लाला शुद्धिमल के वंशज बढ़ा रहे हैं कारोबार में पुरखों का नाम
गुज़िश्ता बरेली: बिहारीपुर मोहल्ले में लाला शुद्धिमल रहते थे। आदमी तो वो जमींदार थे, लेकिन रहन-सहन में वह जमींदारी को लेकर नहीं आए थे। सादा जीवन उच्च विचार वाला रहन सहन था उनका। लखमपुर और करगैना गांव उनकी जमींदारी के थे। वो मनी लेंडिंग का काम करते थे। उनके दो पुत्र हुए रामस्वरूप 1901 में उसके बाद ही राम भरोसे लाल। राम भरोसे लाल तो खांडसारी के कारोबार में चले गए, लेकिन रामस्वरूप ने पिता के ही काम को आगे बढ़ाया। जमींदारी और मनी लेंडिंग के साथ-साथ रामस्वरूप सरकारी ठेके भी लेने लगे।
अंग्रेज़ों के ज़माने से चौबारी रामगंगा पुल का मिलता था ठेका
अंग्रेजों का जमाना था। उन दिनों रामगंगा नदी का मुहाना चौबारी कहलाती थी। उस पर उस समय पुल नहीं बना था। गंगा को पार कर आना जाना एक दुश्वारी का काम था। तो गंगा के तीर पर प्लाटून पुल बनाया जाता था जिससे राहगीर, साइकिल, बैलगाड़ी और गाड़ियां रामगंगा की नदी को पार करती थीं। इसके लिए बकायदा सरकारी नीलामी ठेका होता था। अंग्रेजों को रामस्वरूप की नीयत पर भरोसा था कि यह किसी भी राहगीर से कभी कोई मुनाफा नहीं उठाएंगे। तो चौबारी के तमाम ठाकुरों और शहर के भी बड़े आदमियों की नीलामी में लगी बड़ी बोली के बाद भी रामगंगा का यह ठेका हर बार रामस्वरूप को ही मिलता रहा।कारोबार की दृष्टि से तो यह कुछ भी हो लेकिन इससे साख को बहुत बड़ा रुतबा था।
1954 में राम गंगा पर पुल बना तब तक के ठेके रामस्वरूप को ही मिलते रहे। आखरी ठेका एक लाख छियासी हज़ार का हुआ था तीन साल के लिए। इसी प्रकार बाकरगंज के पास और भी तीसरी तरफ की नदी के लिए इस प्रकार के ठेके रामस्वरूप को ही उनकी साख के कारण मिलते रहे। बरसातों में प्लाटून पुल को हटाकर गंगा के उफान पर नावों को उल्टा करके थोड़ा ज्यादा मजबूत पुल बनाए जाते थे। बरेली से उस तरफ का सारा व्यापार इन्हीं पुल से होता था।
गुप्ता का ‘ता’ और तारा का ‘रा’ से बना दिया ‘गुप्तारा’ सरनेम
रामस्वरूप का शिक्षा और नैतिकता पर बहुत जोर था। रामस्वरूप के छह पुत्र और एक पुत्री होती हैं। सबसे बड़े मुरली मनोहर गुप्तारा दूसरे जय-जय राम अग्रवाल तीसरे भगवत शरण अग्रवाल चौथे श्री श्री राम अग्रवाल पांचवे सीताराम अग्रवाल और छठे शोभाराम अग्रवाल और पुत्री कैलाश अग्रवाल होती हैं। मुरली मनोहर गुप्ता का गुप्तारा बड़ा रहस्यमयी था. पता लगा कि मुरली मनोहर की शादी तारा नाम की स्त्री से हुई थी तो पिता का यह कहना कि पत्नी जीवनसंगिनी होती है उसका मान रखना चाहिए तो अपना गुप्ता और उनका तारा मिलाकर उन्होंने जाति ही गुप्तारा कर ली। केवल पिता के दिए नैतिकता के संदेश के कारण।
1941 में मुरली मनोहर ने इलाहाबाद से अंग्रेजी में एम ए किया। महान शिक्षाविद अमरनाथ झा उनके अध्यापक थे। उनकी दीक्षा में मुरलीमनोहर ऑक्सफोर्ड गए। घूंघट वाली तारा को भी संग ले गए। बाद में हिंदू कॉलेज अमृतसर के प्रिंसिपल रहे और भी कई संस्थानों में प्रिंसिपल के पद पर रहे। जय जय राम अग्रवाल ने बरेली का शुरुआती साइकिल का प्रतिष्ठान कुतुबखाना पर बाटा वाली गली में खोला। वे बरेली के प्रतिष्ठित नागरिकों में रहे। बरेली के शुरुआती साइकिल कारोबारी रहे। शोभाराम अग्रवाल धामपुर चीनी मिल के जेनरल मैनेजर रहे और सीताराम अग्रवाल बरेली के मिनुस्पिल कॉरपोरेशन यह सुपरवाइजर रहे।
श्री श्रीराम अग्रवाल अपने पिता रामस्वरूप के बहुत नजदीक थे। स्वभाव भी उनका पिता से मिलता था। रामस्वरूप समय के पाबंद और उनके अनुसार न होने पर जल्द धीरज खो देने वाले व्यक्ति थे। श्री श्री राम भी स्वभाव में कुछ ऐसे ही थे। जिससे परिवार का अनुशासन बेहद सख्त बना हुआ था जो परिवार को नई दिशा में भी दे रहा था। परिवार में एक मुंशी जी मुंशी श्यामलाल होते थे उनका रुतबा और अनुशासन भी घर के बच्चों पर लाला जी की अनुमति से रहता था। ये सब घर की बेहतरी के लिए था।
छात्रों को दी दुकान पर मंहगी किताबें पढ़ने की सुविधा
मुंशी जी पूर्णता परिवार और लाला जी को समर्पित थे। उनका हर फैसला और काम लाला जी के घर के हक़ में होता था। श्री श्री राम अग्रवाल की एक दुकान हुआ करती थी किताबों की। बिहारीपुर में ही स्टूडेंट्स स्टोर के नाम से। उस जमाने में भारत में उच्च शिक्षा की किताबें ज्यादा नहीं छपती थीं। अंग्रेजी वगैरह की तो इंग्लैंड से ही आती थीं। किताबें महंगी होती थीं, इसलिए आम विद्यार्थियों की पहुंच किताब की खरीद तक नहीं होने पाती थी. तो श्री श्री राम ने अंग्रेजी के स्टूडेंट्स को यह सुविधा दी कि शाम को 6:00 से 9:00 बजे तक उनकी दुकान पर ही बैठ कर अंग्रेजी की उन किताबों को पढ़ सकें और नोटस बना सके। ऐसा चलता रहा।
श्री श्री राम के दो पुत्र अजय कुमार अग्रवाल और राकेश कुँवर हुए और पुत्री अपर्णा अग्रवाल। बड़े पुत्र अजय रुड़की से बीटेक कर वापस आए तो पिता के कारोबार में उन्होंने पाठ्य पुस्तकों की दशा देखी तो उन्हें महसूस हुआ कि अंग्रेजी साहित्य का विदेशी वर्ज़न यहां के छात्रों के लिए दुष्कर है। तो उन्होंने अंग्रेजी साहित्य को भारतीय परिवेश में ढालने के लिए विद्वान ढूंढना शुरू किए तो उन्हें एक प्रोफेसर बी बनर्जी मिले उनसे किताबें लिखवायी गईं और उन्हें पब्लिश किया गया। इस प्रकार स्टूडेंट्स स्टोर से यह एजुकेशनल किताबों की पब्लिशिंग में आए और स्टूडेंट्स स्टोर के पब्लिशिंग यूनिट के तहत ही अंग्रेजी सहित हिंदी साहित्य और संस्कृत के लिए भी किताबें छापने लगे। बाद में इनके पब्लिकेशन के साथ डॉक्टर मुद्रा, जालंधर के टी सिंह सहित अनेक शिक्षाविद जुड़े। ये इंग्लिश की बुकलेट भी निकालते थे जिससे विद्यार्थियों की तुरंत सहायता हो सके।
रुहेलखंड यूनिवर्सिटी की किताबें छापने के लिए लगा दी प्रेस
अपनी प्रिंटिंग प्रेस लगाने से पहले ये बरेली के ही गोपाल प्रिंटिंग प्रेस और सुनीत प्रिंटर्स से अपनी किताबें छपवाते रहे। बरेली के बिहारीपुर में ही राधेश्याम कथावाचक की भी एक प्रेस थी। उनके नाम पर एक डाकघर राधेश्याम पोस्टऑफिस भी बिहारीपुर में प्रेस के पास खुल गया था। राधेश्याम प्रेस और स्टूडेंट्स पब्लिश की किताबें तब इसी पोस्ट ऑफिस से बाहर भेजी जाती थीं। उसी समय बरेली में रूहेलखंड यूनिवर्सिटी की शुरुआत हुई थी तो यह रोहिलखंड यूनिवर्सिटी के लिए भी किताबें छापने लगे। अब बिहारीपुर से उठकर इनकी दुकान बरेली कॉलेज के गेट पर स्थित हो गई।
बाद में अपने यहाँ कार्यरत गोयल परिवार के व्यक्ति को ये दुकान दे दी गयी और ये दुकान अब स्टूडेंट्स स्टोर की जगह गोयल बुक डिपो के नाम से जानी जाने लगी। इसी बीच जब ये किताबों की मुद्रण का काम चल रहा था तब 1998 में बरेली में मारुति कंपनी ने कविशा मोटर्स की एजेंसी होने के बावजूद एक और एजेंसी देने का मन बनाया क्योंकि बरेली का बाजार बड़ा था। तो बरेली के कई बिजनेस घराने ने इस दौड़ में लग गए। अजय अग्रवाल भी युवा और तरक्की पसंद इंसान रहे हैं, जबकि इस बीच वह कोटा की जे के सिंथेटिक में इलेक्ट्रिक इंजीनियर की नौकरी, मुंबई में मुकुंद आयरन एंड स्टील में नौकरी, इंडस्ट्रियल सर्वेयर के रूप में कई काम कर चुके थे और अनुभव भी ले चुके थे। लेकिन मारुति की एजेंसी के लिए उनका भी मन हो आया और वह भी इस रेस में आ गए। बाकी बिजनेसमैन को पछाड़ते हुए दो दोस्तों के बीच अब ये मामला आ टिका।
रेलवे स्टेशन पर की कोरल मोटर्स कार शोरूम की शुरुआत
मारुति ने कह दिया कि आप कंपनी के लिए अपनी अपनी धरोहर को एक चिट पर लिखकर इस बाउल में डाल दें खुद ब खुद तय हो जाएगा कि एजेंसी किसके पास जा रही है। दोनों दोस्तों ने एक दूसरे की तरफ देखा। दूसरा दोस्त किप्स परिवार के अशोक अग्रवाल थे। वो भी एजेंसी चाहते थे लेकिन फैसला अजय अग्रवाल के हक में हुआ और अपने कजिन अतुल गुप्ता की मदद से उन्होंने उनकी जमीन पर बरेली रेलवे स्टेशन के पास कोरल मोटर्स के नाम से कार शोरूम खोला।
अब अजय अग्रवाल और अतुल गुप्ता कोरल मोटर्स में पार्टनर हो गए। कोरल मोटर्स समय के साथ शहर का प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान बना। इसके बाद उन्होंने कोरल की ब्रांच पीलीभीत, बदायूं ,सहसवान, पूरनपुर, बीसलपुर में भी खोली ताकि इन इलाकों में भी कारों का व्यापार सुगमता पूर्वक किया जा सके। साथ ही बरेली बाईपास पर एक बड़ा वर्कशॉप भी बनवाया। 2016 में बरेली का पहला नेक्सा का शोरूम मिनी बाईपास दिल्ली रोड पर खोला।
इंजीनियर अजय कुमार अग्रवाल ने बरेली को कोरल मोटर्स के साथ दिया नेक्सा का शोरूम और बरेली के आसपास के छह जिलों में भी कोरल मोटर्स की ब्रांचों और वर्कशाप को खोला।
2016 में बरेली का पहला नेक्सा का शोरूम मिनी बाईपास दिल्ली रोड पर खोला।
अजय अग्रवाल के एक पुत्र और एक पुत्री है। पुत्र मोहित अग्रवाल एचएसबीसी बैंक के साउथ ईस्ट एशिया के हेड हैं और मुंबई में बैठते हैं और पुत्री सुरभि विवाह के बाद अमेरिका में है। अजय अग्रवाल का विवाह कानपुर की इला अग्रवाल से हुआ। इला एक उच्च शिक्षित महिला हैं। जब अजय अग्रवाल अपने कार की एजेंसी के बिजनेस में व्यस्त हो गए तब इला अग्रवाल ने ही अपने श्वसुर के साथ मिलकर प्रकाशन का बिजनेस संभाला। कुछ ही समय में वो इस कारोबार में पारंगत हो गयीं और अच्छी व उद्देश्यपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन करने लगीं। इला अग्रवाल परिवार की धुरी होने का और एक कारोबारी होने का दायित्व संभालती रहीं हैं।
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अजय अग्रवाल के छोटे भाई राकेश कुँवर इनकम टैक्स की प्रैक्टिस करते हैं और अपने क्षेत्र में एक जाना माना नाम हैं। उनकी पत्नी डॉ शांता अग्रवाल अपने जमाने की एमबीबीएस डॉक्टर रहीं हैं। पुराने शहर की वे बड़ी प्रतिष्ठित डॉक्टर रहीं हैं। बहन अपर्णा अग्रवाल विवाह के बाद मुंबई चली गयीं। मुंबई के थाना इलाके में उनके दो अस्पताल अभी चल रहे हैं। 1970 में अजय अग्रवाल और राकेश कुँवर ने रामपुर गार्डन में अपना मकान बनवाया और आज भी यह लोग अपने परिवार के साथ यहीं रहते हैं। परिवार में 1951 में पहली बार बंटवारा हुआ था। शहामतगंज की तीन आढ़तों की बिल्डिंग, कुतुबखाने पर दुकानों और बिहारीपुर के कई मकानों का बंटवारा, एग्रीकल्चर जमीन तब हुआ था। आखिरी बंटवारा 1969 में हुआ। तब इनका बिहारीपुर का पुशतैनी मकान शोभाराम अग्रवाल को मिला जिसे बाद में शोभाराम के बाहर बस जाने के कारण बाबा रामभरोसे लाल के बच्चों ने खरीद लिया।लखमपुर का 120 बीघे का आम का बाग अजय अग्रवाल के हिस्से में आया।
मुरली मनोहर गुप्तारा के दो पुत्र हुए। अशोक प्रॉपर्टी का काम देखते रहे और प्रभात इर्रिगेशन के चीफ इंजीनियर हुए। दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं है। जय जय राम अग्रवाल के दो पुत्र सतीश और गिरीश चंद्र अग्रवाल हुए। गिरीश 1968 में चार्टर्ड अकाउंटेंट होकर दिल्ली में बस गए। भगवत शरण अग्रवाल के चार पुत्र हुए बलराम अग्रवाल पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर, बुद्धसेन अग्रवाल स्टेट बैंक में, विजय अग्रवाल धामपुर शुगर मिल में और छोटे विनय अग्रवाल बिजली विभाग बरेली में इंजीनियर रहे।बिनय को छोड़ अब कोई भाई इस दुनिया में नहीं है।
सीताराम अग्रवाल के तीन पुत्र प्रदीप स्टेट बैंक में रहे, प्रवीण वकालत की प्रैक्टिस करते रहे, प्रमोद ग्रामीण बैंक में पीओ रहे।शोभाराम अग्रवाल के चार पुत्रों में बड़े राजीव स्टील व्यवसाय में हैं, दूसरे राकेश इंजीनियर होकर मेन्युफेक्चरिंग में हैं, तीसरे संजीव केन्या में इंजीनियर रहे चौथे सुनील भी पेंटिंग बूथ का काम देखते हैं
अजय अग्रवाल की मौसी विमला गोयल बरेली की 33 साल तक डीजीसी रहीं। 1950 में इलाहाबाद से किया था एलएलएम।दूसरी मौसी सर्वेश कुमारी आर्मी के कर्नल पद तक गयीं। मामी डॉ ज्ञानधारा आर्मी की पहली महिला ब्रिगेडियर बनीं।
अजय अग्रवाल की मां शकुंतला अग्रवाल अपने परिवार की बड़ी पुत्री रहीं। उनके पिता लाला श्याम बिहारी लाल अग्रवाल बिलवा फार्म के मालिक रहे
दूसरे बाबा राम भरोसे लाल के तीनों पुत्र शंकरलाल अग्रवाल, विशम्भरनाथ अग्रवाल और अमरनाथ अग्रवाल बरेली के बाँसों मंडी में लोहे से सम्बंधित व्यापार करते रहे। अब तीनों में से कोई दुनिया में नहीं है। इस परिवार के नई पीढ़ी के बच्चे भी अच्छा काम कर रहे हैं। जैसे बुद्धसेन के पुत्र शोभित अग्रवाल भारत की सर्वश्रेष्ठ आईवीएफ कंपनी के सीईओ हैं, राकेश कुँवर के पुत्र शोभित एक चार्टर्ड एकाउंट्स कंपनी के पीएमजी के पार्टनर हैं और मिडिल ईस्ट के हेड हैं। बहन अपर्णा का बेटा डॉ पंकज अग्रवाल देश के मुख्य न्यूरो फिजीशियन में से एक हैं जो ग्लोबल अस्पताल में है और इंसान में होने वाली न्यूरोलॉजी की इन्वोलुएंट्री मूवमेंट के इलाज के माहिर हैं।
इतना ही नहीं अजय अग्रवाल को अपनी ननिहाल से भी बरेली में बड़ी प्रतिष्ठा मिली है। अजय अग्रवाल की मां शकुंतला अग्रवाल अपने परिवार की बड़ी पुत्री रहीं। उनके पिता लाला श्याम बिहारी लाल अग्रवाल बिलवा फार्म के मालिक रहे। बिलवा फॉर्म बरेली का शुरुआती ऑर्गेनाइज्ड फार्म था। श्याम बिहारी लाल अग्रवाल शिक्षा के प्रति सचेत थे। उनके पुत्र राजेंद्र अग्रवाल एम्बेसी ऑफ इंग्लैंड में रहे। उनकी दूसरी पुत्री विमला गोयल ने इलाहाबाद से 1950 में एलएलएम किया और 1960 से 1993 तक बरेली की डीजीसी रहीं।
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विमला गोयल बरेली की न्यायपालिका की बहुत प्रतिष्ठित महिला रहीं। श्याम बिहारी के चौथे नंबर की संतान पुत्र महेंद्र गोयल रहे।महेंद्र गोयल केजीएमसी लखनऊ से मेडिकल कर बरेली आ गए और बरेली के भी प्रतिष्ठित डॉक्टर रहे। उनकी पत्नी डॉ ज्ञानधारा आर्मी में गई और पहली महिला ब्रिगेडियर बनी।साथ ही वो दिल्ली के कमांड अस्पताल की कमांडिंग अफसर रहीं और बरेली के भी मिलिट्री अस्पताल की कमांडिंग अफसर रहीं। पांचवें नंबर की संतान पुत्री डॉ मिथिलेश जैन ने केजीएमसी लखनऊ से मेडिकल की पढ़ाई की और आर्मी में गयीं उसके बाद वह यूरोप में बस गयीं। छठे नंबर की संतान पुत्री डॉ सर्वेश कुमारी गोयल भी आर्मी में गई और कर्नल पद से रिटायर हुईं।
बरेली शहर के दूरदराज के एक फार्महाउस में रहने, पलने वाले बच्चे अपनी शिक्षा के बलबूते इन महत्वपूर्ण मुकाम तक पहुंचे। इसके पीछे परिवार की सोच और योगदान को ही श्रेय दिया जा सकता है। जब हमारे समाज में शिक्षा का ज्यादा महत्व नहीं था लाला रामस्वरूप के परिवार और लाला श्याम बिहारी अग्रवाल के परिवार ने अपने बच्चों के हाथों में शिक्षा की कमान दी और सभी ने प्रगति की।
अजय कुमार अग्रवाल इस परिवार की शोहरत को आगे तक ले गए। 75 वर्ष की आयु में भी अपने आठ शोरूम की देखभाल वह खुद करते हैं। उनका व्यक्तित्व दूसरों को प्रेरणा देने वाला है। सामाजिक, पारिवारिक मूल्यों के प्रति जागरूक और इन विषयों पर घंटों बात करने की उनकी क्षमता यह साबित करती है कि वह सामाजिक और पारिवारिक नींवं को कितनी मजबूती से देखना चाहते हैं। शिक्षा के महत्व को समझना और खुद के अपने भविष्य की तैयारी करना और आसमानों को छूना यदि परिवार की परिपाटी बन जाए तो फिर पीछे मुड़कर कौन देखता है।
- डॉ राजेश शर्मा
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