहरान [ईरान] में भारतीय सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना हेतु 2018-21 भारतीय दूतावास, ईरान में प्रतिनियक्त किया गया। उनके ही प्रयासों से यह केंद्र स्थापित हो सका और आज सक्रिय है। वर्तमान में अभय कुमार सिंह, केंद्र सरकार की नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति का पद संभाल रहे हैं। अभय कुमार सिंह की पत्नी मनीषा सिंह कंप्यूटर विज्ञान की विशेषज्ञ हैं और उन्होने लाल बहादुर शास्त्री इन्स्टीटीयूट, बरेली में अध्यापन कार्य किया। इस दंपति के एक पुत्री ऐश्वर्या सिंह अभी पढ़ रही हैं।

  • डॉ राजेश शर्मा
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