मुश्किलों का असर नहीं होगा
डरते-डरते सफ़र नहीं होगा
ज़िन्दगी का ये रास्ता पूरा
ट्रेन से कूदकर नहीं होगा
जो न मानेगा बात माली की
फल वही शाख़ पर नहीं होगा
ध्यान रक्खो ज़रा बुज़ुर्गों का
वरना कोई शजर नहीं होगा
ख़ुद को ही घर बना लिया मैंने
ग़म कोई दर-ब-दर नहीं होगा
चंद अपने बहुत ज़रूरी हैं
छत दिवारों से घर नहीं होगा
ऐसे किस्से को जी रहे हैं हम
जो कभी मुख़्तसर नहीं होगा
सचिन ‘शालिनी’
बरेली (उ.प्र.)
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