मुज़फ़्फ़रनगर के जानसठ वाले ‘सैय्यद ब्रदर्स’ जो कहलाते थे मुग़लिया सल्तनत के ‘किंग मेकर’

राजगोपाल सिंह की किताब ‘किंगमेकर्सपर वरिष्ठ समीक्षक सुहेल वहीद का लेख

LIMELIGHT MEDIA: मुग़लिया सल्तनत में वैसे तो कुल बीस बादशाह हुए हैं, पर मशहूर सिर्फ़ बाबर, हुमायूँ, अकबर, जहांगीर, शाहजहाँ, औरंगज़ेब और बहादुर शाह ज़फर ही हुए, सिर्फ़ सात। इससे साफ हो जाता है कि बाकी 13 ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे कि इतिहास उन्हें याद रख पाता। इन तेरह में से चार बादशाह ऐसे भी हुए हैं जो मुज़फ़्फ़रनगर के जानसठ वाले “सैय्यद ब्रदर्स” के पिट्ठू के तौर पर जाने जाते हैं। इसीलिए इन सैय्यद ब्रदर्स को ‘किंगमेकर्स’ कहा गया।

जहांगीर के शासनकाल तक मुजफ्फरनगर वजूद में नहीं आया था, सारे जहांगीरी फरमान सरवट से ही जारी होते थे। मेरठ, सहारनपुर, मुजफफरनगर तब सब एक ही था। शाहजहां ने जब दिल्ली का तख्त संभाला तो मुजफरनगर की किस्मत चमकी, सूजड़ू और खेड़ा गांवों को मिलाकर इसकी बुनियाद पड़ी और बाकायदा नाम मिला ’मुजफफरनगर’, जहां से बाइस किलोमीटर दूर है जानसठ जिसका बड़ा समृद्ध इतिहास रहा है।

JANSATH: VIEW OF RANG MAHAL PIC BY SARIM ALI KHAN

कितनी बेरहम होती थी उन दिनों सत्ता की लड़ाई कि भाई भाई के खून का प्यासा हो जाता था और एक दूसरे को मार डालने के तरीक़े कितने भयानक होते थे शाही महलों में।

पढ़ना चाहिए यह किताब, जानना चाहिए कि मुग़ल सल्तनत सिर्फ़ वही नहीं थी जो हम जानते हैं, वहां कुछ और भी होता था।

यह “सादात-ए-बारहा” के लिए भी जाना जाता है। ये सैय्यद पंजाब और सिंध होते हुए ईरान से ग्यारहवीं शताब्दी में भारत आए थे। इन्होंने दिल्ली के तख्त की मंशा के मुताबिक काम किया और यहीं पर बस भी गए क्योंकि इन लोगों को यह दोआब भा गया था। यह सब शिया सैय्यद थे और जल्दी ही ताकतवर हो कर उभरे और स्थापित हो गए।

अठारहवीं सदी तक इन सैय्यद ब्रदर्स ने इतनी ताकत हासिल कर ली थी कि दिल्ली की हुकूमत इनके इशारों पर चलती थी। इसीलिए इन्हें ‘किंगमेकर्स‘ पुकारा गया। जानसठ में इनके रंगमहल और शीशमहल के खंडहर अभी भी अपने शानदार अतीत की कहानी बयान करते मिल जाते हैं।

राजगोपाल सिंह वर्मा मुज़फ़्फ़रनगर के ही हैं और उस क्षेत्र के ऐतिहासिक किरदारों पर पिछले दिनों उनकी कई किताबें आई हैं, “किंगमेकर्स” उन्हीं में से एक है जो मुग़ल सल्तनत के उस दौर का बेहद दिलचस्प ख़ाका खींचती है। किताब में मुग़ल बादशाहों के काले कारनामे और बेचारगी, दोनों चीज़ें मौजूद हैं।

कितनी बेरहम होती थी उन दिनों सत्ता की लड़ाई कि भाई भाई के खून का प्यासा हो जाता था और एक दूसरे को मार डालने के तरीक़े कितने भयानक होते थे शाही महलों में। पढ़ना चाहिए यह किताब, जानना चाहिए कि मुग़ल सल्तनत सिर्फ़ वही नहीं थी जो हम जानते हैं, वहां कुछ और भी होता था। ©

सुहेल वहीद वरिष्ठ समीक्षक
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